कुल्लू इतिहास का आइना बनेंगी तीन पुस्तकें
इनके जरिये पाठक निरमंड से रोहतांग तक के दर्शनीय स्थलों से रूबरू हो सकेंगे। कुल्लू के उपायुक्त एवं जिला सांस्कृतिक परिषद के अध्यक्ष राकेश कंवर ने बताया कि दशहरा उत्सव पर रिलीज होने वाली इन तीनों पुस्तकें के माध्यम से पहली बार कुल्लू जिला का प्राकृतिक सौंदर्य, संस्कृति, इतिहास, लोगों का रहन-सहन और खान-पान एक विस्तृत और समग्र रूप में विश्व के सामने आएगा।
पहली पुस्तक ‘ए सैक्रेरड जर्नी’ यानि एक पवित्र यात्रा में कुल्लू जिला के बाहरी सिराज क्षेत्र की सतलुज घाटी से सटे गांव नीरथ के सूर्य मंदिर से लेकर मनाली के निकट ब्यास नदी के उदगम स्थल रोहतांग तक के सभी मुख्य देव स्थलों और पर्यटक स्थलों के लगभग 250 शानदार चित्र व विवरण प्रकाशित किए जा रहे हैं।
कंवर ने बताया कि कई विद्वान नीरथ गांव को हड़प्पा सभ्यता से भी जोड़ते हैं जिसका विस्तार निरमंड तक कहा गया है। उन्होंने बताया कि निरमंड, आनी, बंजार और कुल्लू के विभिन्न स्थलों से रूबरू करवाते हुए यह यात्रा जिला के अंतिम छोर रोहतांग दर्रे पर समाप्त होगी जिसे ‘ग्राउंड ऑफ डेड’ यानि मौत का दर्रा भी कहा जाता है। इस पुस्तक में प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर दर्शनीय स्थलों के खूबसूरत चित्रों के साथ-साथ इनसे संबंधित बहुत ही महत्वपूर्ण व रोचक जानकारियां भी होंगी।
कंवर के अनुसार पेनेलॉप चैटवुड, ब्रिटिश इंडिया के आर्मी कमांडर की पुत्री व अन्य विदेशी यात्रियों के यात्रा वृतांत भी इस पुस्तक में शामिल किए गए हैं। ब्रिटिश इंडिया के आर्मी कमांडर की पुत्री ने वर्ष 1931 में आनी व कुल्लू के विभिन्न क्षेत्रों की यात्रा की थी। यहां के पहाड़ों से उसे बहुत लगाव था और वह आजादी के बाद भी कई बार यहां आई थीं। 1986 में देहांत के बाद उन्हें जलोड़ी दर्रे के निकटवर्ती गांव खनाग में ही दफनाया गया था।
उपायुक्त ने बताया कि दूसरी पुस्तक जिला कुल्लू के खान-पान से संबंधित होगी। कुल्लू जिला के विभिन्न पारंपरिक व्यंजन सिड्डू, असकलू, बबरू, फेम्ड़ा और गीची आदि इस पुस्तक में कुल्लवी संस्कृति व खान-पान की महक बिखेरेंगे। देश-विदेश के पर्यटक इन पारंपरिक व्यंजनों से रूबरू होंगे। इसी पुस्तक में कुल्लू जिला के विभिन्न पर्यटक स्थलों पर भारतीय, चाइनीज, तिब्बतियन, इजरायली, कोरियाई, नेपाली, लेबनानी, जर्मनी और अन्य देशों के व्यंजन परोसने वाले रेस्तरांओं का ब्यौरा भी होगा।
तीसरी पुस्तक में पिछले लगभग 1400 वर्षों के इतिहास के विभिन्न कालखंडों में कुल्लू आने वाले प्रसिद्ध विदेशी यात्रियों के यात्रा वृतांत होंगे। यह पुस्तक सातवीं सदी के मशहूर चीनी यात्री ह्वेन त्सांग से शुरू होगी और बीसवीं सदी की क्रिस्टिना नोबल के यात्रा वृतांत पर समाप्त होगी। क्रिस्टिना नोबल बीसवीं सदी के अंतिम दशक में कुल्लू आई थीं और यहीं बस गई थी।