संतूर में नया अनोखा रंग भरता सोपोरी बाज
तबला उस्ताद रफीउद्दीन साबरी के सम्मान में गुरु दीक्षा कार्यक्रम का हाल ही में त्रिवेणी कला संगम के सभागार में आयोजन साजो आवाज म्यूजिक सोसायिटी ने किया। इस दौरान उस्ताद के शार्गिदों ने अनोखा प्रदर्शन किया। आरंभ ऊर्जावान युवा सितार वादक अदनान खां के वादन से हुआ। उन्होंने बरसात के राग मियां की मल्हार और गौर मल्हार को अलाप जोड और तालबद्ध गतों की बंदिशों को रंजकता से पेश करने में अपने हुनर का परिचय दिया। उनके वादन में दादिरदारा दिरदारा बोल की नियंत्रित निकास, राग अलकंरण में खटका, मूर्की सपाट और गमकदार तानें, मींड तीनों सप्तकों में स्वरों का शुद्ध संचार और लयकारी-झाला पेश करने में सुंदर प्रवाह था। इस नौजवान वादक को उत्साहित करने में तबला पर उस्ताद रफीउद्दीन साबरी ने बेहतरीन संगत की।
कार्यक्रम में युवा शास्त्रीय संगीत गायक मोसिन अली खां ने भी ख्याल गायन में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। उन्होंने संपूर्ण स्वरों के राग यमन को जिस चैनदारी से उसकी परतों को खोलते हुए पेश किया, उसमें उनकी पुख्ता तालीम दिख रही थी। खरज से लेकर तार सप्तक के स्वरों को सीधे और लयात्मक गति से छूने, और सरगम में बोल निरपम-धनि पमगरेस का खुली और खनकती आवाज में सुगमता से संचार करने में उनका ठोस रियाज दिख रहा था। झपताल में निबद्ध तराना को धीमी और तेज लय गति पर प्रभावी ढंग से पेश करने में उनकी अच्छी सूझबूझ थी। तीनताल पर छोटा खयाल की बंदिश ‘तू जग में रसभीनी-भीनी’ की प्रस्तुति भी सरस थी। सुर मल्हार की रचना ‘घोर-घोर गरजते बदरवा’ गायन में भी सावनी रंग खूब था।
इस समय संतूर वादन के सबसे चर्चित वादक अभय रुस्तम सोपोरी ने अपने पिता संतूर नवाज पंडित भजन सोपोरी की अनूठी वादन शैली को नया विस्तार और रंग रूप देने में सार्थक कार्य किया है। आम संतूर से अलग सोपोरी बाज में ध्रुपद अंग के बीनकारी अंग को जोडने में भजन सोपोरी के उल्लेखनीय काम किया था, उसे अभय ने खूबसूरती से तराश कर प्रभावी बनाया है।
अभय की तंत्रकारी और गायिकी अंग में राग नंद कौंस की प्रस्तुति प्रभावी थी। नंद कौंस राग जोग कौंस के करीब है पर उससे बचकार राग नंद कौंस की स्वतंत्र और शुद्ध छवि को अभय ने जिस तरह आलाप में विविधता से दर्शाया, वह देखने लायक था। इसमें ध्रुपद अंग में मींड के स्वरों की गति पर अलग-अलग वजन में निकास बहुत ही प्रभावी और रोमांचक थी। तालबद्ध गतों की बंदिश को गाकर और बजाकर पेश करने में रागरस का भरपूर आस्वादन था। अभय ने। लयकारी में कई तरह से लयबांट, कई प्रकार के बोल छंदों की प्रस्तुति और द्रुत एकताल में तराना और उसी लय में लयकारी और झाला बजाने में गजब का समां बांधा। उनके साथ तबला पर उस्ताद रफीउद्दीन साबरी ने लजवाब संगत की।