हिंदी कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानी पर बनी न्यूड, निर्देशक ने नहीं दिया क्रेडिट
हाल ही में गोवा फिल्म फेस्टिवल समारोह से दो फिल्मों के हटाने की चर्चा की वजह से न्यूड और एस दुर्गा चर्चा में आईं। न्यूड फिल्म को अलग तरह की स्टोरी वाली फिल्म कह कर प्रचारित किया जा रहा है। जबकि सच्चाई यह है कि यह फिल्म चर्चित कहानीकार मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानी कालिंदी पर आधारित है।
मनीषा कुलश्रेष्ठ हिंदी साहित्य का चर्चित और स्थापित नाम हैं। उनकी एक लंबी कहानी कालिंदी पर रवि जाधव ने न्यूड नाम से फिल्म बना ली है लेकिन उन्होंने लेखिका को इसका श्रेय देना जरूरी नहीं समझा। मनीषा कुलश्रेष्ठ ने उनसे लंबी चर्चा भी की लेकिन नतीजा सिफर ही रहा।
न्यूड एक ऐसी महिला की कहानी है जो रोजी रोटी के लिए आर्ट कॉलेज में नग्न अवस्था में छात्रों के सामने बैठती है ताकि कला के छात्र शरीर की एनॉटॉमी समझ सकें। अपने गुजारे के लिए उसे यह काम करना पड़ता है। यह कहानी उस स्त्री और उसके परिवार के कई सूत्रों को साथ लेकर चलती है।
मनीषा ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा, ‘‘जिस 'न्यूड' फिल्म की चर्चा हम सुन रहे हैं, उन रवि जाधव जी से मेरा लंबा कम्यूनिकेशन हुआ है। उनके स्क्रिप्ट राईटर कोई सचिन हैं। कहानी मेरी कहानी ' कालिंदी' की स्टोरी लाइन पर है। जहां मेरी जमना का बेटा फेमस फोटोग्राफर बनता है, वहां फिल्म में लड़का एक बिगड़ैल व्यक्ति बन जाता है। मेरी जमना की मां भी वेश्या है, पर वह वेश्या न बनकर न्यूड मॉडल बनती है और उसका बेटा शक करता है कि मेरी मां भी किसी गलत धंधे में है। जब वे फिल्म बना रहे थे मुझे पता चल गया था। मैंने संपर्क किया था। रवि जाधव पूरी चतुराई से मुझे यह कन्विंस करने में सफल हो गए कि जेजे आर्ट्स से उनका पुराना नाता है। वे उस गरीब न्यूड मॉडल को जानते हैं, यह उनकी किसी लक्ष्मी की स्टोरी है। चलो मान लिया यह सच है, झूठ है, तो भी कितना शोर करूं इस नक्कार खाने में चुप हूं। पर ऐसा बहुत बार हुआ, हिंदी के लेखकों के साथ। प्रियंवद ने तो शूटिंग पर जाकर पकड़ा था ' अनवर' के फ़िल्मकार को। निलय उपाध्याय जी की स्क्रिप्ट - सिया के राम पर सीरीयल पूरी ढिठाई से चलता रहा। हम हिंदी के लेखक अपनी इंटैलेक्चुअल प्रॉपर्टी को लेकर कितने नि: सहाय हैं। न? हम कुछ कर नहीं पाते।’’
मनीषा कुलश्रेष्ठ से पहले कहानीकार विवेक मिश्रा भी टीवी धारावाहिक फुलवा की कहानी के लिए लड़ाई लड़ चुके हैं। फुलवा टीवी पर लोकप्रिय धारावाहिक था, जो उनकी कहानी हनिया पर आधारित थी। विवेक मिश्र ने आवाज उठाई और वकील का सहारा लिया। इसके बाद ही फुलवा की स्टोरी लाइन को बदला गया। हिंदी लेखकों की कहानियों से ‘प्रेरणा’ लेकर या सीधे-सीधे नकल कर बहुत काम होता है। लेकिन फिल्म या टीवी की दुनिया न लेखकों को उचित पारिश्रमिक देती है न ही हक का सम्मान। इस प्रवृत्ति पर बात तो होती है लेकिन नकल पर क्या सजा हो या निर्माता-निर्देशक पर जुर्माने का प्रावधान हो जैसी बातों पर कोई बात नहीं होती है। कहानी या प्लॉट चुराने के मामलों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। हिंदी साहित्य और हिंदी लेखकों के लिए यह बहुत जरूरी है।