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27 November 2015

साहसिक आत्मकथा

हिंदी साहित्य के प्रख्यात कवि केदारनाथ सिंह ने कहा कि सच को स्वीकार करने और लिखने के लिए, खासकर अपने नजदीकी लोगों के बारे में सही टिप्पणी करने के लिए साहस की जरूरत होती है और निर्मला जैन में वह साहस है। यह उनकी आत्मकथा जमाने में हम में साफ उभर कर सामने आता है।

केदारनाथ सिंह मंगलवार की शाम साहित्य अकादमी सभागार में निर्मला जैन की आत्मकथा के प्रकाशन के अवसर पर आयोजित लेखक से बातचीत कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट अतिथि बोल रहे थे। उन्होंने कहा, हिंदी अध्यापन के क्षेत्र में किसी महिला ने पहली बार आत्मकथा लिखने का साहस दिखाया है इसलिए सही मायने में यह कृति एक इतिहास की शुरुआत है और इसमें जिन-जिन बातों का उल्लेख किया गया है उनसे यह किताब एक दस्तावेज की तरह भी पढ़ी जा सकती है। उन्होंने कहा, निर्मला जैन ने अपने निजी, पेशेवर और सामाजिक जीवन के सभी संघर्षों को बड़ी सच्चाई तथा सजीव ढंग से पेश किया है, जो हर किसी के वश में नहीं है।

इससे पहले लेखक तथा पत्रकार प्रियदर्शन एवं युवा लेखिका सुदीप्ति के साथ बातचीत में उनके सवालों का बड़ी बेबाकी से जवाब देते हुए जमाने में हम की लेखिका निर्मला जैन ने कहा, ‘मुसीबतें आदमी को मजबूत बनाती हैं। मुसीबतों से लड़ते रहने के जुझारूपन ने ही मुझे हिम्मत और ताकत दी है।’ अपने जीवन के अनुभवों के हवाले से उनका कहना था, ‘अगर जीवन में कठिनाइयां न हों तो जीवन कमजोर हो जाता है। मेरे जीवन में कठिनाइयों और मुसीबतों की कभी कमी नहीं रही। इसलिए मुझे जीवन में पछ्तावे के लिए फुरसत ही नहीं मिली। जीवन संघर्षों के साथ आगे बढ़ता चला गया।

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बातचीत के दौरान प्रियदर्शन ने एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया, आत्मकथा जमाने में हम में किसी किताब का जिक्र नहीं मिलता क्यों। इस पर लेखिका ने कहा, किताबें मैंने बहुत पढ़ी हैं और पढ़ती रहती हूं। लेकिन इस तरह की कोई किताब नहीं है जिसका असर मेरी सोच या जीवन की दिशा पर कभी परिवर्तनकरी ढंग से पड़ा हो। और रही बात उनका जिक्र करने की तो मैंने इतना पढ़ा है कि उस पर एक अलग अध्याय ही बन जाएगा।

तमाम प्रतिभाशाली लोगों के संपर्क में रहने के दौरान उनमें से किसी के प्रति अनुराग, आकर्षण या खिचाव होने के सुदीप्ति के सवाल पर निर्मला जैन ने कहा कि यदि आपके साथ कोई प्रतिभाशाली व्यक्तिव है तो उसके प्रति अनुराग होना स्वाभाविक है और यह एक मानव स्वभाव भी है। लेकिन अनुराग के भी स्तर होते हैं। इनका अपना एक दायरा होता है और दायरे में रहकर कोई भी अनुराग या दोस्ती आपके संबंधों में पूर्णता प्रदान करती है और तभी आपके संबंध स्थाई बनते हैं।

निर्मला जी ने कहा कि उनकी आत्मकथा में न कोई किस्सा है न कोई किस्सागोई। जो सच है वही उन्होंने लोगों के सामने रखा है। आत्मकथा में सच्चाई के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि भीतर की ईमानदारी से भी हिम्मत आती है।

इस मौके पर राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा कि लेखक और पाठक के बीच प्रकाशक एक महत्वपूर्ण कड़ी का काम करता है। इसी कड़ी में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित निर्मला जी की आत्मकथा में कहीं न कहीं राजकमल प्रकाशन की यात्रा की झलकियां भी पाठकों को देखने को मिलेंगी। कार्यक्रम का संचालन डॉ. रेखा सेठी ने किया।

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OUTLOOK 27 November, 2015
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