मुक्तिबोध जन्मशतीः बोले गीत चतुर्वेदी, हिंदी कविता में उजाला लाती है “अंधेरे में”
कवि, कथाकार एवं आलोचक गजानन माधव 'मुक्तिबोध' की जन्मशती के अवसर पर दो दिवसीय कार्यक्रम की शुरुआत बुधवार को नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में हुई। ‘युवा 2017’ नामक इस कार्यक्रम में देश के करीब 30 शहरों के 50 से ज्यादा हिंदी के युवा लेखक हिस्सा ले रहे हैं। रजा फाउंडेशन एवं कृष्णा सोबती शिवनाथ निधि की ओर से आयोजित किया जाने वाला यह सालाना जलसा है। इस बार युवा लेखकों की चर्चा का केंद्र मुक्तिबोध, निर्मल वर्मा, कृष्णा सोबती, अज्ञेय और कृष्ण बलदेव वैद की कालजयी रचनाएं हैं।
पहले दिन की शरुआत राहुल सिंह की पुस्तक ‘विचार एवं आलोचना’ के लोकार्पण से हुई। इसके बाद मुक्तिबोध की रचना ‘अंधेरे में’ पर लेखकों ने अपने विचार रखे। गीत चतुर्वेदी ने कहा कि मुक्तिबोध हिंदी कविता पर विशाल स्पॉटलाइट की तरह हैं जो बाहर से अंदर उजाला लाते हैं। वे हिंदी रचना संसार की संधि बिंदु हैं। यही कारण है कि हिंदी का रचना संसार मुक्तिबोध के पहले और मुक्तिबोध के बाद देखा जाता है।
संतोष चतुर्वेदी ने कहा कि अंधेरे की तरफ जाने से सब बचना चाहते हैं। मुक्तिबोध ने उस दिशा में जाने का जोखिम उठाया। किसी भविष्यवक्ता की तरह साफगोई से समाज की असंगतियों को अपनी कविता में बयां किया। उनका सपना था कि समाज का अंतिम व्यक्ति भी गरिमा से जी सके, जो आज भी अधूरा है। अबंर पांडे ने कहा कि अंधेरे में दरअसल प्रकाश की ओर जाने की यात्रा है। इस कविता में मुक्तिबोध ने सबसे ज्यादा जिन शब्दों का इस्तेमाल किया है वे प्रकाश से ही जुड़े हैं। विपिन चौधरी ने बताया कि अंधेरे में ने सामाजिक संवेदनाओं को लेकर अगली पीढ़ी के रचनाकारों की दृष्टि को बदल देने का काम किया।
संस्था के प्रबंध न्यासी अशोक वाजपेयी ने अपने आरंभिक वक्तव्य में कहा कि जीवन और सच्चाई साहित्य से हमेशा बड़े और व्यापक होते हैं। युवा लेखकों को जो स्वतंत्रता मिली हुई हैं वह उनके पुरखों का अर्जन है, उनका नहीं। युवाओं को आत्मरति से बचना चाहिये न की उन्हें पुरस्कारों, मान्यता के लिए कोई जुगाड़ करना चाहिए।
दूसरे सत्र में कृष्णा सोबती की ‘जिंदगीनामा’ और आखिरी सत्र में निर्मल वर्मा की ‘अन्तिम अरण्य’ पर लेखकों ने अपने विचार रखे। ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रताः कटौतियां, चुप्पियां, चतुराई और चालाकियां’ पर परिचर्चा भी हुई। इस दौरान हिंदी के कई नामचीन लेखक मौजूद थे। गुरुवार को निर्मल वर्मा की मलयज की आलोचना से शुरुआत होगी। इसके बाद कृष्ण बलदेव वैद की ‘उसका बचपन’, अज्ञेय की ‘असाध्य वीणा’ पर लेखक अपने अनुभव साझा करेंगे। ‘हम क्या याद करे और क्या भूल रहे हैं’ विषय पर परिचर्चा भी होगी। दो दिनों की चर्चाओं पर आधारित एक किताब ‘कालजयी एवं युवा’ भी जारी की जाएगी।