जे स्वामीनाथन गांधी परंपरा के चित्रकार थे, जो वृक्षों से भी बात करते थे
प्रख्यात चित्रकार जगदीश स्वामीनाथन ने देश में आदिवासी कला के न केवल महत्व को पहचाना बल्कि उसे आधुनिक कला के सामने स्थापित किया।वे गांधी परंपरा के चित्रकार थे और भारतीय दृष्टि से चीजों को देखते थे तथा प्रकृति को ही इतिहास मानते थे।
वे कला को इतिहास के बोझ से मुक्त करना चाहते थे तथा उनक़ा मानना था कि कला दर्शकों को संप्रेषित नहीं करती बल्कि उनसे तादात्म्य स्थापित करती है। जे स्वामीनाथन के 96 वीं जयंती पर आज धूमिमल गैलरी द्वारा आयोजित समारोह में वक्ताओं ने यह बात कही।
इस अवसर पर वरिष्ठ कला समीक्षक एवं लेखक प्रयाग शुक्ल तथा डॉक्टर श्रुति लखनपाल टंडन द्वारा जे स्वामीनाथन पर संपादित पुस्तक का लोकार्पण भी किया गया तथा स्वामीनाथन से जुड़े सरोद कलाकार विश्वजीत चौधरी का सरोद वादन भी हुआ। तबले पर संगत अनुराग झा ने किया।श्री चौधरी अमजद अली खान के शिष्य हैं।
मैलोरंग नाट्य संस्था द्वारा स्वामीनाथन की कविताओं का पाठ भी किया गया।समारोह में कवयित्री सविता सिंह अमृता बेरा और सोमा बनर्जी द्वारा स्वामी की कविताओं के अंग्रेजी बंगला और हिंदी अनुवाद का पाठ किया गया ।इसके अलावा प्रसिद्ध कला समीक्षक विनोद भारद्वाज की स्वामीनाथन पर बनाई गई फ़िल्म भी दिखाई गई।
प्रसिद्ध संस्कृति कर्मी अशोक वाजपेयी ने भारतभवन की स्थापना काल से जुड़े स्वामीनाथन के साथ बिताए गए 9 वर्षों को याद करते हुए कहा कि स्वामीनाथन एक महान कलाकार थे जिन्होंने जनजातीय कला को उसका समान अधिकार दिलाया और उसके महत्व को आधुनिक समकालीन कला के बरक्स स्थापित किया।उन्होंने अपना एक संस्मरण सुनाते हुए कहा कि वह किस तरह उनके लान में आध घण्टे तक पलाश वृक्ष से बात करते रहे।
उनकी चित्रकला में चिड़िया पर्वत हैं और एक अनंत आकाश भी है।उसमें एक असीमित स्पेस है।वह मानते थे कला किसी चीज़ के बारे में नहीं बताती बल्कि वह खुद अपना बयान करती है।कला विचारधारा से मुक्त होती है। उन्होंने बताया कि प्रख्यात समाजवादी चिंतक डॉक्टर लोहिया भी स्वामीनाथन का आदर करते थे और एक बार तो अपनी महत्वपूर्ण बैठक को स्थगित कर उनसे मिलने बाहर आ गाए थे। उन्होंने कहा कि स्वामी नाथन दो सूटकेश लेकर भोपाल आये थे और दो सुटकेश के साथ ही मरे।वे मरे भी तो किराए के मकान में।
श्री प्रयाग जी ने कहा कि वे जब 26 वर्ष के थे तो यशस्वी लेखक और दिनमान के संपादक अज्ञेय ने उन्हें स्वामीनाथन का इंटरव्यू करने का मौका दिया जब वे 26 साल के थे और फ्रीलांसिंग कर रहे थे।
उन्होंने श्री स्वामीनाथन के साथ अपने अनेक संस्मरण सुनाए और कहा कि स्वामीनाथन मौलिक कलाकार मौलिक चिंतक और मौलिक मनुष्य भी थे जो सबसे हिलमिल कर आत्मीय रिश्ता बना लेते थे।
श्री उदयन वाजपेयी ने कहा कि स्वामीनाथन महात्मा गांधी के बाद दूसरे व्यक्ति थे जिन्होंने गैर यूरोपीय दृष्टि से इस संसार को देखा।वे हर मामले में औपनिवेशिकता से मुक्त थे।दरअसल वे गांधी की परंपरा के चिंतक थे जिन्होंने लोक कलाओं के महत्व को पहचाना जबकि पश्चिम से यूरोप से लोक कलाएं मिटती गयीं।स्वामी तकनीकी को विकास नहीं मानते थे।
इससे पहले धूमिमल गैलरी के निदेशक उदय जैन ने अतिथियों का स्वागत करते हुए स्वामीनाथ युग की चर्चा की और सभी बड़े कलाकारों के साथ उनके सम्बन्धों का जिक्र किया। समारोह मेंजतिन दास एम के रैना नंद कत्याल कुलदीप कुमार राजेंश मेहरा विनोद भारद्वाज आदि मौजूद थे।