‘अब क्या’ सोचने का वक्त
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के एनेक्सी हॉल में उस वक्त माहौल में उत्तेजना आ गई जब साहित्य अकादमी सम्मान लौटने की शुरुआत करने वाले लेखक उदय प्रकाश ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब महात्मा गांधी की मूर्ति का पैर छू रहे थे और जब उन्होंने कहा की यह देश बुद्ध और महात्मा गांधी का देश है, तो उनको गोडसे के याद नहीं आई। उसी राष्ट्रवाद का नाम लेकर एक सनकी जातिवादी, आतंकवादी ने उस व्यक्ति की हत्या कर दी जिसे राष्ट्रपिता कहा गया। आप राष्ट्रपिता की हत्या करते हैं और कहते हैं आप राष्ट्रवादी हैं। यह सुनते ही वहां मौजूद संघ विचारधारा के लोगो में आक्रोश फैल गया।
पिछले दिनों पुरस्कार वापसी के मुद्दे पर जिस तरह का माहौल बना है, उसमें सकारात्मक बातचीत का माहौल बनाने के लिए यह पहल की गई थी। कार्यक्रम में साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले अशोक वाजपेयी, उदय प्रकाश के अलावा विष्णु नागर, प्रियदर्शन और ज्ञानेन्द्र भरतरिया मंच पर मौजूद थे।
संस्था के सचिव चंद्र प्रकाश तिवारी ने कार्यक्रम की शुरुआत में साहित्य और साहित्यकारों की सामाजिक और राजनितिक भूमिका को बेहद अहम बताते हुए कहा, असहिष्णुता के सवाल पर देश के साहित्यकार, कलाकार और फिल्मकार खेमों में बंटे नजर आ रहे हैं। इस बात से असहमति जताते हुए प्रियदर्शन ने कहा कि इसे दो पक्षों में न बांटे। लेखक राजनितिक संगठनों की तरह संगठित प्राणी नहीं है। उन्होंने कहा कि सब कुछ स्पष्ट ढंग से समझने कि जरूरत है। पुरस्कार वापसी वाले लेखकों का कोई संघ नहीं है बस आसपास की बेचैनी, घुटन, बढ़ रही हताशा के खिलाफ या तो ये लिखेंगे या फिर कोई दूसरा रास्ता न होने की वजह से वही करेंगे जो इन्होने अभी किया यानि अपना पुरस्कार लौटाएंगे। जैसे संस्थाओं का क्षरण हो रहा है वैसे ही शब्दों का भी क्षरण हो रहा है। वित्त मंत्री ने इसे मन्युफैक्चर्ड बगावत कहा लेकिन मेरे ख्याल से किसी लेखक ने कोई बगावत नहीं की। उन्होंने कोई कानून नहीं तोड़ा। वर्षों बाद साहित्य अपने स्वरूप में इतना प्रासंगिक दिख रहा है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि आखिर यह स्थिति आई क्यों?
विष्णु नागर ने अपने व्यंग्यात्मक अंदाज में सत्ताधारी पार्टी को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा, लेखक अपना विरोध वक्तव्य तक सीमित रखते थे। अब जो स्थितियां आ गई हैं उन्होंने पीछे लौटने का रास्ता नहीं छोड़ा। अब साहित्यिक दुनिया से बाहर आने का समय आ गया है और यह स्थिति इसलिए नहीं बनी कि लेखक राजनितिक सोच वाले हैं।
ज्ञानेन्द्र भरतरिया ने सत्ता के पक्ष को मजबूत बनाते हुए कहा कि कहां से सहिष्णुता घट गई या बढ़ गई? कोई पैमाना है? लेखकों की नीयत पर हम क्यों न शक करें कि आप प्रधानमंत्री के पीछे नहीं पड़े? आप हिंदुत्व के पीछे नहीं पड़े। केरल में बाइबिल के पर्चे फाड़ देने की घटना को डेढ़ साल बाद सरकार कहती है की यहां कोई घटना नहीं, 20 साल पहले डांग में हुई घटना पर तमाम बकवास होने के बाद 2 साल पहले पता चलता है कि यह तो एक स्टिंगर के दिमाग कि उपज थी। दोनों जगह हमारी सरकार नहीं थी मैं यहां आपका जवाब दे रहा हूं इसलिए हमारी सरकार कह रहा हूं। सच को पोंछ देने से रंगत नहीं चली जाती।
उदय प्रकाश ने कहा, जो लेखक है वह कलाकार होता है, इसलिए हर बार लेखक ही दंडित होता है कलाकार ही मारे जाते हैं और यही बात है कि आपको लेखक कि बात नागवार गुजरती है। जब कोई राजनेता एक दूसरे को पिशाच, भूत, ठग, तांत्रिक या चोर कहता है तब आप खुश होते हैं तालियां बजाते हैं, लेखक को आप कमजोर पाते हैं तो खड़े हो जाते हैं उसे मारने के लिए।
उदय प्रकाश ने यह बात तब कही जब दक्षिण पंथ के लोगो ने उदय प्रकाश द्वारा गोडसे पर की गई टिप्पणी को मोदी के लिए मान लिया और उदय प्रकाश को बेहूदा तक कह डाला। इस प्रकरण के बाद उदय प्रकाश भावुक हो गए और बताया की वह हिंदू हैं मगर उनके परिवार में कई रोम कैथोलिक हैं। उन्होंने भारत की समृद्ध परंपराओं को रखते हुए कहा कि गांधी और बुद्ध का देश बताने की मजबूरी थी प्रधानमंत्री की। वह कैसे बताते की वह गोडसे की विचारधारा से हैं। गोडसे और दबे-छुपे अंदाज में मोदी को धूर्त इत्यादि कहने पर भारतीय धरोहर पत्रिका से जुड़े प्रवीण शर्मा और डायलॉग इंडिया के अनुज अग्रवाल ने कड़ा प्रतिवाद किया।