कलम के मोहपाश में बांध लेने वाली विद्रोही लेखिका इस्मत चुगताई
अपनी कलम के मोहपाश में बांध लेने वाली विद्रोही लेखिका इस्मत चुगताई की आज 107वीं जयंती है। हालांकि उनके खानदान का ताल्लुक भोपाल से है, मगर उनकी परवरिश आगरा में हुई। उनके बड़े भाई मिर्जा अजीम बेग खुद एक अच्छे कलमकार थे और उनकी सोहबत का असर इस्मत पर भी यह पड़ा कि वह भी चुपके-चुपके कहानियां पढ़ने और लिखने लगीं। 1939 में उनकी एक कहानी उस समय के मशहूर रिसाले साकी में प्रकाशित हुई और इस तरह उनके बतौर लेखक उनके सफ्र का आगाज हो गया।
उपन्यास, कहानियां के अलावा करीब 13 फिल्मों के लिए भी उन्होंने पटकथा लिखीं। इनमें से आठ कहानियों पर फिल्में बनीं, तो कुछ फिल्में उन्होंने खुद भी बनाईं। उनकी पहली फिल्म छेड़छाड़ के नाम से 1943 में प्रदर्शित हुई। 1946 में फिल्म जिद्दी उनके उपन्यास जिद्दी पर बनी। इसके अलावा आरजू, बुजदिल, शीशा, फरेब, दरवाजा, सोने की चिड़िया और सोसायटी फिल्में भी उन्हीं के उपन्यासों पर बनाई गईं। उन्होंने दो फिल्में बच्चों के लिए भी बनाई थीं, इनमें जवाब आएगा काबिले-जिक्र है। साथ ही अली सरदार जाफरी पर भी उन्होंने तीस मिनट की एक डॉक्यूमेंटरी फिल्म बनाई थी इसमें अली सरदार जाफरी की नज्में खुद उन्हीं की आवाज में रिकॉर्ड की गई थीं। उन्होंने अपनी लिखी कहानी पर एक फिल्म गरम हवा के नाम से खुद बनाई। इसमें आजादी के बाद भारतीय मुसलमानों के हालात को सच्चाई के साथ प्रस्तुत किया गया था। यही वजह है कि यह सेंसर बोर्ड से पूरे दो साल बाद पास हुई। उनकी कहानी पर आखिरी फिल्म जुनून के नाम से बनी। कुल मिला कर देखें तो उनकी कहानियां चाहें साहित्यिक सरमाये के तौर पर हों या फिल्मी पर्दे पर उकेरी गई हों, उनमें उनके समय की सच्चाई और हालात को सचचाई के साथ पेश किया गया है। यही वजह है कि इतने समय बाद भी आज उनकी लेखनी का असर नजर आता है और उनके किरदारों में औरत की कुंठाओं, यौन इच्छाओं को अभिव्यक्ति मिलती है।