‘सफल होने की होड़ और बाजारवाद चिंता का विषय’
राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित अपनी नई पुस्तक जानकीदास तेजपाल मैनसन पर एक परिचर्चा सत्र के दौरान सरावगी ने कहा, समय के ऐसे दौर में लिखना जारी है जब न नक्सलवाद चूका है और न तिकड़मों का तंत्र। समय की नब्ज लेखक के हाथ के नीचे धड़क रही है। उन्होंने कहा कि बहुत से लोगों की रोमांटिक क्रांतिकारिता बाद में सफल होने की दौड़ में बदल जाती है और फिर बाजार उन्हें निगल जाता है।
आज देखें तो बाजार सबके लिए मूल्यबोध का सरकता है। दरकता पैमाना बन गया है। बाजार ही साधन और साध्य दोनों बन गया है। चाहे पुराने नक्सलवादी हों या फारेन रिटर्न इंजीनियर। ऐसे में लेखकों की जिम्मेदारी काफी बढ़ जाती है। इस अवसर पर राज्यसभा की पूर्व सदस्य डा. चंद्रा पांडे ने कहा कि विमर्शों के इस दौर में साहित्य खांचों में विभाजित हो गया है और उसमें विमर्श अधिक तथा साहित्य कम हो गया है।
ऐसे में उपन्यास जानकीदास तेजपाल मैनसन काफी राहत लेकर आया है। लेखिका राजश्री शुक्ल ने कहा कि विकास की रेल को चलाएं जाने के क्रम में इमारतें ढह जाती है। यह उपन्यास ढहाए जाने के प्रतिरोध को काफी मार्मिक ढंग से पेश करता है।