अँधेयुग में "अंधायुग" का मंचन
देश का प्रतिष्ठित रंगमंच संस्थान नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा एक बार फिर तीन दशकों के बाद "अंधायुग "का मंचन कर रहा है जो देखते देखते अब भारतीय साहित्य का एक "कालजयी " नाटक माना जाने लगा है। प्रख्यात नाटककार गिरीश कर्नाड तो इसे गत 5 हज़ार सालों का सर्वश्रेष्ठ नाटक मानते थे। एनएसडी रंगमंडल विश्व थिएटर दिवस के मौके पर इस कालजयी नाटक "अंधायुग " का मंचन कर रहा है।
महाभारत के युद्ध पर आधारित यह नाटक ऐसे समय मे हो रहा जब रूस और यूक्रेन के युद्ध एक साल से चल रहा है और दुनिया बेबस तमाशा देख रही है। महाभारत के समय भी ऐसी ही स्थिति थी।
यूँ तो इस नाटक का पहला प्रदर्शन 1962 में मुंबई में सत्यदेव दुबे के निर्देशन में टेरेस पर हुआ था जबकि एन एस डी के संस्थापक निदेशक इब्राहम अलका जी ने 8 अक्टूबर 1963 को फिरोजशाह कोटला में इसे किया था जिसे देखने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू देखने आए थे। उस समय यह नाटक एक बड़े शो के रूप में भव्य अंदाज़ में किया गया था। आज तक उस भव्यता की चर्चा नाट्यजगत में होती है।उसे एक मील का पत्थर माना जाता है।
यह नाटक 1953-54 में लिखा गया था। इस लिहाज से यह 70 साल बाद एक बार फिर हो रहा है।
एनएसडी रंगमंडल 26 27 और 28 मार्च को यह नाटक कर रहा।गौरतलब है कि रंगमंडल अगले साल अपनी स्थापना के 60 वर्ष पूरे करेगा। इस दृष्टि से भी इस नाटक का मंचन महत्वपूर्ण है।
हिंदी के प्रख्यात लेखक तथा "धर्मयुग" के संपादक स्व धर्मवीर भारती द्वारा लिखित इस नाटक का निर्देशन सुप्रसिद्ध अभिनेता एवम एनएसडी के पूर्व निर्देशक राम गोपाल बजाज कर रहे हैं।उन्होंने 1982 में भी इस नाटक का निर्देशन किया था।
"मिर्च मसाला" "मासूम चांदनी" और "परज़ानिया" जैसे फिल्मों में काम कर चुके श्री बजाज ने आज पत्रकारों से कहा कि सतयुग, द्वापर युग और कल युग के बाद यह "अंधायुग" चल रहा है और जब तक दुनिया में युद्ध अशांति और मानवीय संकट बना रहेगा विवेक की हार होगी यह नाटक खेला जाता रहेगा। उन्होंने कहा कि आज सबसे अधिक अभिनय राजनीति में हो रहा है।यह राजनीति के अंधायुग का समय है और भारतीय मीडिया को भी दवाब में काम करना पड़ रहा है।वहः भी पाबंदियों और मजबूरियों का शिकार है।पत्रकार जो कहना चाहते हैं नहीं कह पाते। यह सूचना का अंधायुग है।"
उन्होंने कहा कि ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता नाटककार अभिनेता गिरीश कर्नाड इस नाटक को शूद्रक के नाटक के बाद देश का सर्वश्रेष्ठ नाटक मानते थे।
पद्म श्री और कालिदास से सम्मानित बजाज ने बताया कि वह इस नाटक को असमिया और तेलगु भाषा मे भी निर्देशित कर चुके हैं।यह नाटक लाल किले तालकटोरा स्टेडियम में भी हो चुका है।1963 में उन्होंने भी इस नाटक में अभिनय किया था।