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10 October 2016

गांव बचेंगे तभी भारत बचेगा

आउटलुक

वयोवृद्घ पत्रकार अच्युतानंद मिश्र ने कहा कि  महात्मा गांधी १९०९ में हिन्द स्वराज लिखने से लेकर १९३६ तक लगातार हरिजन समेत अपनी पत्रिकाओं में लिखते रहे कि गांव और उसकी संस्कृति को बचाना बहुत जरूरी है। भारत को बचाना है तो गांव को बचाना होगा। लेकिन अफसोस कि आजादी पाने के बाद बने देश के संविधान से गांधी और उनके सपने दोनों गायब थे। पश्चिमी सभ्यता जिसे वे शैतानी सभ्यता कहते थे, ने देश को बुरी तरह अपने शिकंजे में ले‌ लिया है और विकास के नाम पर शहरों की कुरीतियां और बुराइयां गांवों तक पहुंच गई हैं।

स्वाधीन भारत में अंग्रेजों के समय से भी ज्यादा उपेक्षा झेल रहे गांव आज भी पलायन, गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा आदि से बुरी तरह ग्रस्त हैं। भाईचारा, संवेदनशीलता, चौपालचर्चा आदि की संस्कृति आदि को बचाया न गया तो हर गांव को दिल्ली भले ही बना दें लेकिन वह गांव नहीं रह जाएगा। क्षेत्रीय अखबारों के महत्व की चर्चा करते हुए उन्होंने बाबूराव विष्‍णु पराड़कर के उस प्रसिद्घ संपादकीय एकपाईएकभाई की याद दिलाई जिसको पढ़कर लोगों ने उन अंग्रेजी एजेंटों को मारकर भगा दिया था जो द्वितीय विश्वयुद्घ के दौरान हर परिवार को सेना के लिए एक व्यक्ति और एक पैसा वसूल रहे थे।

मारिशस के राजदूत जगदीश्वर गोवर्धन ने कहा कि डेढ़ सौ साल पहले यहां गांवों से जो गये वही आज मारिशस पर राज कर रहे हैं। क्योंकि उन्होंने गांव की भरोसे, भाईचारा और श्रम की संस्कृति नहीं छोड़ी। इसलिए गांव को न छोड़ें उससे ही सबकुछ है। पूर्व राजनयिक अनूप मुद्गल का मानना था कि भारत के गांव इसलिए पीछे हैं वे पैदा करते हैं उसका सही दाम नहीं मिलता। ओंकारेश्वर पांडेय की सटीक टिप्पणियों के साथ संचालित कार्यक्रम में बृजेन्द्र त्रिपाठी, आरती स्‍मित, अजीत दुबे, रजनीकांत वर्मा आदि ने शिरकत की। धन्यवाद जयप्रकाश मिश्र ने दिया। प्रस्‍तुति-सत्येन्द्र प्रकाश

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TAGS: गांव, संचार क्रांति, कांस्‍टीटयूशन क्‍लब, गांधी की चिंता, गांव बचेगा तभी बचेगा भारत, constitution club, village concern, gandhi, communication reform
OUTLOOK 10 October, 2016
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