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29 August 2017

अरुंधती रॉय समेत कई बुद्धिजीवियों ने किया हांसदा की किताब पर प्रतिबंध का विरोध

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बीते 11 अगस्त को झारखंड में एक किताब पर प्रतिबंध लगाए जाने का मामला तूल पकड़ने लगा है। लेखक हांसदा सोवेन्द्र शेखर की किताब “ द आदिवासी विल नॉट  डांस” पर झारखंड सरकार द्वारा बैन लगाए जाने पर बुद्धिजीवी हांसदा के समर्थन में उतर आए हैं। उनका कहना है, द आदिवासी विल नॉट डांसपर झारखंड सरकार द्वारा प्रतिबन्ध लगाने पर हम आश्चर्यचकित एवं निराश हैं। प्रतिबन्ध बेतुका है एवं एक खतरनाक मिसाल प्रस्तुत करता है।

कौन-कौन हैं शामिल

हांसदा की किताब पर बैन को लेकर ज्यां द्रेज, अरुंधति रॉय, हर्ष मंदर, नंदिनी सुंदर, बेला भ्‍ाा‌टिया, हरिवंश (राज्यसभा सदस्य), कविता श्रीवास्तव सहित बड़ी संख्या में लेखक, फिल्ममेकर, शिक्षक, शोधार्थी, सामाजिक कार्यकर्ता और नागरिकों ने अपना  विरोध दर्ज कराया है।

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क्यों लगाया गया प्रतिबंध?

झारखंड सरकार ने संथाली महिलाओं के अश्लील चित्रण का आरोप लगाते हुए हांसदा की किताब ‘आदिवासी विल नॉट डांस’ पर बैन लगा दिया। दरअसल, सरकार को इस किताब की एक कहानी पर आपत्ति है जिसमें एक ऐसी संथाल महिला की कहानी है जिसे महज पकौड़े खाने के लिए अपना शरीर बेचना पड़ता है। ये मसला विधानसभा में विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा की ओर से उठाया गया और किताब पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई। इसके फौरन बाद ही शाम तक मुख्यमंत्री रघुबर दास ने इसकी सभी प्रतियों को जब्त करने और लेखक सोवेंद्र शेखर पर कार्रवाई करने का आदेश दे दिया।

हांसदा के समर्थन में आए लोग

साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार प्राप्त लेखक हांसदा सोवेन्द्र शेखर की किताब पर बैन के विरोध में बुद्धिजीवियों ने कहा है, किताब में कुछ खुले यौन दृश्य हैं लेकिन उन्हें अश्लील कहना अत्यन्त ही पाखंडपूर्ण है। अगर उन किताबों, जिसमें ऐसे दृश्य शामिल हैं, पर प्रतिबन्ध लगाना होता तो कामसूत्र सहित हजारों उपन्यास पर प्रतिबन्ध लग जाता। जिन्हें लगता है कि यौन दृश्य अश्लील हैं वे कुछ और पढ़ने के लिए स्वतंत्र हैं।

कहा गया कि कहानी में वर्णित काल्पनिक घटना संथाली महिलाओं पर किसी तरह का आक्षेप नहीं लगाती। यह संभव है कि कहानी किसी वास्तविक घटना से प्रेरित हो लेकिन ऐसा अगर है तो यह कहानी को और भी न्यायसंगत बनाती है।

समर्थकों के नाम वाले पत्र में लिखा है, द आदिवासी विल नौट डान्सपर प्रतिबन्ध न सिर्फ दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि भारत में छिछले आधार पर किताबों को प्रतिबंधित करने की कड़ी में एक नया उदाहरण है। प्रतिबन्ध की यह सनकस्वतंत्रता, लोकतंत्र एवं तार्किकता पर खतरनाक हमला है।

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TAGS: Jharkhand, protest, ban, Hansda, book, intellectuals, attack, democracy, rationalism, The Adivasi Will Not Dance, Hansda Sowvendra Shekhar
OUTLOOK 29 August, 2017
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