कथक, ओडिशी, भरतनाट्यम के सहज रंग
कला संस्कृति के प्रचारक और संरक्षक अशोक जैन इस क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय हैं। स्पीक मैके की कला गतिविधियों में भी उनकी भागीदारी है। युवा कलाकारों को प्रोत्साहित और उनकी प्रतिभा को उजागर करने के लिए उन्होंने नवपल्लव बैनर के तले कार्यक्रमों की शृंखला शुरू की है। हाल ही में बंदिश आर्ट्स के सहयोग से नवपल्लव के आयोजन में ओडिशी, कथक और स्वाति आत्मनाथन के भरतनाट्यम नृत्य की प्रस्तुति इंडिया हेबिटाट सेंटर के स्टेन समागार में हुई। भरतनाट्यम में कार्यक्रम का आरंभ स्वाति आत्मनाथन के एकल (सोलो) नृत्य से हुआ। उन्होंने इस परंपरागत नृत्य के चलन और खूबियों को गहराई से सीखा और आत्मसात किया है। उसकी मनोरम झलक उनके नृत्य प्रस्तुति में दिखी।
स्वाति ने राष्ट्रकवि सुब्रह्मण्यम भारती की काव्य रचनाओं को नृत्य के जरिए सरसता से दर्शाने में सरहनीय प्रयास किया है। स्वाति प्रखर नृत्यांगना के अलावा नृत्य संरचनाकार और गायिका के रूप में भी खासी दक्ष और प्रवीण हैं। उन्होंने अपने इस कार्यक्रम में सभी गीत खुद गाए हैं। स्वाति ने महाकवि सुब्रह्मण्यम भारती की देवी सरस्वती की अराधना में रचित गीर्वाणवाणी-भारती की बहुत ही सुरमय और अनूठी प्रस्तुति की। गीर्वाणवाणी-भारती अर्थात गरिमा वाणी वागदेवी सरस्वती का ही रूप है। सरस्वती का पर्यायवाची शब्द भारती है। इसकी अवधारणा और नृत्य संरचना में स्वाति ने अपनी गहरी सूझ और प्रतिभा के दर्शन करवाए। इसकी संगीत रचना महाकवि के पौत्र राजकुमार भारती और शोध कार्य तथा काव्यात्मक विश्लेषण के.वी. कृष्णनन ने की।
सभी धर्मों को एक सूत्र में बांधकर चतुर्थ जति, एकतालम-खंड नतई और राग हंसनंदी, अलारिपु, ताल मालिका, और राग मालिका में निबद्ध स्त्री के विभिन्न रूपों को दर्शाने में उज्जैनी नित्य कल्याणी कृति की प्रस्तुति भी रोमांचक और दर्शनीय थी। पदम में विरोहित कंठी नायक और अपनी पुत्री के प्रति असीम प्रेम की महाकवि की परिकल्पना की सुंदर झलक स्वाति की नृत्य संरचना में उभरी।
आखिर में राग हमीर कल्याणी में पारंपरिक थिल्लाना की प्रस्तुति भी सुंदर लयात्मक गति में बंधी थी। इस समारोह में ओडिशी की प्रख्यात नृत्यांगना माधवी मुदगल की शिष्या चिकरिशा मोहंती ने ओडिशी के व्याकरणबद्ध अमूर्त पल्लवी की लयबद्ध और आर्कषक नृत्य को शुरू करते ही दर्शकों को मोह लिया। राग छायानट में निबद्ध प्रस्तुति में उसका अंग संचालन, चौक, नृत्य के आकार, हस्तसंचालन, त्रिभंगी पद-विन्यास और लयात्मक गति में नृत्य भरापुरा और कलात्मक था। गुरु केलुचरण महापात्र की नृत्य संरचना और पं. भुवनेश्वर मिश्र की संगीत रचना में गुंथी खेला लोला की प्रस्तुति भी बहुत सरस और आकर्षक थी। इसमें कृष्णा के प्रति आसक्त राधा पर व्यंग करते हुए सखि उसे किस तरह से छेडती और मजाक उड़ाती हैं, उसे मोहंती ने मार्मिकता से चित्रित करने का प्रयास किया।
कथक की प्रखर नृत्यांगना और गुरु मालती श्याम की शिष्या संस्कृति पाठक ने गणेश स्तुति के बाद दुर्लभ और नौ मात्रा की ताल बसंत पर शुध्द्ता और रोमांचकता से नृत्य को प्रस्तुत करने में अपनी प्रतिभा का भरपूर परिचय दिया। तालबद्ध नृत्य के प्रकार ठाट, परन, आमद, तिहाइयां, टुकड़े, चक्कर से लेकर विविध लय में चलन को बरतने और सम पर आने का अन्दाज खूबसूरत था। तीन लय की तिपल्ली, परिमेलु की प्रस्तुति में भी अच्छी सूझ भरी थी। आखिर में वर्षा ऋतु में ‘घिरघिर आई बदरिया’ गायन पर अभिनय भाव भी मनमोहक था।