ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है
लगभग दो साल पहले 11 मई का दिन ऐसा दिन था जिसका उन लोगों को शिद्दत से इंतजार था जो मंटों के मुरीद हैं। पहली दफा सआदत हसन मंटो की जन्मशताब्दी के मौके पर उनकी तीनों साहबजादियों निगहत पटेल, नुजहत अरशद और नुसरत जलाल को एक साथ बुलाया गया। अपने वालिद को प्यार करने वाले हर शख्स से वे शिद्दत से मिलीं। इस दिन मंटो के पुश्तैनी गांव पपड़ौदी (समराला, लुधियाना) और दिल्ली में जलसे हुए, मंटो के नाम पर वादों की बौछार लगा दी गई। टीवी पर नामचीन लोगों ने अपने इंटरव्यू ऐसे दिए जैसे मंटो उन्हें बीती रात सपने में सब बताकर गए हों लेकिन आज दो साल होने को आए किसी एक वादे पर अमल नहीं हुआ।
पंजाब में पंजाबी लेखक मंच (समराला), मंटो फाउंडेशन और दिल्ली में उर्दू आलमी ट्रस्ट की ओर से यह कार्यक्रम आयोजित किए गए थे। इन वादों में शामिल था मंटो के गांव पपड़ौदी में उनके नाम से गांव की दहलीज पर गेट बनवाना, गांव लाइब्रेरी खुलवाना, जिसमें पंजाबी में तर्जुमा कर मंटो की किताबें होंगी, गांव में मंटो के नाम पर तीन करोड़ रुपये की लागत से ऑडिटोरियम बनाया जाएगा।उस समय मंटो के नाम पर हर तरफ टीवी चैनल में चेहरा दिखाने के मारे पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल, उनके भाई बीके सिब्बल, पंजाब के और पूर्व कांग्रेसी नेता बीर दविंदर सिंह भी पीछे नहीं रहे। 100वीं वर्षगांठ थी,इसलिए यहां-वहां से फंडिंग जुटाने और मंटो की विरासत के नुमाएंदे बनने को हर कोई बेकरार था। चाहे वो पंजाबी लेखक मंच (समराला) हो या उर्दू आलमी ट्रस्ट या फिर कपिल सिब्बल सरीखे नेता। गौरतलब है कि कपिल सिब्बल के पिता हीरा लाल सिब्बल अपने जमाने के जाने-माने वकील थे, जिन्होंने मंटो के केस लड़े थे। मंटो के प्रति इन लोगों का प्रेम और दिवानापन यह है कि उनपर किए वादों को पूरा करना तो दूर कुछ अरसा पहले जब लाहौर में लक्ष्मी मेंशन एक बिल्डर को बेच दिया गया तो किसी ने इसकी निंदा तक नहीं की। पाकिस्तान जाने के बाद मंटो लक्ष्मी मेंशन में रहते थे, वहीं उन्होंने आखिरी सांस ली। पाकिस्तान में तो खैर इस सिलसिले में किसी से उम्मीद नहीं की जा सकती।
पाकिस्तान के जानेमाने पत्रकार एवं फिल्मकार हफीज चाचड़ बताते हैं ‘ लक्ष्मी मेंशन बिक गया, खरीदा भी तो बिल्डर ने जबकि वो एक धरोहर थी। पाकिस्तान से हम उम्मीद ही नहीं कर सकते लेकिन कम से कम भारत को तो तहदिल से मंटो को सम्मान देना चाहिए। पाकिस्तान में अगर मंटो ने हुकूमत और मौलवियों के हक में लिखा होता वहां भी उन्हें सम्मान मिलता। मेरा मानना है कि भारत में लोग मंटो पर पाकिस्तान के मुकाबले जिम्मेदारी से बात करेंगें।
वादों पर पंजाबी लेक मंच (समराला) के सचिव दिलजीत शाही का कहते हैं गांव की लाइब्रेरी में कुछ किताबें तो हैं लेकिन मंटों सीरीज जिसका पंजाबी में तर्जुमा करवाकर यहां रखना था वह नहीं रखा क्योंकि अभी तक किसी ने तर्जुमा नहीं किया है। जहां तक गांव के गेट की बात है तो थोड़ा सा ही बनवा पाए हैं बाकि के लिए पैसे नहीं हैं और तीन करोड़ रुपये के ऑडिटोरियम के बारे में शाही कहते हैं कि ऑडिटोरियम बनवाने के लिए उर्दू आलमी ट्रस्ट को पैसे देने थे उन्होंने हमें एक पाई नहीं दी। मंटो फाउंडेशन की शायदा बताती हैं कि हमने कभी बड़े वादे नहीं किए। अपने सीमित साधनों में हम मंटो पर बातचीत, नाटक या सेमिनार करवा पातें हैं जो करवाते हैं।
मंटो को केवल उनके जन्मदिवस पर याद करने के लिए पंजाबी साहित्यकार देसराज काली कहते हैं कि लोग हर साल दुर्गा पूजा करते हैं। फिर मूर्ति समंदर में बहा देते हैं, मंटो के साथ भी ऐसा ही हो रहा है। वह कहते हैं ‘कुछ साल पहले मंटो को खोजने अमृतसर गए। वह वहां के हिंदू कॉलेज में पढ़े , कूचां वकीलां वाली गली में रहे, अनेक कहानियों ने वहां जन्म लिया पर शहर को खबर नहीं।