प्रगति मैदान में मिलेंगे अगले साल, अब गुवाहाटी की तैयारी
सुविधा-सुरक्षा की छोटी-मोटी शिकायतों को नजरअंदाज कर दें तो, 7-15 जनवरी के ‘इन नौ दिनों में बच्चों एवं उनके अभिभावकों ने बाल मंडप पर आयोजित रचनात्मक एवं सृजनात्मक गतिविधियों का भरपूर लाभ उठाया।’ एनबीटी के 60 वर्ष और थीम मानुषी आधारित ‘अनेकानेक संगोष्ठियों, चर्चाओं-परिचर्चाओं एवं फिल्मों के प्रदर्शन के साथ-साथ सांस्कृतिक गतिविधियों ने पुस्तक मेले को पुस्तकमय बनाए रखा।’
कवि एवं हिंदवाच मीडिया के संपादक सुशील स्वतंत्र की शिकायत—कैशलेश भुगतान का दावा सफल नहीं रहा, पुस्तकों और बच्चों की चीज़ें खरीदने में परेशानी आई— को नकारते हुए जनसंपर्क के एक अधिकारी ने कहा, यह इत्तेफाकन एकाध जगह हो सकता है, बाकी स्वाइप मशीनों, एटीएम, पीटीएम सभी चल रहे हैं।
विज्ञप्ति के मुताबिक आयोजनों में केंद्र और राज्य सरकार के मंत्री, साहित्यकार, राजनीतिक, समाजसेवी, अभिनेता, फिल्मकार, नाट्यकर्मी के अन्य क्षेत्रों से जुड़े लोग शामिल हुए। जहां तक सांस्कृतिक हस्तियों की बात है, गोवा की राज्यपाल और लेखिका मृदुला सिन्हा, प्रतिभा राय (ओड़िया), सुभाष कश्यप, अभिनेत्री आशा पारिख, देवीप्रसाद त्रिपाठी, डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी के अलावा शीर्षस्थ वामपंथी आलोचक डा. नामवर सिंह हाल नं. आठ के मंच पर एक भगवाधारी महामंडलेश्वर के साथ बेहिचक लोकार्पण करते देखे गए।
अधिकारी ने आउटलुक को बताया कि इस बार डेढ़ से दो सौ पुस्तकों का विमोचन और पुस्तक-चर्चा मेले में हुई। आगे के बारे में पूछने पर बताया कि 28, 29, 30 जनवरी को श्रीमंत शंकरदेव कला क्षेत्र, गुवाहाटी में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के निर्देशन और असम सरकार के पब्लिकेशन बोर्ड के सहयोग से ब्रह्मपुत्र लिटरेरी फेस्टिवल का आयोजन किया जा रहा है। चेयरमैन बलदेव भाई शर्मा के नेतृत्व में पुस्तकों और पठन संस्कृति के प्रोत्साहन को तत्पर न्यास का इस वर्ष का यह दूसरा महत्वपूर्ण आयोजन होगा। जन-संपर्क कार्यालय में बातचीत के दौरान जब यह कहा गया कि स्थान और प्रकाशकों की कमी की वजह से इस बार भीड़ अपेक्षाकृत कम दिखाई दी, तो अधिकारी ने कहा कि भीड़ पिछले साल से बढ़ी है। जब एनबीटी की ओर से पूरे मेले की दूसरे साल डाक्यूमेंट्री तैयार कर रही संस्था मेलोड्रामा की टीम से बात की, उसका जवाब भी कमोबेश यही रहा।
अलग से हुई बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार एवं हिंदी को हिंग्लिश होने से बचाने की मुहिम में लगे राहुल देव ने ई-बुक्स के पुस्तकों पर प्रभाव पर कहा, दरअसल हर नया मंच नई दृष्टि और नया विस्तार लेकर आता है। ई-बुक्स और सोशल मीडिया भी लोगों में पुस्तकें पढ़ने की आदत की डाल रहा है। अलबत्ता पुस्तकों को हाथ में लेकर पढ़ने का स्वाद कुछ औरहै। पुस्तकें ज्ञान और शांति देती हैं।