साहित्यकार सुनीता जैन का निधन
मृदुभाषी सुनीता जैन का कल देहांत हो गया। वह साहित्यकार होने से पहले स्नेहमयी सुनीता जैन थीं। सुनीता जैन जैसे अपना काम चुपचाप ढंग से करती थीं वैसे चुपचाप ढंग से वह इस दुनिया को अलविदा कह गईं। उनकी रचनाएं ही हमेशा उनके बारे में बोलती रहीं। उन्होंने चाहा भी यही था। वह इस पर ही ध्यान देती थीं कि वह अच्छा और सारगर्भित लिखती रहें। उनका काम और रचनाएं ही उनकी पहचान थी और यही वजह है कि उन्होंने कभी अपने काम का ढिंढोरा नहीं पीटा।
13 जुलाई 1940 को अंबाला में जन्मी सुनीता जी गद्य और पद्य दोनों पर समान अधिकार रखती थीं। उन्होंने न्यूयॉर्क स्टेट यूनिवर्सिटी से स्नातकोत्तर किया था। बाद में वह पीएचडीक करने यूनिवर्सिटी ऑफ नेब्रास्का गईं। वहां से लौटने के बाद उन्होंने आइआइटी दिल्ली के समाज विज्ञान विभाग में पढ़ाया और विभागाध्यक्ष हुईं।
22 साल की उम्र से उन्होंने लिखना शुरू किया और हिंदी और अंग्रेजी में समान रूप से लिखा। यूनक ऑफ टाइम एंड अदर स्टोरीज किताब की खूब चर्चा हुई। अ गर्ल ऑफ हर ऐज उनका अंग्रेजी उपन्यास था वहीं हिंदी में उन्होंने बोज्यू, सफर के साथी, हेरवा, रंग-रति, जाने लड़की पगली, सौ टंच माल, दूसरे दिन, प्रेम में स्त्री आदि रचनाएं लिखीं। सुनीता जैन ने यदि मेघदूत और रघुवंश का अनुवाद किया तो द मैंगो ट्री नाम से बच्चों के लिए भी लिखा।
पद्मश्री, व्यास सम्मान के साथ उन्हें निराला नामित, साहित्य भूषण, साहित्यकार सम्मान, महादेवी वर्मा, हरियाणा गौरव, पद्मश्री, विश्व हिंदी सम्मान (8वें विश्व हिंदी सम्मेलन, न्यूयॉर्क में) में कई सम्मान मिले। 2015 में उन्हें उनके काव्य संग्रह क्षमा के लिए व्यास सम्मान मिला था। सुनीता जैन ने क्षमा संग्रह में तुलसीदास और रत्नावली की कथा को अनूठी शैली में प्रस्तुत किया था।