साहित्य अकादेमी में मना विश्व पुस्तक दिवस
कार्यक्रम में एम. श्रीधर, सूचना आयुक्त, केन्द्रीय सूचना आयोग, अर्पणा कौर, प्रख्यात चित्रकार, शोभना नारायण, प्रख्यात कथक नृत्यांगना, राघव चन्द्र, अतिरिक्त सचिव एवं वित्तीय सलाहकार, भारत सरकार, ए.पी. महेश्वरी, अतिरिक्त महानिदेशक, बी.एस.एफ़., ब्रजेश शर्मा, एम.डी. मेडिसिन, राममनोहर लोहिया अस्पताल एवं पंकज वोहरा, प्रख्यात पत्रकार वक्ता के रूप में उपस्थित हुए।
स्वागत भाषण के क्रम में साहित्य अकादेमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव ने किताबों के महत्त्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति एवं परंपरा का सदियों से वहन करती हुई पुस्तकें हमारे जीवन को प्राचीन, वर्तमान और भविष्य के जीवन से परिचित कराती हैं। कार्यक्रम के अध्यक्ष जवाहर सरकार ने पुस्तक प्रकाशन की विभिन्न समस्याओं की ओर ध्यान दिलाते हुए भारत में पुस्तकों के प्रकाशन को नियमित करने की विभिन्न विधियाँ बताईं। उन्होंने कहा कि पुस्तकें एक जगह से दूसरी जगह तक जीवन का प्रसार करती हैं और पढ़ने-लिखने से प्यार करने वाले का जीवन समृद्ध करती हैं।
एम. श्रीधर ने अपनी पढ़ी हुई पहली पुस्तक और शब्दों से पहले परिचय को बहुत आत्मीयता से याद करते हुए बताया कि किताबें हमें प्रेरित करती हैं और हमारे जीवन के उद्देश्यों को निर्धारित करती हैं। उन्होंने अपनी बात अन्ना हजारे और संत रामानुजन के जीवन में किताबों से आए प्रभावों को प्रस्तुत किया। प्रख्यात चित्रकार अर्पणा कौर ने बचपन में अपनी माँ अजीत कौर द्वारा दी गई गुरु ग्रंथ साहब में पढ़ी गई विभिन्न संतों की वाणी और अपने जीवन पर उनके प्रभावों को स्पष्ट किया। उन्होंने कबीर, नानक, नामदेव, रैदास, बोधा आदि की वाणियाँ भी उद्धृत कीं। शोभना नारायण ने अपने सम्बोधन में दर्शन, साहित्य, संगीत, नृत्य आदि विभिन्न विधाओं की आपसी आवाजाही को रेखांकित किया और स्पष्ट किया कि इस सब में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका पुस्तकें ही निभाती हैं। उन्होंने अपने जीवन में पढ़ी पहली पुस्तक श्रीमद् भगवत गीता के अध्याय ग्यारह से अपने को प्रभावित बताते हुए जीवन में संपूर्णता प्राप्ति के मार्ग को साझा किया। उन्होंने कालीदास, कबीर, बिहारी, उमर खैयाम, रवीन्द्रनाथ टैगोर, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, बच्चन, दिनकर आदि साहित्यकारों को याद करते हुए कहा कि किताबें अभी भी हमारा समय रचती हैं। आगे उन्होंने कहा कि तकनीक के इस युग में भी वे छपी हुई किताबें पढ़ना पसंद करती हैं।
राघव चन्द्र ने अपने जीवन में पढ़ी हुईं किताबों में से तीन किताबों की चर्चा करते हुए कहा कि किताबों की सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वे हमारे भीतर मानवीय प्रेरणा जगाती हैं, जिसके द्वारा हम अपने जीवन की विभिन्न परिस्थितियों और समस्याओं से लड़ पाते हैं। ए.पी. महेश्वरी ने किताबों की तुलना एक सपने से किया। उन्होंने किताबों को ‘ज्ञान की खिड़की’ कहा, जिससे जब और जितना चाहें हम प्रकाश ले सकते हैं। उन्होंने साहित्य से संबंध के द्वारा अपने पुलिस कार्य-जीवन में से कई अनुभवों को साझा किया, जिससे उन्हें अनेक मामले सुलझाने में मदद मिली। उन्होंने यह भी कहा कि अलग-अलग समय में पढ़ी गईं किताबें हमारे जीवन में एक सम्यक प्रभाव डालती हैं। उन्होंने हर व्यक्ति को एक किताब के रूप में चिन्हित करते हुए अपनी बात समाप्त की। ब्रजेश शर्मा ने अपने जीवन में किराये पर लेकर पढ़ी गई किताबों से लेकर वृहद पुस्तकालय तक की अपनी यात्रा को याद किया। उन्होंने बर्टोल्ट ब्रेख्त की कविताओं को सुनाते हुए उनसे मिली प्रेरणा को श्रोताओं से साझा किया। आगे उन्होंने कहा कि किताबें ही एक उचित विश्वदृष्टि बनाने में सहायता करती हैं। अंत में बोलते हुए पंकज वोहरा ने पत्रकारिता में किताबों की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने साहिर लुधियानवी की नज़्म सुनाते हुए पुस्तकों के प्रति अपना प्यार और उनसे मिलने वाली प्रेरणा को श्रोताओं से साझा किया।
अपने अध्यक्षीय भाषण में जवाहर सरकार ने कहा कि पुस्तकों ने ज्ञान को एक लोकतांत्रिक तरीके से सभी के लिए सुलभ किया। किताबें हमें सीखने, सोचने, जानने और विश्लेषण करने की समझ देती हैं और उनकी हमारे जीवन में किसी-न-किसी रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका अवश्य होती है।