लोक जीवन की समझ का कवि
नीरज विस्मृत किए जाने वाले कवि नहीं हैं। मंचों के व्यापक फलक से लेकर फिल्मों तक उनका लेखकीय जीवन गुजरा। नीरज के प्रभामंडल को देख कर अंदाजा लगाना मुश्किल है कि यह शख्स कभी टाइपिस्ट, सिनेमा हॉल में गेटकीपर, अध्यापक रहा और मंचों का बादशाह हुआ। नीरज ने जीवन की दुश्वारियां-गुरबत के दिन भी देखे और प्रसिद्धि के भी। ऐसे लेखक अमर हुआ करते हैं जो अपने बाद अपनी रचनाओं की जीती-जागती दुनिया छोड़ जाते हैं।
नीरज की इसी जीवनयात्रा और रचनात्मक योगदान के मूल्यांकन को रूपल अग्रवाल और हर्षवर्धन अग्रवाल ने मोहक कॉफी टेबल बुक, गीतों के दरवेश: गोपाल दास नीरज में सहेजा है। इस कॉफी टेबल बुक में साहित्य जगत के दिग्गज लेखकों ने नीरज पर लिखा है। पुस्तक में परोक्ष रूप से बतौर मार्गदर्शक लमही पत्रिका के संपादक विजय राय की भूमिका है। उन्होंने आलोचक विजय बहादुर सिंह, बलदेव वंशी, शेरजंग गर्ग, किशन सरोज, कुंवर बेचैन, अशोक चक्रधर, अजय तिवारी, सुधीर सक्सेना, ओम निश्चल, प्रमोद शाह, भारतेन्दु मिश्र, रवीन्द्र कात्यायन, प्रांजल धर, मिलन प्रभात और प्रेम कुमार के आलेखों के जरिए नीरज के विपुल रचना संसार की साखियां पेश की हैं। नीरज पाठ्यक्रमों के कवि भले नहीं माने गए लेकिन प्रारंभिक कक्षाओं के पाठ्यक्रमों में उनके गीत मिलते हैं। उनके गीतों की पंक्तियां लगभग सभी पीढ़ी के लोग गुनगुनाया करते हैं। कवि सम्मेलनों ने उन्हें हर घर का शायर बना दिया। नीरज सुख-दुख, अवसाद, मिलन-विछोह की भावनाओं के गीतकार रहे। उनके पास हर किसी के मन को छूने वाले गीत हैं। वे कवि सम्मेलनों के आखिरी कवि होते थे उन्हें सुनने के लिए लोग सुबह तक प्रतीक्षा करते थे। धीरे-धीरे वे दार्शनिक-आध्यात्मिक भाव के कवि बनते गए, जिनमें काल और प्रारब्ध की अनूगूंज सुनाई देती थी। पुस्तक का सबसे बेहतरीन अध्याय वह है जिसमें उन्होंने प्रेम कुमार को अपनी कहानी बयान की है।
नीरज का जीवन मिथक और किंवदंतियों जैसा रहा है। नीरज ने अपने जीवन, बचपन, कविता की शुरुआत, रोजगार, क्रांतिकारियों से परिचय, पहली नौकरी, सरकारी सेवा, मुसीबतों, फुटकर नौकरियों, फिल्मी दुनिया के अनुभवों, डाकू मानसिंह से मुलाकात, मुलायम सिंह यादव से संपर्क, मंत्री पद के ठाट-बाट, ज्योतिष सिद्धि, चुनाव लड़ने के अनुभव यहां तक कि अपने प्रेम तक के बारे में विस्तार से खुलासा किया है। “वो कुरसवां की अंधेरी-सी हवादार गली मेरे गुंजन ने पहली किरन देखी थी” से लेकर जीवन के आखिरी छोर तक के अनुभवों का सफर फोटोग्राफ्स के माध्यम से अतीत के वैभव भरे गलियारों से गुजरने का सुख देता है।
पुस्तक में शामिल लेखकों में कुछ तो उनके मंचों के साथी ही रहे हैं, जैसे अशोक चक्रधर, किशन सरोज, कुंवर बेचैन और बुद्धिनाथ मिश्र। दूसरी कोटि में शेरजंग गर्ग, भारतेन्दु मिश्र, प्रमोद शाह और ओम निश्चल जैसे लोग हैं जो छंदों की महिमा और कविता के लिए नीरज के अवदान को बखूबी समझते हैं। बड़े आलोचकों में विजय बहादुर सिंह कहते हैं, “वे अपने रचना-कर्म से धर्म, जाति, राष्ट्रीयता के सकरे विभेदों को झुठलाते हैं।” कुंवर बेचैन कहते हैं, “उनकी कविता मानववादी गुणों से विभूषित है।” अपने लंबे साहचर्य के अनेक हवाले देते हुए अशोक चक्रधर कहते हैं, “उन्होंने मंच के माध्यम से हिंदी मानस को प्रेम और इंसानियत में घोल कर अध्यात्म का संदेश दिया है।”
कुल मिलाकर नीरज पर यह पुस्तक उनके जीवन, साहित्य, संघर्ष और वैभव सबको समझने का एकाग्र प्रयत्न है, जिसके भीतर नीरज और उनके परिवेश की अनूठी छवियां अंकित हैं।