60 साल पुराने हिंद पॉकेट बुक्स को पेंगुइन रैंडम हाउस ने खरीदा
हिंदी-उर्दू के पुराने और प्रमुख प्रकाशको में शुमार हिंद पॉकेट बुक्स को अंग्रेजी के दिग्गज प्रकाशक पेंगुइन रैन्डम हाउस इंडिया ने खरीद लिया है। सन 1958 में शुरू हुए हिंद पॉकेट बुक्स को हिंदी और उर्दू में पेपरबैक्स की शुरुआत और कम कीमत में उम्दा साहित्य लोगों तक पहुंचाने का श्रेय जाता है। पुस्तक प्रकाशन के इस चुनौतीपूर्ण दौर में पेंगुइन रैंडम हाउस जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशन का हिंद पॉकेट बुक्स को खरीदना एक महत्वपूर्ण घटना है।
इस बारे में पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया का कहना है कि हिंद पॉकेट बुक्स का अधिग्रहण भारतीय भाषाओं में उसकी मौजूदगी को पुख्ता करेगा। करीब एक दशक पहले पेंगुइन इंडिया ने हिंदी प्रकाशन के क्षेत्र में कदम रखा था और तब से अपनी उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज कराई है।
इस अधिग्रहण के बाद पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट नंदन झा भारतीय भाषा में प्रकाशन का दायर बढ़ाने में अहम भूमिका निभाएंगे, जबकि हिंदी पॉकेट बुक्स की एडिटर-इन-चीफ की कमान पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया में भारतीय भाषाओं की जिम्मेदारी संभाल रहीं वैशाली माथुर को सौंपी गई है। फिलहाल यह नहीं बताया गया कि सौदा कितने में हुआ है, लेकिन इसे पेंगुइन के हिंदी और भारतीय भाषाओं की तरफ बढ़ते कदम के तौर पर देखा जा रहा है।
हिंद पॉकेट बुक्स से हिंदी के प्रसिद्ध लेखकों की कितनी ही कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें आचार्य चतुर्सेन, गुलशन नंदा, नरेंद्र कोहली, खुशवंत सिंह, अमृता प्रीतम, शिवानी, और आरके नारायण जैसे लेखक शामिल हैं।
पेपरबैक्स से बनी पहचान
सन 1958 में जब हिंद पॉकेट बुक्स की शुरुआत हुई थी, तब इसने कम कीमत में नामी लेखकों की किताबें प्रकाशित कर खलबली मचा दी थी। बीते वर्ष दिसंबर में हिंद पॉकेट बुक्स के संस्थापक दीनानाथ मल्होत्रा की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के महत सात महीने के अंदर हिंद पॉकेट बुक्स के बिकने से हिंदी प्रकाशन उद्योग की मुश्किलों को समझा जा सकता है। बहरहाल, हिंद पॉकेट बुक्स के लिए यह एकदम नई शुरुआत है।
हिंद पॉकेट बुक्स के प्रबंध निदेशक शेखर मल्होत्रा का कहना है कि इस विरासत का पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया जैसे प्रतिष्ठित हाथों में जाना सम्मान की बात है। पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी गौरव श्रीनागेश कहते हैं कि हिंद पॉकेट बुक्स की सांस्कृतिक पहचान से जुड़ना गर्व की बात है। शेखर मल्होत्रा अगले एक साल तक पेंगुइन की टीम के साथ सलाहकार की भूमिका में जुड़े रहेंगे और हमें भाषाई प्रकाशन व अनुवाद में अपने अनुभव से लाभान्वित करेंगे।