भरतनाट्यम: परंपरा भी प्रयोग भी
भरतनाट्यम की युवा नृत्यांगनाओं में स्वर्णनली कुंडू तेजी से उभर कर सामने आई है। नृत्य की तकनीक और व्याकरण के ज्ञान के साथ सम्पूर्ण कला पक्ष, उसके तमाम पहलुओं को गहराई से समझने का और नृत्य से जोड़ने का सुन्दर प्रयास इस युवा नृत्यांगना ने किया है। स्वर्णनली ने बौद्धिक स्तर पर उस जगह को तलाशने का प्रयास किया है जहां पर भरतनाट्यम की सांस्कृतिक विरासत का वास है। नृत्य संरचना के क्षेत्र में भी उनका सृजनशील कार्य दिखता है।
हाल ही इण्डिया हेबिटेट सेंटर के सभागार में स्वर्णनली ने नृत्य संरचना के जरिए शिव-शक्ति की दार्शनिक व्याख्या और अंतर्सम्बंधो का सूक्ष्मता से विश्लेषित करने का सार्थक प्रयास किया है। स्वर्णनली ने कार्यक्रम का आरंभ रागम रागमालिका और तालम मिश्र चापू में निबद्ध शब्दम तिल्लई अम्बल की प्रस्तुत से किया।
यह शिव की उपासना पर आधारित थी। शब्दम की परिकल्पना में शिव के अद्भुत नृत्य से प्रभावित उनकी अराधिका नारी वशीभूत होकर शिव में विलीन होने का सपना देखती है और चिदबंरम के मंदिर में नटराज के शिव का आश्चर्य चकित करने वाले नृत्य को देखने के लिए आतुर है। शिव की भक्ति में डूबी नायिका के मनोभावों का चित्रण नृत्यांगना के नृत्य और अभिनय में सजीविता से उजागर हुआ।
परिकल्पना में शिव ही आदि और अंत है। उनका व्यक्तित्व असीम है व रूप् निराकार भी है और साकार भी। शक्ति का संचार और उसके प्रदर्शन की क्षमता शिव में ही निहित है शिव ही परम ब्रहम है। जो तीनों लोक से परे अलौलिक है। इस प्रस्तुति में स्वर्णनली की सृजनशीलता नृत्य का प्रवाह और अभिनय में भावों का हृदय स्पर्शी रूप बहुत रोमांचक और दर्शनीय था।
यह प्रस्तुति मूलरूप से भक्ति परंपरा में दिखी। इसमें संगीत कथा और नृत्य का सुन्दर समन्वय था। इस समय संगीत-नृत्य को नया रंग रूप देने में कई तरह से प्रयोग हो रहे हैं। इस क्षेत्र में स्वर्णनली ने भी नृत्य संरचनाओं में नए सृजनशील प्रयोग किए हैं जो काफी हद तक सार्थक साबित हुए उनमें शिव - शक्ति नृत्य संरचना खास है।