साहित्य अकादेमी की महत्तर सदस्यता का ‘नामवर’ होना
सम्मानित नामवर सिंह ने बड़े विनम्र भाव से ‘दिन ढला, दिमाग खाली’ से शुरू किए संक्षिप्त वक्तव्य में कहा, मैं अपनी औकात जानता हूं। बोला ज्यादा, लिखा कम… फिर भी लोगों के प्यार में कमी नहीं…इसीलिए (शायद) बेहयाई से जिए जा रहा हूं। उन्होंने अपने ‘बेहयाई से जीने’ को गालिब के अशआर में यूं कहा— कोई दिन जर जिंदगानी और है / अपने जी में हमने ठानी और है…………/ …एक मर्दे-नादहानी और है।
दो सत्रों के सादे सम्मान समारोह में पहले नामवर जी का अलंकरण हुआ फिर उन पर परिसंवाद। महत्तर सदस्यता अर्पण सत्र की अध्यक्षता कर रहे, अकादेमी अध्यक्ष विश्वनाथप्रसाद तिवारी ने कहा, नामवर सिंह की आलोचना जीवंत आलोचना है। भले ही लोग या तो उनसे सहमत हुए अथवा असहमत, लेकिन उनकी कभी उपेक्षा नहीं हुई। एक मौलिक रचनाकार के बजाय एक आलोचक का शीर्ष पर बने रहना उनकी अपूर्व मेधा का ही प्रमाण है।
सिंह की गर्वीली गरीबी के दिनों को याद करते हुए उनके शिष्य और प्रखर आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी ने दिलचस्प बात बताई कि नामवर सिंह के छोटे भाई काशीनाथ सिंह और मुझे उनसे पहले पक्की नौकरी मिल गई थी। नामवर सिंह को ख्याति और यश तो समय से पहले ही मिलने लगा था लेकिन प्रतिष्ठानों से स्वीकृतियाँ देर से मिलीं। उन्होंने कहा कि नामवर जी ने रचना के पाठ की विधि सिखाई तभी हम निर्मल वर्मा की कहानी के नएपन को समझ पाते हैं और धूमिल की कविता के असली तत्वों तक पहुँच पाए हैं।
प्रख्यात आलोचक निर्मला जैन ने कहा कि नामवर जी ने अपने समय के तीन महारथियों - नंददुलारे वाजपेयी, डॉ. नगेंद्र और हजारी प्रसाद द्विवेदी का सामना किया। उन्होंने नामवर सिंह के संघर्ष के दिनों का जिक्र करते हुए बताया कि उनके जीवन में जो समय संघर्ष का था वह हिंदी साहित्य के लिए सबसे मूल्यवान रहा है क्योंकि इसी समय में नामवर सिंह ने गहन अध्ययन किया और अपनी महत्वपूर्ण रचनाएँ लिखीं। पान और पुस्तक के विलक्षण प्रेम ने उनकी ज्ञान-गरिमा को जीवंत बनाया।
भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक और प्रतिष्ठित कवि लीलाधर मंडलोई ने कहा कि नामवर सिंह आधुनिकता में पारंपरिक हैं और पारंपरिकता में आधुनिक। उन्होंने पत्रकारिता, अनुवाद और लोकशिक्षण का महत्वपूर्ण कार्य किया है जिसका मूल्यांकन होना अभी शेष है। नामवर सिंह का बोलना जितना महत्वपूर्ण है उनका मौन उससे कम मूल्यवान नहीं है। उनकी चुप्पी का भी एक अर्थ है।
अकादेमी के हिंदी परामर्श मंडल के संयोजक सूर्यप्रसाद दीक्षित ने नामवर सिंह के श्रेष्ठ अनुवादक, संपादक और सक्रिय प्रशासक के रूप में किए गए उनके महत्व कार्यों को रेखांकित किया।
शुरू में अतिथियों का स्वागत नामवर सिंह की प्रशस्ति का वाचन अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने किया।
समारोह में केदारनाथ सिंह, मैनेजर पांडेय, नित्यानंद तिवारी, देवीप्रसाद त्रिपाठी, अर्चना वर्मा, के.जी. वर्मा, अनामिका, रामवक्ष, अशोक माहेश्वरी, उपेंद्र कुमार, यशोधरा मिश्र, श्यामा प्रसाद गांगुली, समीक्षा ठाकुर, मालाश्री लाल, मदन कश्यप, व्योमेश शुक्ल, प्रांजल धर सहित दिल्ली के महत्वपूर्ण लेखक, साहित्यप्रेमी और मीडियाकर्मियों के साथ ही नामवर जी के पुत्र-विजय सिंह, पुत्री और परिजन आदि मौजूद थे। संचालन, अकादेमी के हिंदी संपादक कुमार अनुपम ने किया।