कौन हैं नोबेल विजेता हरगोबिंद खुराना, जिन पर गूगल ने डूडल बनाया है
गूगल आजकल अपने डूडल्स में ऐसे लोगों को याद कर रहा है, जिनका नाम कम चर्चित है या चर्चित है तो उन्हें भुला दिया गया है। इसे गूगल की तरफ से अच्छी पहल माना जा सकता है।
इसी क्रम में आज गूगल ने अपने डूडल के जरिए आज भारतीय वैज्ञानिक प्रोफेसर हरगोबिंद खुराना को याद किया है। 9 जनवरी 1922 को पंजाब में जन्मे प्रोफेसर खुराना ने सबसे प्रोटीन सेंथेसिस में न्यूक्लियॉटाइड के महत्व को समझाया था। इसके अलावा इन्होंने ही टेस्ट ट्यूब बेबी का भी परीक्षण कर, इसकी संभावनाएं तलाशी थीं।
भारत सरकार ने छात्रवृत्ति प्रदान कर उन्हें शोध कार्यों के लिए इंग्लैंड भेजा था। वह साल 1952 से 1960 तक यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया में फैकल्टी रहे, जहां उन्होंने ऐसे शोध कार्य किए जिनके लिए उन्हें अमेरिकी वैज्ञानिकों मार्शल डब्ल्यू. नीरेनबर्ग और डॉ. रॉबर्ट डब्लू. रैले के साथ संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार दिया गया। इस अनुसंधान से यह पता लगाने में मदद मिली कि कोशिका के आनुवंशिक कूट को ले जाने वाले न्यूक्लिक एसिड न्यूक्लिओटाइड्स कैसे कोशिका के प्रोटीन संश्लेषण (सिंथेसिस) को नियंत्रित करते हैं।
हायर एजुकेशन के बाद खुराना भारत लौटे लेकिन उन्हें यहां काम करने के सही अवसर नहीं मिले जिसके बाद वह वापस इंग्लैंड चले गए। साल 1966 में वह अमेरिका के नागरिक बने और उन्हें नेशनल मेडिकल ऑफ साइंस पुरस्कार दिया गया। उन्होंने स्विट्जरलैंड की ईस्टर एलिजाबेथ सिबलर से शादी की। उनकी पत्नी का साल 2001 में निधन हो गया था। उनकी बेटी एमिली की वर्ष 1979 में मौत हो गई थी। खुराना का नौ नवंबर 2011 को निधन हो गया था। उनके परिवार में बच्चे जूलिया और दवे हैं।
विज्ञान के क्षेत्र में इनके योगदान के लिए सन 1968 में चिकित्सा क्षेत्र के नोबल प्राइज से भी सम्मानित किया गया। इसके अलावा पद्म विभूषण, विलियर्ड गिब्स अवार्ड, अलबर्ट लास्कर अवार्ड और गैर्डनर फाउंडेशन इंटरनैशनल अवार्ड जैसे ढेरों पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
जीन स्टडी और डीएनए ऐनालिसिस विशेषज्ञ डॉ. हरगोबिंद को भारत में काम के सही मौके ना मिल पाने पर वह कैम्ब्रिज यूनिवर्स्टी चले गए और वहीं रहकर काम करने लगे। मॉलिक्युलर बायॉलजी में तमाम अध्ययन और रिसर्च करने वाले प्रफेसर खुराना की मौत 9 दिसंबर 1911 को हुई।