Advertisement
29 November 2017

तुम जो आओ तो प्यार आ जाए

भूली बिसरीः रॉबिन बनर्जी ने कई फिल्मों में विविधताओं से भरे गीत दिए, लेकिन उनका नाम अग्रणी न हो सका

संगीतकार रॉबिन बनर्जी ने सातवें दशक की कई फिल्‍मों में बहुत सुंदर गीत कंपोज किए। वैसे बंबई के सांस्‍कृतिक कार्यक्रमों में गायक के रूप में उनकी अलग पहचान पहले से ही थी। 15 वर्ष की छोटी उम्र में ही संगीतकार बनने के लिए एक हाफ पैंट और एक शर्ट लेकर कलकत्ता से बंबई भाग आने वाले रॉबिन बनर्जी उन दिनों कपड़े का दूसरा जोड़ा न होने के कारण जुहू के समुद्र में नंगे नहाते थे। उन्हें बंबई सेंट जेवियर्स कॉलेज की नाट्य प्रतियोगिता में सुनील दत्त की टीम द्वारा प्रदर्शित नाटक में संगीत-निर्देशन और गाने का काम मिला। फिर धीरे-धीरे वह आगे बढ़े। ‘हे बाबू हे बंधु’ (हेमंत, साथी) और ‘तुझे दूं मैं क्‍या’ (गीता, हेमंत) जैसे गीतों वाली उनकी प्रथम संगीतबद्ध फिल्‍म इंसाफ कहां है (1958) तो रिलीज नहीं हो सकी, पर उन्‍होंने हिम्‍मत नहीं हारी।   

फिल्‍म मासूम (1960) में संगीतकार वैसे तो हेमंत कुमार थे और उन्‍होंने अपनी बेटी रानू से ‘नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए’ जैसा सदाबहार गीत भी रेकॉर्ड करा लिया था पर उन्‍हें अचानक विदेश जाना पड़ा और शेष काम रॉबिन बनर्जी के हिस्‍से आया। ‘हमें उन राहों पर चलना है जहां गिरना और संभलना है’ (सुबीर सेन, साथी) और ‘ये हाथ ही अपनी दौलत है’ (सुधा मल्‍होत्रा) जैसे मासूम के अन्‍य लोकप्रिय गीतों के संगीतकार रॉबिन बनर्जी ही थे। स्‍वतंत्र संगीतकार के रूप में उनकी पहली फिल्‍म वजीर-ए-आजम(1961) थी जो चली नहीं पर गीत सराहे गए। सुमन के दो एकल गीतों ‘न हम तुम न जालिम जमाना रहेगा’ और ‘तू कहां मैं कहां मुंह छुपाए हुए चांदनी रो रही है’ की इस संदर्भ में चर्चा की जा सकती है। रॉबिन बनर्जी का सबसे मशहूर और काबिलेतारीफ गीत, ‘तुम जो आओ, तो प्‍यार आ जाए’ सखी रॉबिन(1962) में है। योगेश के लिखे और सुमन, मन्‍ना डे द्वारा अद्‍भुत कोमलता से गाई, कल्‍याण थाट में कंपोज इस शहद-सी मीठी धुन का रूमानी स्‍पंदन हमें आज भी गुदगुदाता है। यह रोचक तथ्‍य है कि गीतकार योगेश के कई शुरुआती गीतों के संगीतकार रॉबिन बनर्जी ही थे। रॉकेट टार्जन (1963) जैसी खराब स्टंट फिल्‍म में भी योगेश के लिखे एक खूबसूरत गीत की बेहद लुभावनी धुन रॉबिन बनर्जी ने तैयार की थी। यह अफसोसजनक है कि ‘उनको हमसे बड़ी शिकायत है, प्‍यार करना हमारी आदत है’ (सुमन, साथी) जैसा सुंदर गीत सरलता से आज ढूंढे़ नहीं मिलता। सुमन कल्‍याणपुर, रॉबिन की प्रमुख गायिका रही हैं और जंगली राजा (1963) में भी योगेश और सुमन के साथ ही रॉबिन बनर्जी ने संगीत रचनाएं दी थीं। कामरान फिल्‍म्‍स की दारा सिंह, मुमताज अभिनीत हिट फिल्म आंधी और तूफान (1964) में भी रॉबिन ने कई लोकप्रिय गीत दिए थे। ‘इरादा न था आपसे प्‍यार का’ (सुमन, रफी) को तो एच.एम.वी. ने अपने रोमांटिक डुएट्स-रेयर जेम्‍स में भी शामिल किया था। उषा मंगेशकर के स्‍वर में ‘बाजे पग पग पायल मोरी’ भी उल्‍लेखनीय रचना है। 

मारवल मैन (1964) में अलबत्ता सुमन के गीतों की अपेक्षा योगेश का लिखा मुबारक बेगम के स्‍वर में ‘आंखों-आंखों में हरेक रात गुजर जाती है’ ही याद रखने लायक कृति रही। यह गीत आज के फरमाइशी गीतों के कार्यक्रम में यदा-कदा सुनाई दे जाता है। टारजन एंड डेलिला (1964) के ‘दिल की धड़कन पुकारे, सूने हैं चांद तारे’ (सुमन) और ‘ओ दूर गगन के चंदा’ (उषा मंगेशकर), टारजन एंड सर्कस (1965) के ‘एक मासूम कली जो बहारों में पली’ (उषा मंगेशकर) और कर्णप्रिय कंपोजीशन ‘बुझा दो दीपक करो अंधेरा’ (सुमन), फ्लाइंग सर्कस (1965) में योगेश का लिखा ‘कितने हसीन हो तुम हमको खबर नहीं’ और ‘भरी महफिल में हमसे किस तरह दामन छुड़ाते हो’ (दोनों सुमन), रुस्‍तम कौन (1966) में पुन: योगेश और सुमन को लेकर ‘समां हो नशीला, हो आलम रंगीला’, ‘हम चाहें न चाहें फिर भी कभी वो सामने जब आ जाते हैं’ और ‘तुझे देखा तो याद आ गया कोई सपना’ जैसे लुभावने एकल गीत, हुस्‍न का गुलाम (1966) में रूमानी गीत, ‘देखा है जब से आपका चेहरा’ (महेंद्र) और स्‍पाई इन गोवा (1966) के ‘ये समां खुशनुमा’ (उषा खन्‍ना, जिन्‍होंने विधिवत रॉबिन बनर्जी से संगीत सीखा भी था) और ‘संभालो जरा दिल को ओ बंदापरवर’ (सुमन) जैसे नगमे रॉबिन बनर्जी के वैसे गीत हैं जो सुंदर होने के बावजूद लोकप्रिय नहीं हुए। रॉबिन बनर्जी के बारे में यह भी उल्‍लेखनीय है कि लता ने उनके लिए कभी नहीं गाया पर सुमन के साथ उन्‍होंने लता की कमी नहीं खलने दी। दो दुर्घटनाओं और लंबी बीमारी के कारण आठवें दशक में रॉबिन बनर्जी फि‍ल्‍मी दुनिया से लगभग अलग हो गए। फिर आया तूफान (1973) और अप्रदर्शित राज की बात उनकी अंतिम फि‍ल्‍में रहीं। हालांकि राज की बात में उन्‍होंने पियानों की तरंगों पर ‘मुझको पहचानो मेरे दर्द का अंदाजा करो’ (आशा) और ‘दो घड़ी जरा चैन से जीने मुझे हमराज दो’ (रफी) में गजब की कशिश-भरी धुनें दी थीं। 27 जुलाई, 1986 को उनकी मृत्‍यु हुई। 

Advertisement

 (लेखक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एवं संगीत विशेषज्ञ हैं)

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Robin Banerjee, music, संगीत की दुनिया, रॉबिन बनर्जी
OUTLOOK 29 November, 2017
Advertisement