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14 February 2021

शहरनामा/मोतिहारी: बापू के सत्याग्रह का गवाह रहा शहर

बापू की विरासत 

रेलवे स्टेशन पर उतरते ही आपका ध्यान स्टेशन के नाम पर जरूर जाएगा, बापूधाम मोतिहारी। बापूधाम इसलिए कि बिहार का यह नगर मोहनदास करमचंद गांधी की कर्मभूमि रहा है। नेपाल सीमा से लगा यह शहर बापू के सत्याग्रह के प्रयोग का गवाह रहा है। चंपारण सत्याग्रह के बारे में सभी ने स्कूल की किताबों में पढ़ा ही होगा, जिसका आजादी के आंदोलन के इतिहास में खास स्‍थान है। उस समय चंपारण जिले का हेडक्वार्टर मोतिहारी हुआ करता था। हांलाकि 1971 में चंपारण दो हिस्से में विभाजित हो गया और मोतिहारी अब पूर्वी चंपारण जिले का मुख्यालय है। नील के खेती के लिए स्थानीय किसानों पर अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ आंदोलन करने के लिए 1917 में गांधी जी का पहली बार इस शहर में आगमन हुआ था। फिर मोतिहारी और उसके आसपास के इलाकों से उनका रिश्ता हमेशा के लिए कायम हो गया था।  

ऑरवेल कनेक्शन

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गांधी जी के अलावा एक और महान हस्ती का संबंध मोतिहारी से रहा है। उनका नाम है एरिक आर्थर ब्लेयर। दुनिया उन्हें जॉर्ज ऑरवेल के नाम से जानती है। एनिमल फार्म और 1984 जैसे कालजयी उपन्यास के रचयिता। 25 जून 1903 को ऑरवेल का जन्म मोतिहारी में हुआ था। उनके पिता उस समय मोतिहारी में अफीम उप-अधिकारी के रूप में तैनात थे और मोतिहारी में मेस्कॉट के पास के बंगले में रहा करते थे। आप गांधी चौक से जानपुल तरफ जाएं तो वह मकान जीर्ण-शीर्ण अवस्था में दिखाई देता है, जहां ऑरवेल ने पहली बार आंखें खोली थीं। ऑरवेल मेमोरियल के नाम पर वहां एक संगमरमर की पट्टिका लगी है, जो हमें बताती है कि यह ऑरवेल का जन्मस्थान है। वहां पहले ऑरवेल की मूर्ति हुआ करती थी, जिसे हाल में कुछ असामाजिक तत्वों ने नष्ट कर दिया। कुछ स्‍थानीय संस्‍थाएं फिर से मूर्ति स्‍थापित करने की कोशिश कर रही हैं। दुखद है कि अंग्रेजी और विश्व साहित्य की इतनी बड़ी विरासत सरकारी उदासीनता की शिकार है। 

संग्रहालय, पार्क और मोतीझील

अगर आपकी रुचि चंपारण सत्याग्रह के इतिहास में है तो आपको गांधी संग्रहालय जाना चाहिए। 1972 में स्थापित इस म्यूजियम में आपको दुर्लभ किताबें, पांडुलिपियां और पुरानी तस्वीरों का संग्रह देखने को मिलेगा। इसके अलावा चंपारण सत्याग्रह पार्क भी देखने लायक है, जिसे चंपारण सत्याग्रह के सौ साल पूरे होने पर सरकार ने बनाया है। शानदार लैंडस्केपिंग और पेड़-पौधों से सज्जित यह पार्क बेहद खूबसूरत है और किसी भी छुट्टी के दिन तफरीह के लिए बेहतरीन जगह है। यहां एक विशालकाय झील भी शहर के बीचोबीच है, जो मोतीझील के नाम से जानी जाती है। जलकुंभी की हरी चादर ओढ़े, यह झील शैवाल, खर-पतवार और गंदगी का ठिकाना हो गई है। कहा जाता है की आजादी के पहले इस झील का पानी साफ और एकदम नीला हुआ करता था और इसमें अंग्रेज बोटिंग किया करते थे। अगर मोतीझील का सही तरह से रख-रखाव किया जाए तो यह मोतिहारी का हुसैन सागर लेक बन सकता है।

बौद्ध स्तूप, मंदिरों की पवित्रता 

शहर से करीब 35-40 किलोमीटर दूर स्थित है केसरिया, जो अपने बौद्ध स्तूप के लिए प्रसिद्ध है और पर्यटकों के विशेष आकर्षण का केंद्र है। प्रसिद्घि यह है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा स्तूप है। इसके अलावा मोतिहारी से 30 किलोमीटर की दूरी पर बसा कस्बा अरेराज अपने अशोक स्तंभ और सोमेश्वर नाथ महादेव मंदिर के लिए जाना जाता है।

बदलते वक्त का असर

अन्य छोटे शहरों की तरह मोतिहारी के मिजाज में भी बदलाव आ रहा है। जोमेटो और उस जैसे अन्य ऐप के आने बाद खाने-पीने के सामान की होम डिलीवरी का चलन बढ़ा है और बहुत सारे नए रेस्तरां खुल गए हैं। चाइनीज, इटालियन व्यंजन से लेकर चाट-पकोड़े और बिरयानी बस एक फोन कॉल पर हाजिर हो जाते हैं। लोगों में ऑनलाइन शॉपिंग के तरफ काफी झुकाव हुआ है और लोग ब्रांडेड चीजें पसंद करने लगे हैं।

ताश-चिवड़ा और अहुना मीट

अगर मोतिहारी जाना हो और आप मांसाहारी हैं तो ताश-चिवड़ा और अहुना मटन जरूर ट्राई करें। खास मसालों में मैरीनेट किया हुआ मटन तवे में फ्राई करके ताश बनाया जाता है जबकि चिवड़ा को सिर्फ भून दिया जाता है। किसी भी शाम आप गांधी चौक के पास जमुना होटल के सामने ताश-चिवड़ा के शौकीनों की लंबी कतार देख सकते हैं। मोतिहारी की दूसरी मशहूर नॉन-वेज डिश है अहुना मीट, जिसे चंपारण मीट के नाम से भी जाना जाता है। मिट्टी के मटके में धीमी आंच पर पकने वाला यह मटन इतना स्वादिष्ट होता है कि आप हैदराबादी रोगन जोश और लखनवी मटन कोरमा भूल जाएंगे।

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OUTLOOK 14 February, 2021
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