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07 February 2020

“मुझे खुशी है कि मैंने इस उम्र में भी चुनौती ली”

अभिनेता-निर्देशक अमोल पालेकर ने 25 साल बाद फिर नाटकों में वापसी की। लक्ष्मी देब राय ने उनसे नाटकों में वापसी और उनके नाटक कुसूर पर बात की।

कसूर से मंच पर वापसी के बारे में आप क्या सोचते हैं?

दिल्ली में हो रहे सबसे बड़े नाट्य उत्सव भारतीय रंग महोत्सव का शुभारंभ मेरे नाटक से होना ही बड़ी बात है। यहां जो रेस्पांस मिला वो अभिभूत कर देने वाला था। लोग सांसें थामे नाटक देख रहे थे। कुछ लोगों ने मुझे बताया कि उन्होंने दिल्ली में इस तरह का सम्मान कम ही नाटकों को मिलते देखा है। किसी भी प्रदर्शन पर इस तरह का रेस्पान्स मिले तो और क्या चाहिए।

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उस दौर में चलें जब पैरेलल फिल्मों ने कमान संभाली हुई थी

यदि आप उस दौर को समझने की कोशिश करें तो पाएंगे कि तब कहानी कहने का तरीका अलग था। हमारी फिल्मों को देखने का तरीका अलग था। जब समानांतर सिनेमा आंदोलन समय पर उभरा था, तब मैं उस युग का हिस्सा था। लेकिन यदि आप इसमें गहराई से उतरें तो पाएंगे कि इसका मतलब यह भी था कि हम कोई भी बात लार्जर दैन लाइफ कह रहे थे।

जबकि हमारा सिनेमा ज्यादातर ऐसा था, बल्कि आज भी हम इस माध्यम से लार्जर दैन लाइफ जैसी स्थितियां ही कह रहे हैं। इसलिए अब हर चीज हाइप होकर ड्रामा हो गई है। इसका प्रतिबिंब हम आज मीडिया में देखते हैं। अब हर बात की हाइप क्रिएट होती है। अब सब ब्रेकिंग न्यूज है और सबकी पिच हाई है। लेकिन यदि आप उस दौर को देखें जब समानांतर सिनेमा का उदय हो रहा था, तब की फिल्में सामान्य रोजमर्रा के जीवन की कहानियां कहती थीं, जिनमें कोई ड्रामा नहीं था। बल्कि उनमें एक अलग तरह का सौंदर्य था जिससे लोग जुड़ाव महसूस करते थे। कहानियां उन्हें अपनी सी लगती थी और उनके चरित्र जाने-पहचाने।

आप अलग कैसे कर रहे थे?

लोग अमोल पालेकर से क्यों जुड़ सकते थे, क्योंकि अमोल अमिताभ बच्चन जैसा गुस्सैल नौजवान या धर्मेंद्र जैसे माचो-मैन नहीं था। न वह जितेंद्र की तरह नाचने वाला नायक था न ही राजेश खन्ना जैसा रोमांटिक हीरो। वह इनमें से कुछ नहीं था। वह लार्जर दैन लाइफ भी नहीं था। वो बेहद साधारण इंसान था जैसे हम और आप हैं। तब दर्शकों को महसूस हुआ कि, “हां मैं इस व्यक्ति को जानता हूं। यह मेरे पड़ोस में रहने वाले जैसा ही है और मैं इससे कभी भी बस स्टॉप पर मिल सकता हूं। मुख्य मुद्दा यह है कि मेरे द्वारा निभाए गए चरित्र ऐसे थे जिन्हें मैं जानता हूं।

जबकि दूसरे नायकों को प्रेम या पसंद ही इसलिए किया गया क्योंकि वे लार्जर दैन लाइफ थे। हालांकि मैं उनकी प्रशंसा करता हूं, क्योंकि जो मैं अपने जीवन में नहीं कर पाया, वो उन्होंने किया। अकेले तीस लोगों को मारना, क्या कोई इंसान ऐसा कर सकता है? मैं अमिताभ बच्चन से प्यार करता हूं, उनके लिए ताली बजाता हूं क्योंकि मैं जानता हूं उन्होंने वो किया जो मैं अपने जीवन में नहीं कर पाया।

रजनीगंधा और लोगों से आपके जुड़ाव पर क्या कहेंगे?

यह मेरे युग के सितारों के लिए एक अलग तरह की प्रशंसा है। लेकिन यहां दर्शकों की प्रशंसा और जुड़ाव दिन-प्रतिदिन के स्तर से ज्यादा था। जैसे, “अरे मेरी भी यही प्रॉब्लम है।” यदि आप मेरी पहली फिल्म रजनीगंधा पर गौर करें, उसके मुख्य चरित्र पर गौर करें तो एक तरह से आप कह सकते हैं कि वो ‘नीरस’ है। पूरी फिल्म में वो अपनी गर्लफ्रेंड को यह भी नहीं कह पाता, कि वो उससे प्यार करता है। इसी बात ने फिल्म को वास्तविक बनाया। लेकिन कुछ लोगों को वही चरित्र बोर लग सकता है। वह ऐसा व्यक्ति है, जिसे अपने प्यार को व्यक्त करने की जरूरत नहीं है। वह अपने प्यार को उन फूलों के माध्यम से व्यक्त करता है जो वह लाता है और यही उसकी उपस्थिति भी है। वह हमेशा बात करता है, लेकिन दफ्तर की राजनीति की, रोजमर्रा की। यही वजह थी कि लोगों ने उस चरित्र में खुद को देखा। यही मेरी ताकत थी यह मैं जानता था।

आपने थिएटर किया, फिल्में की, धारावाहिक किए। किस माध्यम में काम करके आपको सबसे ज्यादा आनंद आया?

मैं किसी एक को क्यों चुनूं, जबकि मैंने हर माध्यम में आनंद उठाया। कम लोगों को ऐसे अवसर मिलते हैं। मुझे तीन अलग-अलग जगहों पर काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैंने विजुअल आर्ट, परफॉर्मिंग आर्ट और सिनेमा तीनों में ही काम किया और अपनी शर्तों पर किया। मैंने कोई भी काम तभी किया जब मैं करना चाहता था और उसमें विश्वास करता था। कितने लोगों को ये सौभाग्य मिलता है। मुझे ये अवसर मिला और मैंने अपनी क्षमताओं का श्रेष्ठ उपयोग किया।

इन तीन क्षेत्रों में काम करते वक्त सबसे अच्छी बात यह थी कि मैं बहाव या मुख्यधारा के विरुद्ध जा रहा था। लोगों ने मेरे द्वारा किए गए हर काम को पसंद किया। इसके लिए उन्होंने न केवल मुझे प्यार दिया, बल्कि उन्होंने मेरे अलग तरह के काम का सम्मान भी किया। वे मेरा अलग ढंग से सम्मान कर रहे थे क्योंकि मैं कोई भी काम न स्टीरियोटिपिकल अंदाज में कर रहा था, न मैंने वो रास्ता चुना जो मुझे सफलता की बुलंदियों पर ले जाता। मैं जानता था कि वो मेरा रास्ता नहीं है। मैं चीजों को अलग तरह से करता रहा और सफलता मिलती रही।

आप वेब सीरीज में भी काम कर रहे हैं?

मैं एक वेब सीरीज में आ रहा हूं, क्योंकि मुझे यह बहुत ही चुनौतीपूर्ण लगा। फिलहाल में इसके बारे में ज्यादा नहीं बता सकता। इसका नाम सरकार है और यह अमेजन प्राइम पर इसी साल आएगी।

नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट में फिर लौटना, ये वही जगह है, जहां से आपने अपना करिअर शुरू किया था?

वह बहुत ही मार्मिक और भावनात्मक क्षण था। मुझे याद है वो एनसीपीए, मुंबई के स्थापना दिवस का कार्यक्रम था, उन लोगों ने एक बड़ा उत्सव आयोजित किया था। पंडित रवि शंकर आए हुए थे और आमंत्रित लोगों में से मैं भी एक था। तब मैं 23-24 साल का था। वहां मैंने बेहतरीन कलाकारों के साथ परफॉर्म किया था। वो मेरे थिएटर में करिअर की शुरुआत थी। मैंने 25 साल पहले जो आखिरी नाटक किया वो भी एनसीपीए में ही था। यही वजह है कि एनसीपीए से मेरा भावनात्मक जुड़ाव बहुत गहरा है। और कसूर के साथ फिर मेरी वापसी हुई है।

किस बात ने आपको मंच की और लौटाया?

यह मेरी पत्नी का उपहार है। वही है जिसने मुझे दोबारा नाटक करने के लिए प्रेरित किया। उसकी वजह से ही मैंने स्क्रिप्ट पढ़नी शुरू की और यह मेरे लिए चुनौती भरा था। मैं उसे मना नहीं कर पाया। स्क्रिप्ट के बहाने मैं खुद की परीक्षा भी ले रहा था। क्या इस उम्र में मैं इस तरह की चुनौतियां ले सकता हूं? लेकिन अब मैं खुश हूं कि मैंने यह चुनौती स्वीकार की। मैं कह सकता हूं कि किसी चक्र को पूरा करने के लिए इससे अच्छा उपाय कुछ नहीं हो सकता!

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TAGS: amol palekar, Kasur
OUTLOOK 07 February, 2020
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