विभाजन के बाद महात्मा गांधी के कारण एस एच रजा ने भारत नहीं छोड़ा था
पिछले महिने 94 साल की उम्र में दुनिया से विदा लेने वाले मशहूर कलाकार एचएस रजा ने लेखक और कवि अशोक वाजपेयी को यह बात बताई थी। वाजपेयी ने बुधवार की शाम को इंडियन वूमन प्रेस कॉर्प्स में कलाकार की याद में आयोजित किए गए एक समारोह में रजा से जुड़ी बातें याद करते हुए यह बात साझा की। रजा की उम्र महज आठ साल रही होगी, जब उन्होंने मध्यप्रदेश के मंडला में एक जनसभा के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को पहली बार देखा था। वाजपेयी ने बताया, वह कहा करते थे- यह मेरा देश है। मैं यहां से कहां जाऊंगा? लेकिन मुझको उनकी इस बात पर यकीन नहीं होता था। एक बार बहुत बार पूछने पर उन्होंने मुझे बताया, जब बंटवारा हुआ, तो मेरा परिवार चला गया। लेकिन मुझे लगता था कि अगर मैं भी चला जाऊंगा तो मैं उस व्यक्ति के साथ विश्वासघात करूंगा, जिसे मैंने पहली बार आठ साल की उम्र में देखा था।
अपने मशहूर चित्र बिंदू के लिए खास तौर पर पहचाने जाने वाले रजा मध्यप्रदेश के बरबरिया में पले बढ़े। उनके पिता एक फॉरेस्ट रेंजर थे। कला में रजा का प्रशिक्षण नागपुर और बंबई में हुआ। वह एम एफ हुसैन, एफ एन सौजा और के एच आरा जैसे महान कलाकारों के साथ प्रगतिशील आधुनिक कलाकारों के समूह से जुड़े हुए थे। वाजपेयी के अनुसार, रजा अपने आपको समाज का कर्जदार समझते थे और उनका मानना था कि आभार के तौर पर नए कलाकारों की उनकी जरूरत के समय मदद करना उनका कर्तव्य है। ऐसी ही एक घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि रजा ने एक चित्र को सिर्फ इस शर्त पर खरीदने की इच्छा जताई थी कि इसकी सारी राशि कलाकार को दी जाए और गैलरी कोई कमीशन न ले। वाजपेयी ने कहा, अपने पूरे जीवन में उन्होंने लगभग 20 करोड़ रूपए दिए। अपनी वसीयत में भी उन्होंने अपना सब कुछ विभिन्न कलाओं और कलाकारों को मंच उपलब्ध करवाने वाले रजा फाउंडेशन को दे दिया। भारतीय कला के इतिहास में किसी भी अन्य कलाकार ने ऐसा बड़ा तोहफा दूसरों को नहीं दिया है।