06 October 2015
अनुपस्थित है किसान
बरस रही है धूप
सावन में
जेठ की।
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जल रहे हैं
खेत
इतरा रहे बादल
आकाश में।
सूखी हैं नदियां
सूखी हैं नहरें
गांव में होरी की
आंखों से
हो रही बरसात।
गांवों को डस रहा
सन्नाटा।
दफ्तरों में आ गई है
खुशियों की बाढ़
कविता में
संवेदना का
है सुखाड़।
अखबारों में खबरों की भीड़
केवल अनुपस्थित है
किसान।