Advertisement
24 May 2018

'विद्रोही कवि' काजी नजरूल इस्लाम, जिन्होंने लिखे कृष्ण भजन और पौराणिक नाटक

File Photo

काजी नजरुल इस्लाम को ‘विद्रोही कवि’ कहा जाता है। वे बांग्ला भाषा के बड़े साहित्यकार, देशप्रेमी तथा बांग्लादेश के राष्ट्रीय कवि हैं। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश दोनों ही जगह उनकी कविता और गीतों की व्‍याप्ति है। वह सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल थे। 

1922 में काजी की एक कविता ‘विद्रोही’ काफी लोकप्रिय हुई थी, जिसने उन्हें उपनाम दिया था। कविता में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ बागी तेवर थे। इस कविता का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ। ब्रिटिश हुकूमत की आंखों में वह हमेशा गड़ते रहे। 

नजरुल का जन्म 24 मई, 1899 को पश्चिम बंगाल प्रदेश के वर्धमान जिले में आसनसोल के पास चुरुलिया गांव में एक गरीब मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनकी प्राथमिक शिक्षा धार्मिक (मजहबी) शिक्षा के रूप में हुई। किशोरावस्था में विभिन्न थिएटर दलों के साथ काम करते-करते उन्होने कविता, नाटक एवं साहित्य की पढ़ाई की।

Advertisement

नजरुल ने लगभग 3,000 गीतों की रचना की तथा साथ ही कई गानों को आवाज दी। इनको आजकल 'नजरुल संगीत' या ‘नजरुल गीति’ नाम से जाना जाता है।

लिखे कृष्ण भजन

नजरूल ने चाचा फजले करीम की संगीत मंडली के साथ थ्‍ाे। वह मंडली पूरे बंगाल में घूमती और शो करती। नजरूल ने मंडली के लिए गाने लिखे। इस दौरान बांग्ला भाषा को लिखना सीखा। संस्कृत भी सीखी और उसके बाद कभी बांग्ला, तो कभी संस्कृत में पुराण पढ़ने लगे।

इसका असर उनके लिखे में नजर आने लगा। उन्होंने पौराणिक कथाओं पर आधारित ‘शकुनी का वध’, ‘युधिष्ठिर का गीत’, ‘दाता कर्ण’ जैसी नाटक लिखे।

हिंदू लड़की से की शादी

काजी नजरूल इस्लाम ने तब एक हिंदू लड़की प्रमिला से शादी की थी, जिसका काफी विरोध हुआ था। प्रमिला ब्रह्म समाज से आती थीं। कई मजहब के ठेकेदारों ने नजरूल से कहा कि प्रमिला को धर्मपरिवर्तन करना होगा लेकिन नजरूल ने मना कर दिया।

उनके जीवन के आखिरी दिन कष्ट में बीते। उन्हें पागलखाने में भर्ती कराना पड़ा। 1971 में बांग्लादेश की आजादी के बाद उन्हें बांग्लादेश ने ‘राष्ट्रकवि’ घोषित किया। 29 अगस्त, 1976 को उनका देहांत हो गया।

पढ़िए, उनके कुछ कृष्ण भजन और भाषा पर ध्यान दीजिए। 

1.

कृष्ण कन्हइया आओ मन में मोहन मुरली बजाओ।

कान्ति अनुपम नील पद्मसम सुन्दर रूप दिखाओ।

सुनाओ सुमधुर नूपुर गुंजन

“राधा, राधा” करि फिर फिर वन वन

प्रेम-कुंज में फूलसेज पर मोहन रास रचाओ;

मोहन मुरली बजाओ।

राधा नाम लिखे अंग अंग में,

वृन्दावन में फिरो गोपी-संग में,

पहरो गले वनफूल की माला प्रेम का गीत सुनाओ,

मोहन मुरली बजाओ।

2.

जयतू श्रीकृष्ण श्रीकृष्ण मुरारी शंखचक्र गदा पद्मधारी।

गोपाल गोविन्द मुकुन्द नारायण परमेश्वर प्रभू विश्व-बिहारी।।

सूर नर योगी ऋषि वही नाम गावे,

संसार दुख शोक सब भूल जावे,

ब्रह्मा महेश्वर आनन्द पावे गावत अनन्त ग्रह-नभचारी।।

जनम लेके सब आया ये धराधाम

रोते रोते मैं प्रथम लिया वो नाम।

जाउंगा छोड़ मैं इस संसार को सुनकर कानों में भयहारी।।

3.

जगजन मोहन संकटहारी

कृष्णमुरारी श्रीकृष्णमुरारी।

राम रचावत श्यामबिहारी

परम योगी प्रभू भवभय-हारी।।

गोपी-जन-रंजन ब्रज-भयहारी,

पुरुषोत्तम प्रभु गोलक-चारी।।

बंसी बजावत बन बन-चारी

त्रिभुवन-पालक भक्त-भिखारी,

राधाकान्त हरि शिखि-पाखाधारी

कमलापती जय गोपी मनहारी।।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Birth anniversary, revolutionary poet, kazi nazrul islam, krishna bhajan
OUTLOOK 24 May, 2018
Advertisement