दलीप कौर तिवाणा ने लौटाया पद्मश्री, सिलसिला तेज
तिवाणा ने कहा, ''यह बुद्ध और नानक की धरती है। सिख 1984 में सांप्रदायिकता की घटनाएं देख चुके हैं। अब मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है। भारत के सांप्रदायिक सदभाव खत्म करने और समाज को बांटने की कोशिशें की जा रही हैं। जो सच कहते और लिखते हैं और जो सच के साथ खडे़ हैं, उन पर जानलेवा हमले हो रहे हैं। मैं देश में बन रहे ऐसे हालातों का विरोध करते हुए अपना पद्मश्री सम्मान लौटा रही हूं। मेरा यह फैसला नयनतारा सहगल और दूसरे लेखकों के समर्थन में है।'' लुधियाना में जन्मीं और पटियाला में रह रहीं तिवाणा पटियाला विश्वविद्यालय में पंजाबी भाषा की प्रोफेसर रह चुकी हैं। उन्हें 2004 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। पंजाब सरकार ने वर्ष 2007 और 2008 में पंजाबी साहित्य शिरोमणि पुरस्कार दिया था।
इस बीच, अपना साहित्य अकादमी अवाॅर्ड लौटा रहे लेखकों की कड़ी में आज एक और कन्नड़ लेखक व हिंदी अनुवादक शामिल हो गए हैं। कन्नड़ लेखक प्रोफेसर रहमत तारीकेरी ने कहा कि अंधविश्वास के खिलाफ लड़ने वाले प्रो. एमएम कलबुर्गी, नरेंद्र दाभोलकर एवं गोविंद पानसरे की हत्या के विरोध में वह अपना साहित्य अकादमी अवाॅर्ड लौटा रहे हैं। जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेवानिवृत प्रोफेसर और हिंदी अनुवादक चमन लाल ने भी 2002 में साहित्य अकादमी की ओर से खुद को मिला राष्टीय अनुवाद पुरस्कार लौटा दिया है। साहित्य अकादमी के अध्यक्ष को लिखे पत्र में उन्होंने यह भी कहा कि वह 15000 रूपए की पुरस्कार राशि भी चेक के जरिए लौटा रहे हैं।
नयनतारा सहगल और अशोक वाजपेयी सहित अब तक कम से कम 25 लेखक अपने अकादमी अवाॅर्ड लौटा चुके हैं और पांच लेखकों ने साहित्य अकादमी में अपने आधिकारिक पदों से इस्तीफा दे दिया है। साहित्य अकादमी ने इन घटनाक्रमों पर चर्चा के लिए 23 अक्तूबर को आपात बैठक बुलाई है।