नहाय-खाय के साथ आज से शुरू हुआ छठ महापर्व, जानिए इसका महत्व
त्योहारों के देश भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जिन्हें काफी कठिन माना जाता है और इन्हीं में से एक लोक आस्था का महापर्व छठ है, जिसे मनाने की परंपरा रामायण और महाभारत काल से ही चली आ रही है। मंगलवार से नहाय-खाय के साथ्ा शुरू हुए लोक-आस्था के इस चार दिवसीय महापर्व को लेकर कई कथाएं मौजूद हैं।
छठ करने वाले लगातार 36 घंटे तक उपवास रखते हैं, जो चार चरणों में संपन्न होता है। छठ पूजा का पहला चरण होता है नहाय-खाय, जो कि आज से शुरू हो रहा है। 24 अक्तूबर से शुरू होने वाला यह व्रत 27 अक्टूबर को संपन्न होगा।
कई मायनों में खास है इस बार का छठ पर्व
इस बार का छठ पर्व कई मायनो में खास है क्योंकि 34 साल बाद एक महासंयोग बन रहा है। दरअसल इस बार की छठ पूजा के पहले दिन सूर्य का रवियोग बन रहा है जिसे काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। छठ पूजा के दिन सूर्यादय सुबह 06:41 बजे और सूर्यास्त शाम 06:05 बजे होगा। इस समय ही व्रती जल चढ़ा सकता है।
व्रत का पहला दिन नहाय-खाय
पहला दिन 'नहाय-खाय' के रूप में मनाया जाता है। घर की सफाई के बाद छठ व्रती स्नान कर शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजन करने के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन व्रती कद्दू, लौकी, दूधी की सब्जी, चने की दाल और अरवा चावल का भात खाती/ख्ााते हैं।
25 अक्टूबर यानी व्रत के दूसरे दिन होगा खरना
खरना, छठ पूजा का दूसरा दिन होता है। इस दिन खरना की विधि की जाती है। खरना का मतलब है पूरे दिन का उपवास। व्रती इस दिन जल की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करता। शाम होने पर गन्ने का जूस या गुड़ के चावल या गुड़ की खीर का प्रसाद बनाकर बांटा जाता है। प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।
व्रत का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य
इस दिन शाम का अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य षष्ठी को छठ पूजा का तीसरा दिन होता है। इस दिन पूरे दिन के उपवास के बाद शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। तीसरे दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ और चावल के लड्डू बनाते हैं। शाम को बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है। सभी छठ व्रती एक नियत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठ मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है।
सबसे कठिन व्रत क्यों माना जाता है छठ?
दिवाली के छठे दिन मनाया जाने वाला छठ व्रत दुनिया के सबसे कठिन व्रतों में से एक है। यह व्रत बड़े नियम तथा निष्ठा से किया जाता है। व्रती खुद से ही सारा काम करती हैं। नहाय-खाय से लेकर सुबह के अर्घ्य तक व्रती पूरे निष्ठा का पालन करती हैं। भगवान सूर्य के लिए 36 घंटों का निर्जला व्रत स्त्रियों इसलिए रखती हैं ताकि उनके सुहाग और बेटे की रक्षा हो सके। वहीं कुछ, ख्ाास कर पूर्वांचल, बिहार के पुरुष्ा भ्ाी इस व्रत में संलग्न देख्ाे जाते हैँ ।
भगवान सूर्य और छठ देवी की होती है पूजा
दिवाली के ठीक 6 दिन बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को "सूर्य षष्ठी का व्रत" करने का विधान है. इस दिन भगवान सूर्य और उनकी बहन छठ देवी की पूजा की जाती है।
छठ व्रत में रखें पवित्रता का ध्यान
इस व्रत में भगवान सूर्य की छोटी बहन छठ मैय्या की उपासना की जाती है। छठ पूजा के दौरान साफ-सफाई समेत कई बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए। छठ मैया का प्रसाद बनाते समय पूरी पवित्रता का ध्यान रखें। हाथ पैर धोकर प्रसाद तैयार करें। इस दौरान कभी भी मांसाहार का सेवन नहीं करना चाहिए।
छठ मैया के प्रसाद को पैर नहीं लगाना चाहिए और सूर्य को अर्घ्य देते समय चांदी, स्टील, शीशा व प्लास्टिक के बने बर्तनों से अर्घ्य नहीं देना चाहिए। छठ का प्रसाद जहां बन रहा हो वहां भोजन नहीं करना चाहिए। इससे पूजा अशुद्ध माना जाता है।
इस पर्व को पुरुष और महिलाएं समान रूप से मनाते हैं
बता दें कि भगवान भास्कर की उपासना और लोकआस्था के पर्व छठ की तैयारियां अब अंतिम चरण में है। सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल देने वाले इस पर्व को पुरुष और महिलाएं समान रूप से मनाते हैं, लेकिन आमतौर पर व्रत करने वालों में महिलाओं की संख्या अधिक होती है।