Advertisement
02 August 2023

बिंदु सिन्हा : लोकनायक जयप्रकाश की भांजी, जिन्होंने साहित्य जगत में कहानी लेखन से पहचान बनाई

हिंदी साहित्य की मुख्यधारा में बहुत ऐसे लेखक रहे जो चुपचाप साहित्य सृजन करते रहे।गुटों से दूर रहे।लेखक संगठनों से नहीं जुड़े।एक ऐसा ही नाम बिंदुसिन्हा का था लेकिनशायद आपने नहीं सुना होगा! आप ममता कालिया, मृदुला गर्ग, चित्रा मुद्गल, नासिरा शर्मा, मृणाल पांडे जैसी लेखिकाओं को जानते होंगे लेकिन आप शायद बिंदु सिन्हा को नहीं जानते। बिहार के भोजपुर जिले के मुरार गांव में तीन मार्च 1933को एक जमींदार परिवार में जन्मी बिंदु सिन्हा अगर आज जीवित होती तो 90 साल की होतीं। यानी मंन्नू भंडारी से वह दो साल छोटी थी लेकिन 25 मई 1995 को कैंसर के कारण वह मात्र 58 वर्ष में ही परलोक सिधार गयीं। उनकी दो बड़ी बहने थीं और उनसे छोटे चार भाई बहन थे।

 

उनकी पहली कहानी पटना के नारी जगत में छपी थी लेकिन जब1969 में उनकी कहांनी धर्मयुग में 'पंखों वाली चिड़िया' छपी तब वह राष्ट्रीय स्तर पर पहचानी गयीं।उन्हें लेखन में रेणु जी ने प्रोत्साहित किया था।बिंदु जी के मामा जयप्रकाश नारायण थे और रेणुजी जे पी के सेनानी थे।इस कारण रेणुजी से उनका परिचय आत्मीय था।

Advertisement

बिंदु जी के पिता महेश प्रसाद बक्शी सरकारी विभाग में अभियंता थे।उनकी मां चंद्रकला देवी थीं। इस नाते उनकी पढ़ाई लिखाई डाल्टेनगंज के मिशनरी स्कूल में हुई ।फिरपिता के तबादला होने पर छपरा में भी हुई। वहां उन्होंने प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा पास की।

 

शादी के बाद उन्होंने होस्टल में रहकर पटना के वीमेंस कालेज से बी ए और हिंदी में एम ए किया।वह बचपन से मेधावी छात्रा थीं। कालेज में भी टीचर उनसे प्रभावित रहती थीं।जेपी भी उन्हें मानते थे और उनकी कहानियां पढ़ते थे।प्रभावती जी के निधन के बाद जब उनकी स्मृति में एक स्मारिका छपी तो उसके संपादन का भार जे पी ने बिंदु सिन्हा को दिया था।

 

बिंदु जी ने वीणा सिन्हा को बताया था कि उन्होंने 400 कहानियां लिखी थीं लेकिन उसे वे सहेज नहीं पाई।उन्होंने 3 उपन्यास लिखे थे।एक पूरा उपन्यास साप्ताहिक हिंदुस्तान में छपा था । हिंदी की सुप्रसिद्ध लेखिका उषा किरण खान ने एक अच्छा काम किया है उन्होंने बिंदु जी की सबसे छोटी बेटी के सहयोग से उनकी 45 कहानियां, 3 उपन्यास अंश और कुछ संस्मरण मिलाकर बिंदु समग्र छापा है क्योंकि उनकी अन्य रचनाएं नहीं मिल पायीं। शायद यही कारण है कि उनकी तरफ लोगों का ध्यान नहीं गया। 

 

बिहार में सुरेंद्र चौधरी, नंदकिशोर नवल, खगेन्द्र ठाकुर, रामवचन राय, जैसे आलोचक हुए लेकिन याद नहीं आता कि किसी ने नामोल्लेख किया हो। उनकी छोटी बहन बिहार सरकार में लंबे समय तक मंत्री रही। जिनके शिष्य जनता दल के अध्यक्ष संसद लल्लन सिंह रहे। लेकिन बिंदु सिन्हा ने कभी भी राजनीति का सहारा नहीं लिया और खुद को साहित्य साधना में लीन रखा। उनके पति हरि मोहन प्रसाद सिन्हा हाजीपुर में वकील थे। बिंदु सिन्हा की 1950 में 17 वर्ष की उम्र में शादी हो गई। विवाह के बाद उन्होंने बी ए और फिर एम ए किया। उनकी छह संतानें थी।

 

परिवार एवम बच्चों की देखभाल के कारण उनका लेखन उतना प्रकाश में नहीं आया यद्यपि वह निरंतर लिखती रहीं ।रेडियों में कार्यक्रम देती रहीं ।उसके लिए नाटक भी लिखे। साहित्य से शौक उन्हें गांव में अपने घर की लाइब्रेरी में पत्रिकाएं पुस्तके पढ़ने से हुआ।उनके पसंदीदा लेखको में यशपाल, अमृतलाल नागर, हजारी प्रसाद द्विवेदी, रेणु थे।

 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Bindu Sinha, jaiprakash Narayan niece Bindu Sinha story writer, Indian literature, Hindi books, Hindi literature
OUTLOOK 02 August, 2023
Advertisement