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23 June 2025

भीगे स्वरों में बनारसी रंग की फुहार

बनारस गायकी का पूरब अंग परंपरा में एक अलग ही रंग और सरस अंदाज है। बनारस अंग की ठुमरी, कजरी, चैती, दादरा, झुला आदि की मोहक छठा बिखेरने वाले एक से बढ़कर एक कई फनकार बनारस में हुए। उनमें बड़ी मोतीबाई, रसूलनबाई, सिद्धेश्वरी देवी, गिरजा देवी का नाम सुर्खियों में रहा है। इन पुरानी पीढ़ी की गायिकाओं के बीच एक नाम विदुषी सविता देवी का भी जुड़ा। इस गायन शैली की विलक्षण गायिका सिद्धेश्वरी देवी की पुत्री तथा प्रख्‍यात गायिका सविता देवी ने न सिर्फ मां की विरासत को संभाला, बल्कि गायन के जरिये देश-देशांतर में बखूबी से लोकप्रिय भी हासिल की।

गायन के क्षेत्र में वे पुर्णरूप से परंपरावादी थी। उन्होंने अपनी कल्पना और चिंतन से ठुमरी, चैती, कजरी, दादरा, झुला आदि को नए रूप-रंग में सजाकर अलग ही सरस अंदाज में पेश किया। गायन के अलावा सविता जी श्रेष्ठ गुरु भी थीं। उनके बहुतेरी शिष्याएं हैं, जिनको उन्होंने पूरी निष्ठा और शिद्दत से तालीम दी। उनमें होनहार और सुयोग्य शिष्या सुश्री दीप्ती बंसल का नाम दर्ज है। कुछ साल पहले सविता जी का असामायिक निधन हो गया था। इस समय उनकी गायन परंपरा को संभालने में सबसे अग्रणी दीप्ति ही दिख रही हैं। वे बनारस गायन शैली की ऊर्जावान गायिका हैं।

हाल में नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के सभागार में रसानुभूति कार्यक्रम में दीप्ती के गायन की प्रस्तुति हुई। मंगलाचरण के रूप में उन्होंने गणेश स्तुति और गुरु वंदना से आरंभ किया। उसके उपरांत ठेठ बनारसी अंदाज में राग मिश्रतिलंग में निबद्ध बोल बनाव की ठुमरी पेश की। ठुमरी शृंगारिक रसभाव का पर्याय माना जाता है। शृंगार भाव में लिप्त बंदिश ‘साजन तुम काहे को नेहा लगाए, अखियां मोरी तरस रहीं, नाहक जियरा जलाए’ गायन में सुरों का सुकोमल संचार मर्मस्पर्शी और रोमांचक था। सावन ऋतु की मौसमी ठुमरी ‘आज बादल गरज बरसन लगे, बिजुरी चमके, जिया रे डरे, ऐसे समय पिया जाए विदसवा’ गायन में नायिका के शृंगारिक मनोभावों की संचारी भाव में अभिव्यक्ति बड़ी सरस और दर्शनीय थी। राग मिश्र गारा में फिल्म मुगले आजम में गाया दादरा ‘मोहे पनघट पर नंदलाल छेड़ गयो रे’ की प्रस्तुति पूरी तरह बनारसी रंग में सनी हुई थी।

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चैत्रमास में गाई जाने वाली चैती ‘मोतिया हेराए गइली रामा, कहां मैं ढुंढू’ और झुला गायन में ‘झुला धीरे झुलाओ बनवारी रे’ की प्रस्तुति मुग्ध करने वाली थी। आखिर में कबीर का निर्गुण भजन ‘चदरिया गीली रे गीली, रामनाम रस भीगी’ की प्रस्तुति भी कर्णप्रिय थी। उनके गाने को गरिमा प्रदान करने में तबला पर शौकत कुरैशी, सारंगी पर कमाल अहमद, हारमोनियम वादन में रविपाल और तानपूरा पर शिवांगी भारद्वाज की मनभावन संगत थी।

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OUTLOOK 23 June, 2025
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