Advertisement
02 July 2015

वह सिर्फ जूता तो नहीं बनाता

गूगल

वह निर्जीव शिल्प में जूते नहीं गांठता

वह कारखाने से बाहर आदिम कला को भाषा-परिभाषा देता है

 

Advertisement

अपनी खाल की तरह वह संवारता है चमड़े को भोर से

स्निग्ध कोमल खालों के बीच रहता हुआ

वह उसकी सुगंध में डूब जाता है बगैर जिसके जीना कठिन

 

वह सूखते-कुम्हलाते बालों को दुख में कहता है अलविदा

कोई मशीन नहीं है उसके पास

वह अपने औजारों को बच्चों की तरह पालकर बरतता है

 

पूरे नाप-जोख के साथ काटता है चमड़ा सलीके से

वह उसका एक-एक टुकड़ा संभालकर रखता है

न जाने किस गरीब की पनइया के जीवन पर उसे आना है

 

तरह-तरह के लकड़ी के नापों पर करीने से मंडाता चमड़ा, वह स्वप्न में डूब जाता है

उन आकारों के बारे में सोचता है रात गए जिनका बनना शेष है

वह पैरों के नाप के बारे में, हो सकने वाले दर्द के साथ सोचता है

 

वह जानता है उस चुभन को जो किसानों को होती है खेत में काम करते हुए

वह मजूरों के पांवों को आंखों में बैठाकर जूते के चित्र बनाता है

उसके बनाए जूतों को होना चाहिए कलाकारों की प्रदर्शनी में

 

वह कोमल चमड़े को गंध सहित सहेजता है जूतों में

पैतृक कला से वह गढ़ता है ऐसा सजीव जूता, जिसमें उसकी अपनी गंध भी होती है

 

कोई कलाकार ऐसा चित्र किस विधि से बना पाएगा, वह सोचता है

वह सिर्फ जूता तो नहीं बनाता, यह सोचता फिर काम में जुट जाता है

वह इसके आगे दुनिया के बारे में सब जानता हुआ भी, कुछ और सोच नहीं पाता

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: ghar-ghar guma, magar ek awaz, vageshwari puraskar, director bhartiya ghyanpeeth, घर-घर घूमा, मगर एक आवाज, वागेश्वरी पुरस्कार, निदेशक भारतीय ज्ञानपीठ
OUTLOOK 02 July, 2015
Advertisement