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15 November 2018

आज की कसौटियां

सच को समर्पित सफर

किसी भी जीवंत देश के लिए मजबूत और स्वतंत्र मीडिया का होना अहम जरूरत है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और तमाम तरह के उतार-चढ़ाव देखने के बावजूद इसकी लोकतांत्रिक व्यवस्था मजबूत होती गई है। बीच में कुछ झटके, हिचकोले आए लेकिन यह आगे बढ़ता गया। ऐसे में किसी भी समाचार माध्यम का दायित्व है कि वह देश, समाज, राजनीति, कला, साहित्य और दुनिया में जो घटित हो रहा है, उसे बिना किसी लाग-लपेट, बिना किसी दबाव और पूरी सच्चाई के साथ दो-टूक शब्दों में पाठकों के सामने रखे। यही काम आउटलुक ने पिछले 16 साल के अपने सफर में कामोबेश करने की कोशिश की है। हमारी कोशिश है कि अक्तूबर, 2002 से आउटलुक का सफर जिन मानदंडों और आदर्शों को लेकर शुरू हुआ था, वह जारी रहे, जिसका मूलमंत्र है सच को समर्पित समाचार पत्रिका। इसी कसौटी को ध्यान में रखकर यह वार्षिक विशेषांक आपके हाथ में है। देश ने इस दौर में कई राजनैतिक और सामाजिक बदलाव देखे। जाहिर है, आने वाले दिनों में भी बदलाव का सिलसिला जारी रहेगा। बदलाव के विविध पहलू विशेषांक में भी दर्ज हुए हैं। डेढ़ दशक से ज्यादा के इस सफर के दौरान हुए साहित्य, समाज और राजनीति में आए बदलावों के साथ ही बड़े परिदृश्य और घटनाक्रम को पाठकों के समक्ष रखने का प्रयास है। इसमें देश और राष्ट्र के समक्ष आज और आने वाले दिनों की चुनौतियों की भी चर्चा है।

इसके लिए हमने हिंदी और दूसरी भाषाओं के प्रतिष्ठित साहित्यकारों, चिंतकों की कलम को माध्यम बनाया है। इन प्रतिष्ठित लेखकों में ज्यादातर वे लोग हैं जिन्होंने देश को आजादी के पहले से देखा है। वे स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आजादी के बाद के सभी सत्ताधारी दलों और राजनेताओं-नेताओं के कामकाज और देश में हुए बदलावों के गवाह रहे हैं। इनमें विनोद कुमार शुक्ल हैं तो अशोक वाजपेयी भी हैं। गिरिराज किशोर हैं तो पंजाबी के वयोवृद्ध और प्रतिष्ठित लेखक, कवि सुरजीत पातर भी हैं। विश्वनाथ त्रिपाठी हैं तो असगर वजाहत और रामदरश मिश्र भी हैं। अब्दुल बिस्मिल्लाह हैं तो मंगलेश डबराल और काशीनाथ सिंह भी हैं। असद ज़ैदी और सुधीश पचौरी हैं। कमजोर सेहत और व्यस्तताओं के बावजूद कई बुजुर्ग साहित्यकारों के सहयोग से हमारी कोशिश कुछ कामयाबी तक पहुंच पाई। उन्होंने जो लिखा, जो कहा, वह देश और समाज के लिए इस समय मायने रखता है। किसी ने कविता लिखी तो किसी ने कविता और गद्य दोनों का उपयोग किया। इससे आउटलुक का यह पहला वार्षिक विशेषांक अनूठा बन गया।

हर आलेख में देश के सामने मौजूद चुनौतियों और उनके पीछे के कारकों का जिक्र है। मौजूदा समय की चुनौतियों का हल क्या हो, इस पर भी चिंतकों की राय पाठकों के लिए प्रेरणा बन सकती है। लगातार नए पैंतरे बदल रही राजनीति और नेताओं के गिरते स्तर की वजह से गंभीर होती समस्याओं का गहरा विवेचन भी हमें समृद्ध करता है। सभी लेखक इस बात पर एकमत हैं कि भारत विविधताओं से भरा, बहुलतावादी समाज का देश है। यहां हर वर्ग, जाति, धर्म, संप्रदाय और स्‍त्री-पुरुष के लिए मुकम्मल जगह है। जो लोग इस धारणा में विश्वास नहीं रखते, उनको अपना नजरिया बदलना चाहिए।

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चिंतकों का यह भी मानना है कि राजनीति को साफ-सुथरा करने का जिम्मा देश के नागरिकों पर भी है। देश में आर्थिक बदहाली, अशिक्षा और जातिगत विसंगतियों को दूर करने का जिम्मा भी नागरिकों पर है। इसे बड़े तार्किक ढंग से उठाते हुए कई लेखों में कहा गया है कि देश में सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलन की जरूरत है क्योंकि सकारात्मक बदलाव उसी से संभव है, यह राजनीति भर के बस की बात नहीं है। मौजूदा राजनीतिक दल तो सत्ता हथियाने के लिए अपने एजेंडे पर काम करते हैं, इसलिए उनसे बदलाव का वाहक बनने की उम्मीद करना बेमानी है। जनचेतना और सामाजिक, सांस्कृतिक आंदोलनों में ही वह क्षमता है कि राजनीति की धारा भी बदल जाए। कई लेखकों ने मौजूदा दौर के लेखन पर भी तीखी टिप्पणियां की हैं कि वह अपना दायित्व नहीं निभा रहा है जबकि स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में साहित्यकारों ने जोखिम उठाकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। समय की जरूरत है कि बिना किसी हिचक और भय के, आज के लेखक अपना जिम्मा निभाएं। कुछ लेखकों ने मीडिया के मौजूदा हालात पर भी तीखी टिप्पणियां की हैं। लेकिन यह भी सही है कि सभी समाचार माध्यम कभी एक तरह से कभी काम नहीं करते हैं। कुछ अपवाद हर क्षेत्र में होते हैं।

आशा है, पाठकों को यह वार्षिक विशेषांक कुछ नया सोचने को मजबूर करेगा। प्रतिष्ठित साहित्यकारों के आलेख और कविताएं राष्ट्र और समाज निर्माण के लिए पाठकों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करेंगी, जो आज के समय की महती जरूरत है। यह आयोजन अगर नए विचारों को प्रश्रय देने और नई बहस का सूत्रपात करने में थोड़ा भी मददगार होता है तो हम अपनी कोशिश सफल मानेंगे। हमें आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार है। 

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TAGS: Outlook annual special issue 2018, editorial
OUTLOOK 15 November, 2018
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