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22 February 2019

भारत-पाकिस्तान की साझा विरासत थीं राणा लियाकत अली खान

एक किताब के जरिये यदि पता लगे कि भारत और पाकिस्तान में क्या आम है, तो यकीनन यह किताब ‘बेगम : अ पोर्ट्रेट ऑफ राणा लियाकत अली खान पाकिस्तान्स पायोनियरिंग फर्स्ट लेडी’ ही होगी। इस किताब को भारतीय कवयित्री-अनुवादक दीपा अग्रवाल और पाकिस्तानी लेखिका तहमीना अजीज अयूब द्वारा लिखा गया है। इसकी भूमिका नामी भारतीय लेखिका नमिता गोखले ने लिखी है।

किताब में बेगम रावण लियाकत अली खान के जीवन और उस काल के बारे में जानने की कोशिश की गई है। बेगम राणा पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की पत्नी थीं। लेकिन उनकी कहानी के पीछे एक कहानी है जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं। वह 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में कुमाऊं पहाड़ियों में आइरिन मार्गरेट पंत के यहां पैदा हुई थीं। उनका परिवार ने एक पीढ़ी पहले ईसाई धर्म अपना लिया था।

राणा का नाम बुद्धिमान और स्वतंत्र महिला के रूप में सामने आता है। वह दिल्ली के एक कॉलेज में इकोनॉमिक्स पढ़ा रही थीं, जब वह पहली बार "खूबसूरत नवाबजादा लियाकत अली खान" से मिलीं। उस वक्त वे मुस्लिम लीग में उभरते हुए राजनेता थे।

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पुस्तक में बताए अनुसार, वह लियाकत अली खान और उनके विचार दोनों से प्रेरित थीं। 1933 में उन्होंने लियाकत अली खान से शादी कर ली और इस तरह आइरिन पंत, राणा लियाकत अली खान बन गईं।

"अगस्त 1947 में वे लियाकत के मेंटर और दोस्त मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में पाकिस्तान के लिए रवाना हुए। राणा ने खुद को राष्ट्र निर्माण के काम में झोंक दिया, लेकिन 1951 में लियाकत अली खान की हत्या कर दी गई। उनकी हत्या के कारणों पर अभी रहस्य का परदा है। इसके बाद भी राणा सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहीं और पाकिस्तान में महिला सशक्तीकरण में उनका योगदान आज तक महसूस किया जाता है।

लेकिन वह भारतीय उपमहाद्वीप के हालिया इतिहास की कई प्रमुख घटनाओं को आत्मसात करने वाली अपनी कहानी के साथ पाकिस्तान में अपने जीवन के कुल योग से बहुत अधिक थी।

उदाहरण के लिए, राणा तीन धर्मों से बेहद प्रभावित थीं, हिंदू, ईसाई और इस्लाम। उन्होंने अपने समय के सभी प्रमुख आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया चाहे वह स्वतंत्रता संग्राम हो या  पाकिस्तानी आंदोलन या पाकिस्तान में महिला सशक्तीकरण की लड़ाई।

वे 1947 के बाद जो हुआ उसे देख कर भी बहुत दुखी थीं। जो कुछ गलत हो रहा था वो उसे देखकर बहुत नाराज थी और उन्होंने पाकिस्तान में बढ़ते धार्मिक रूढ़िवाद और भ्रष्टाचार की बढ़ती भूमिका के खिलाफ खुलकर बात की।

लेकिन इस किताब की खूबसूरती इस बात में है कि इसे दो महिलाओं ने मिल कर लिखा है। एक भारत से है तो दूसरी पाकिस्तान से। इतिहास से उनके जीवन के सूत्र खोजने का यह तरीका बहुत अनूठा है जो दोनों राष्ट्रों को एक धागे में पिरोता है।

नमिता गोखले ने अपनी भूमिका में लिखा है कि, दो भागों में बंटे उनके 86 साल के जीवन को बराबर से 43 साल और कुछ महीने में बांटा जा सकता है। वह ऐसे दुर्लभ इतिहास की साक्षी थीं जिसमें उन्होंने दो राष्ट्र, पूर्व और पश्चिम पाकिस्तान का विभाजन, बांग्लादेश का निर्माण, शीत युद्ध, गोर्बाचेव का उदय और पाकिस्तान में बढ़ती सेना की पकड़ को देखा। जिन्ना से जुल्फिकार अली भुट्टो और जनरल जिया उल हक से वह अपने तरीके से बात करती थीं और अपना मत रखती थीं।

गोखले याद करती हैं कि 1990 में उनके निधन के बाद उन्हें मादरे वतन या पाकिस्तान की मां के रूप में पहचाना और सम्मान दिया गया। इन्हीं राणा लियाकत की कहानी अब पाठकों के लिए उपलब्ध है जो हमारे द्विपक्षीय संबंधों को परिभाषित करने और समझने के लिए जरूरी है।  

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TAGS: The Begum: A Portrait of Ra'ana Liaquat Ali Khan, Pakistan's Pioneering First Lady, Deepa Agarwal, Tahmina Aziz Ayub, Namita Gokhale
OUTLOOK 22 February, 2019
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