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22 April 2024

स्थानिकता और स्मृतियों की विरल रचनाकार: ऊषाकिरण खान

ऊषाकिरण खान मैथिली साहित्य की सशक्त रचनाकार रही हैं। मैथिली भाषा के अतिरिक्त हिन्दी में भी उन्होंने विपुल मात्रा में लेखन किया है। भामती, हसीना मंज़िल, अनुत्तरित प्रश्न तथा सिरजनहार आदि मैथिली में लिखी उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं, वहीं हिन्दी में लिखी गई औपन्यासिक कृतियाँ हैं – पानी पर लकीर, फागुन के बाद, सीमांत कथा, रतनारे नयन । उपन्यासों के अतिरिक्त उन्होंने कहानी, नाटक, कविता, बाल-साहित्य आदि विभिन्न विधात्रओं को अपनी रचनाशीलता से समृद्ध किया। उनके द्वारा मैथिली में रचित महत्त्वपूर्ण उपन्यास ‘भामती : एक अविस्मारनिया प्रेमकथा’ पर उन्हें सन् 2011 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से अलंकृत किया गया था। साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान के लिए उन्हें सन् 2015 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया।

7 जुलाई, सन् 1945 को बिहार के दरभंगा जिले के लहेरियासराय में जन्मीं लेखिका ऊषाकिरण खान लोक में बसने तथा लोक जीवन को रचने वाली साहित्यकार रही हैं। उन्होंने न केवल मिथिला की लोक संस्कृति को आधुनिकता के नूतन परिप्रेक्ष्य में रचनात्मक धरातल पर रूपायित किया, बल्कि अपनी रचनाशीलता के माध्यम से उससे समूचे देश को अवगत कराया। अपनी साहित्यिक कृतियों में वे सूक्ष्मता के जिस धरातल पर लोकधर्मिता और प्रगतिशील चेतना का निर्वहन करती हैं, वह अपने-आप में विशिष्ट है। यही कारण है कि उनकी रचनाधर्मिता में स्थानीयता का व्यापक विस्तार और लोक जीवन का विस्तृत घनत्व परिलक्षित होता है।

अपनी सुदीर्घ साहित्य साधना में वे समय के साथ-साथ समाज और संस्कृति में निरंतर आ रहे बदलावों को रेखांकित करती जाती हैं। उपन्यासों और कहानियों में उनके पात्र रूढ़ियों, जर्जर परंपराओं और पुरातन प्रथाओं के जड़ साँचों को तोड़ते हुई दिखाई देते हैं। कथाकार ऊषाकिरण खान स्थानीय लोक-संस्कारों, ऐतिहासिक संदर्भों, सांस्कृतिक प्रसंगों तथा कला के विभिन्न रूपों को आधुनिकता के जिन संदर्भों में ढालकर प्रस्तुत करती हैं, वह न केवल लोक के प्रति उनकी अटूट सन्निबद्धता को दर्शाता है वरन् परंपरा और आधुनिकता के अप्रतिम सामंजस्य को भी रचनात्मक धरातल पर निरूपित करता है।

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यह सर्वविदित है कि वे साहित्य के साथ-साथ इतिहास के विषय में भी गहन जानकारी और रुचि रखती थीं। इसीलिए अपनी रचनाओं में जब वे इतिहास से संबद्ध प्रसंगों को कथा में गूंथकर प्रस्तुत करती हैं, तो ऐतिहासिक सत्यनिष्ठा का विशेष ध्यान रखती हैं। अपने सजग इतिहास-बोध के साथ उन्होंने अतीत के माध्यम से यथार्थ की व्यंजना की है। लोक और इतिहास के प्रामाणिक संदर्भों को अपनी रचनाओं में अनुस्यूत करते हुए लेखिका भाषा का निर्वहन भी उसी के अनुरूप करती हैं। यही कारण है कि उनकी भाषिक चेतना की जड़ें मिथिला की संस्कृति, इतिहास और लोक-परंपराओं से न केवल पोषण प्राप्त करती हैं बल्कि निरंतर सिंचित होती चली जाती हैं।

ऊषाकिरण खान स्थानिकता और स्मृतियों की विरल रचनाकार हैं। वे अपने आस-पास की प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण करती हैं, उसकी सूक्ष्म गतिविधियों को देखती-परखती हैं तथा अंततः उसे लोक-संस्कारों में रची-पगी भाषा के माध्यम से रचनात्मकता के धरातल पर पर्यवसित कर देती हैं। लेखिका का सौंदर्यबोध अत्यंत सहजता से प्रकृति के साथ तादात्म्य स्थापित कर लेता है। इसीलिए उनकी साहित्यिक कृतियों के मध्य से गुज़रते हुए हम देख पाते हैं कि एक रचनाकार किस प्रकार लगातार अपनी हर नई रचना में स्वयं को पुनर्नवा कर रहा है – न सिर्फ़ भाषा से, बल्कि कथ्य और अपने विचारों से भी। चाहे उपन्यास हो अथवा कहानी, एक सरल और आत्मीयता से परिपूर्ण गद्य की झांकी सर्वत्र देखी जा सकती है। उनकी कविताएँ में उनकी निश्छल अनुभूतियाँ भावप्रवण संवेदना के साथ अभिव्यक्त हुई हैं। उनकी रचनाओं में अपने समय और समाज की विविध अर्थ-छवियाँ अपनी समूची विसंगतियों व अंतर्विरोधों के साथ रूपायित हो उठती हैं।  इनमें जीवन के कई रंग बिखरे दिखाई देते हैं। सुख-दुख, आशा- निराशा, आरोह- अवरोह, तनाव और कुंठा के बीच उद्दाम जिजीविषा का सहज चित्रण साहित्यकार ऊषाकिरण खान के लेखकीय व्यक्तित्व को वैशिष्ट्य प्रदान करता है।

यह कहना अप्रासंगिक न होगा कि मिथिला के लोक जीवन की जैसी सरलतम, नैसर्गिक, अनुभूतिमयी अभिव्यंजना का चित्रण ऊषाकिरण खान के सृजन संसार में मिलता है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। उनकी समस्त रचनाएँ इसका सशक्त प्रमाण हैं। अनुभवों की गहराई तथा मानवीय संवेदना से संपृक्त ऊषाकिरण खान का लेखकीय कर्म अपने परिवेश के प्रति न केवल सजग है अपितु गहनतम रूप से प्रतिबद्ध भी है। दरअसल यही प्रतिबद्धता उनकी सर्जनात्मकता को सही अर्थों में लोकजीवन से जोड़े रखती है।

जब मैं ने साहित्य एकेडमी के लिए ऊषाकिरण खान के "भामती" का अनुवाद उर्दू में करना प्रारंभ किया तो पता चला कि उषा जी के लेखन की भाषा शैली कितनी सहज और सुगम है। यही कारण है कि उषा जी जितनी साहित्यिक जगत जानी जाती हैं उतनी ही वे आम जन-मानस में लोकप्रिय है। हिन्दी और मैथिली भाषाओं में समान रूप से अपनी सशक्त रचनात्मक उपस्थिति दर्ज कराती हुई वरिष्ठ कथाकार ऊषाकिरण खान का साहित्य निस्संदेह पाठकों के समक्ष स्थानिकता और लोक संस्कृति का अनूठा आख्यान प्रस्तुत करता है।

(लेखक अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के भाषा विज्ञान विभाग के अध्यक्ष हैं।)

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TAGS: Rare creator of locality and memories, Usha Kiran Khan, MJ Warsi
OUTLOOK 22 April, 2024
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