Advertisement
08 February 2017

समाज में समन्वय के आदर्श सूत्र गढ़ते हैं तुलसीदास—शेखर सेन

      संस्कृत विद्वान, राधावल्लभ त्रिपाठी ने कहा कि तुलसीदास मुगल शासनकाल में फैली अराजकता व हिंदू समाज में  व्याप्त कुरीतियों से संवाद में समाज को बदलने को प्रेरित करते हैं।

   इससे पूर्व तुलसीदास की लोक-स्वीकृति सत्र के अध्यक्ष, भगवान सिंह ने कहा कि पूरे मध्यकाल में तुलसी जैसा साहसी कवि कोई नहीं हुआ। वे मुगलकाल में रहते हुए अकबर-राज की आलोचना करते हैं। लोक-शिक्षक तुलसी को स्त्री और दलित विरोधी मानना उस समय के संदर्भ में उचित नहीं है। रंजना अरगड़े, अवनिजेश अवस्थी और इंदुव्रत दुआ ने आलेख पढ़े।

   असमिया साहित्यकार नगेन शाइ‌किया की अध्यक्षता वाले भारतीय भाषाओं में तुलसीदास विषयक सत्र में सुमन लता, सत्यभामा राजदान और एस. पट्टनशेट्टी ने अपने प्रदेशों की भाषाओं में तुलसीदास के महत्व को रेखांकित किया।

Advertisement

   पहले दिन रामजी तिवारी ने बीज भाषण में कहा, तुलसी समय और समाज के बीच धुरी बनाते हैं। उन्होंने कहा कि तुलसीदास के साहित्य में शास्‍त्र भी है और लोक भी।शास्‍त्र का परम उद्देश्य लोक का उद्धार है। उनके साहित्य में वादों का समन्वय मिलता है।

सत्र की अध्यक्षता करते हुए अकादेमी अध्यक्ष विश्वनाथ तिवारी ने कहा कि तुलसीदास का समय अकबर का शासनकाल है, जिसमें पांच बार भीषण अकाल पड़ा था। तुलसीदास के साहित्य में उन अकालों के दुखों/कष्टों का मार्मिक वर्णन है। उनका बीज शब्द कलि है। यह कलि ही उनके समय का यथार्थ है। तुलसीदास ने अपने समय की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे आम जन-जीवन को बहुत महत्वपूर्ण तरीके से अभिव्यक्ति दी है।

‘राम कथा परंपरा और तुलसीदास पर केंद्रित सत्र की अध्यक्षता करते हुए आलोचक रमेश कुंतल मेघ ने कहा कि मिथक को इतिहास के रूप में समझने की गलती की वजह से हम इतिहास और मिथक को एक-दूसरे के साथ गड्डमड्ड कर देते हैं, उसी से गलतफहमियां शुरू होती हैं। तुलसी के राम राजा के रूप में नहीं, बल्कि लोक नेता के रूप में हैं। श्रीभगवान सिंह और सूर्यप्रसाद दीक्षित ने अपने आलेख प्रस्तुत किए।

   ‘तुलसीदास का युग और उनका काव्य विषय’ पर केंद्रित, वरिष्ठ आलोचक डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी की अध्यक्षता वाले सत्र में उन्होंने कहा, भक्ति आंदोलन में चारों वर्णों से ऊपर पांचवें वर्ण के रूप में भक्ति को रखते हुए भक्त को जन के रूप में प्रस्तुत किया गया है। तुलसीदास ऐसे उच्च कोटि के सर्जक थे, जिन्होंने अपने समय और समाज के अनुसार पात्रों की पुनर्रचना करता है। गोपेश्वर सिंह, ब्रजकिशोर और नीरजा माधव ने भी अपने-अपने आलेख प्रस्तुत किए।

  अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने सभी प्रतिभागियों, लेखकों, विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों एवं छात्रों, पत्रकारों और सुधी श्रोताओं के प्रति आभार व्यक्त‍ किया। 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: साहित्य अकादेमी, तुलसीदास, समन्वयक, सर्जक, रमेश कुंतल मेघ, राष्ट्रीय संगोष्ठी,
OUTLOOK 08 February, 2017
Advertisement