श्री राम की वजह से मिली किन्नर अखाड़ा को मान्यता: लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी
रामायण के सुंदर काण्ड में एक कहानी है, जो भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय को पहचान देती है। जब श्री राम चौदह वर्षों के वनवास के लिए अयोध्या नगरी छोड़कर जा रहे थे, तब उनके राज्य के सभी नागरिक जीव जंतु उन्हें विदा करने आए थे। सभी की आंखें आंसुओं से भरी हुई थी। सभी अंत तक श्री राम के साथ जाना चाहते थे। जब श्री राम को उनके उद्देश्य का पता चला तो उन्होंने सभी को वापस लौटने के लिए कहा। सभी नर, नारी, पशु, पक्षी लौट अपने घर गए। हम न नर थे और न नारी, इसलिए हम 14 वर्षों तक श्री राम के लौटने का इंतजार जंगल में रहकर करते रहे।
जब श्री राम वापस लौटे और उन्होंने देखा कि हम इतने वर्षों तक उनकी प्रतीक्षा करते रहे तो इस भावना से वह अभिभूत हुए। श्री राम ने हमें वरदान दिया कि हम किसी को श्राप और सौभाग्य का आशीर्वाद दे सकते हैं। यही कारण है कि आज भी देशभर में विवाह और बच्चे के जन्म पर किन्नर समाज के लोगों को आशीर्वाद देने के लिए बुलाया जाता है। उनके आशीष का महत्व है।
इसी तरह से लंबे संघर्ष के बाद साल 2018 में श्री राम की कृपा से किन्नर अखाड़ा को मान्यता मिली। साधु संतों ने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि हम मान्यता नहीं देंगे। लेकिन हमें तो रामायण ने मान्यता दी है। रामायण में वर्णित है कि “ देव, नर, किन्नर, असुर सभी रूप में त्रिवेणी संगम में स्नान करने के अधिकारी हैं।“
सुंदर काण्ड ही नहीं बल्कि रामायण के अन्य स्वरूपों, लोक कथाओं में भी किन्नरों का वर्णन मिलता है। किन्नर, मगध, सखियां जैसे नामों से किन्नरों का उल्लेख किया गया है। पारंपरिक किन्नर समाज में एक कहावत है “हम राम राज्य के किन्नर हैं।“ कलयुग में भी हम अपना जीवन श्री राम के आशीर्वाद से चला रहे हैं। रामायण ने भारत में किन्नरों को उनकी पहचाना दिलाने और अखाड़ा बनाने में सहायता की है। किन्नर मंदिर की आचार्य महामंडलेश्वर होने के नाते, मैं राजनीति में न पड़ते हुए, अपनी आस्था और श्रद्धा श्री राम में केंद्रित करना चाहती हूं।
लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी, ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट, अभिनेत्री, नृत्यांगना ने जैसा राखी बोस को बताया।