दलित-आदिवासी संघर्षों के लिए समर्पित थे एस.आर.संकरन
जनपक्षधर नीतियों के निर्माता और वंचित तथा दलितों के आंदोलनों के साथी वरिष्ठ आईएएस अधिकारी स्वर्गीय एस.आर. संकरन के अथक प्रयास आज भी किवदंती सरीखे प्रशासनिक हलके और जनता के बीच जिंदा हैं। इन्हें जिंदा रखकर ही संविधान के प्रावधानों को जनता के हित में इस्तेमाल करने का रास्ता खोजा जा सकता है। ये बातें हैदराबाद में काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट संस्था द्वारा आयोजित के कार्यक्रम में उभरकर सामने आई।
सीएसडी ने पांच अक्टूबर को संविधान में सक्रियता, एस.आर. संकरन का जीवन और काम विषय पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया। इसमें बाल मजदूरी उन्मूलन, दलितों- आदिवासियों के सम्मान और अधिकारों के संघर्षों तथा शांति वार्ताओं में अहम भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ अधिकारी संकरन को अलग-अलग पहलुओं से याद किया गया। प्रशासनिक सेवा में संकरन ने जो जनपक्षधरता की मिसाल कायम की, वह आज भी आईएएस कैडर के लिए नजीर के तौर पेश की जाती है, इस बारे में उनके पुराने दिनों के सरकारी टीएल संकर ने बताया। टीएल संकर ने बताया कि किस तरह से जब वे दोनों साथ-साथ पढ़ते थे, तब भी जनसेवा का भाव उनमें प्रबल था। उन्होंने यह भी रखा कि जिन मुद्दों को संकरन ने उठाया, वे आज भी बेहद प्रासंगिकत बने हुए हैं। चाहे वह बाल मजदूरी से जुड़ा मुद्दा हो या फिर मैले से जुड़ा मुद्दा हो।
शिक्षाविद् प्रो. डी. नरसिम्हा रेड्डी ने बताया कि किस तरह से संकरन का जोर दलितों और आदिवासियों को गांव में जमीन दिलाने पर रहा। इसने जमीनी स्तर पर बड़े परिवर्तन भी किए। संकरन को बेहद करीब से जानने वाली महिला अधिकार कार्यकर्ता वसंत कन्नाबिरान ने उनके द्वारा नक्सलियों और सरकार में चलाई गई शांति वार्ता के दौर पर रोशनी डाली। वसंत ने बताया कि शांति वार्ता के जटिल दौर में भी संकरन अपने सिद्धांतों से एक कदम भी पीछे नहीं डिगते थे। उन्हें शांति वार्ता की सफलता पर 100 फीसदी भरोसा था।
अपने जीवन के अंतिम समय तक एसआर. संकरन सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हुए थे। वह इस संस्था के चेयरमैन करीब दो दशक तक रहे। उनकी इस आंदोलनकारी भूमिका के बारे में विस्तार से बताया सफाई कर्मचारी आंदोलन के नेता बेजवाड़ा विल्सन ने। उन्होंने बताया कि संकरन उन विरले लोगों में थे जो गैर-दलित होने के बावजूद, बिना किसी नाम या शोहरत के दिल से दलितों के उद्धार के लिए अपनी पूरी ऊर्जा लगाते हैं। बातचीत के इस दौर में नेल्लोर के प्रो. वी. रामाकृष्णा ने बताया कि किस तरह से आज भी संकरन वहां किवंदिती की तरह मौजूद है। नल्लोर में ही संकरन ने जिलाधिकारी के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई थी।
कार्यक्रम के अंत में सीएसडी की निदेशक डॉ. कल्पना कन्नाबिरान ने चिंचु जनजाति पर फिल्माई गई एक डॉक्यूमेंटरी दिखाई-स्कूलिंग इन नामाल्ला। इस अति पिछड़ी जनजाति चिंचु के लिए अलग से स्कूलों-पढ़ाई, आवासीय स्कूलों की व्यवस्था एसआर. संकरन ने ही की थी। यह फिल्म इन बच्चों और समुदाय की स्थिति को सामने लाती है।