गोपेश्वरसिंह नामचीन आलोचकों की कतार में—मैनेजर पांडेय
उन्होंने कहा, यह भक्तिकाव्य पर गोपेश्वर सिंह की अन्तिम किताब नहीं है। उनकी एक और पुस्तक आने वाली है। उन्होंने इशारा किया कि आलोचक ने अपनी पूरी पुस्तक में जिस बाइनरी तर्क-पद्धति का विरोध किया है उसी तर्क-पद्धति से इस किताब का सबसे बढ़िया लेख लिखा है। भक्तिकाल के सभी कवि बाइनरी में बात करते हैं तो हम उनसे कैसे बच सकते हैं! ‘लोक बनाम शास्त्र’ वाला सर्वोत्तम निबंध बाइनरी शैली में ही लिखा गया है।
उन्होंने सिंह की ‘भक्ति आन्दोलन में भगवान और भक्त के बीच कोई मध्यस्थता नहीं है’ का खंडन करते हुए बताया कि भक्त और भगवान के बीच गुरु की मध्यस्थता रही है। आंदोलन सवाल उठाया कि यह क्यों और कैसे हुआ कि भक्ति आन्दोलन में इतनी अधिक संख्या में स्त्री और दलित वर्ग के लोग कविता में आए। इसका प्रमुख कारण है कि भक्ति आन्दोलन के काल में ललद्यद से लेकर तूलचन्द तक और नामदेव से लेकर शंकरदेव तक यानी भारत के उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्चिम तक देशव्यापी महान भाषाई जागरण हुआ। संस्कृत और फारसी को छोड़कर इन कवियों ने अपनी मातृभाषा में कविता लिखी।
भक्ति आंदोलन इतना महान होते हुए भी अन्ततः सफल क्यों नहीं हुआ, का दूसरा सवाल उठाकर उन्होंने कहा, क्योकि तब से लेकर आज तक जातिवाद बरकरार है। बहुत-सी चीजों में परस्पर विरोधी होते हुए भी कबीर और तुलसी के स्त्री-संबंधी विचारों में साम्य मिलता है, ऐसा क्यों? लेखक ने इसे ठीक ही मीरा के माध्यम से समझाया है। उस समय पुरुष सत्ता के विकल्प के रूप में स्त्रियों ने ईश्वर को स्वीकार किया और अधिक संख्या में भक्ति कविता में आईं।
भाषा की सरलता, पठनीयता और अच्छी हिंदी के लिए बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि हिंदी के सभी बड़े आलोचकों—आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी, रामविलास शर्मा और नामवर सिंह--ने भक्ति आन्दोलन पर लिखा है। सिंह भी इसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
दिनेश कुमार ने बनामवादी प्रवृत्ति के दायरे से बाहर निकलने की कोशिश, आलोचक बजरंग बिहारी तिवारी ने अखिल भारतीय दृष्टि, वरिष्ठ पत्रकार राजकिशोर ने कार्ल मार्क्स की तरह सभी जरूरी सन्दर्भ लेकर चलने और डॉ. रामेश्वर राय ने लोकभाषा की जमीन पर उतर कर लिखने की विशेषता को रेखांकित किया। गोपेश्वर सिंह ने उपस्थित अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया।
इससे पूर्व कॉलेज के प्राध्यापक डॉ. राय, बजरंग बिहारी, पांडेय, लेखक सिंह, राजकिशोर, युवा आलोचक दिनेश कुमार और संपादक डॉ. पंकज बोस ने पुस्तक का पुस्तक का विमोचन किया। संचालन वाणी की मीडिया प्रोड्यूसर वृषाली जैन ने किया।
इस अवसर पर कॉलेज के हिन्दी विभाग की हस्तलिखित पत्रिका ‘हस्ताक्षर’ (सं. विजया सती, अरविन्द कुमार संबल) का भी विमोचन हुआ।