Advertisement
28 July 2015

दिल्ली के लिए दिली ख्वाहिश

फोटोलिया डॉट कॉम

एक

पिक्चर-पोस्टकार्ड पर

रोशनी से जगमगाते

Advertisement

किसी शहर के

कुछ अंधेरे हिस्से भी होते हैं।

हो सके अगर तो

उजाले से निकल बाहर

कभी उधर भी जाकर

आओ जरा।

दो

मैं चाहता हूं 

दिल्ली में

कुछ दिनों के लिए

'ब्लैक-आउट’ हो जाए

मैं देखना चाहता हूं 

रोशनी से जगमगाते

रहने के बावजूद

अपराध-राजधानी बना

यह शहर

सचमुच के अंधेरे में

क्या गुल खिलाता है!

तीन

रोशनी में जो दिखता है

वह हमें अक्सर 

चकाचौंध और गुमराह

ही करता है आखिर 

मैं अंधेरे में

भारत की राजधानी का

फक्क पड़ता और

सफेद होता चेहरा

देखना चाहता हूं।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: poem, arpan kumar, nadi ke paar nadi, mai sadak hu, bodhi prakashan, national publishing house, कविता, अर्पण कुमार, नदी के पार नदी, मैं सड़क हूं, बोधि प्रकाशन, नेशनल पब्लिशिंग हाउस
OUTLOOK 28 July, 2015
Advertisement