विनोद कुमार शुक्ल की कविताएं
कविता -1
यह सच है
कि मेरे बाबा उत्तर प्रदेश से
यहां आये|
मेरा जन्म यहीं हुआ
मेरे पिता का जन्म
मेरी बेटी का भी
जो अब पचास बरस की भइ
अथवा इक्यावन बरस के होही
वह महराष्ट्र में ब्याही गई
न मैं वहाँ जा पाता दस पाँच बरस
न वह यहाँ आ पाती दस पाँच बरस
इतना वह भी वहाँ बस गई|
इस बसने बसाने में
पर इतना थक गया अपनों में
कि बरसों के पड़ोसी के घर गया
तो उसके लिए
उत्तर प्रदेश से आया हुआ गया|
गली मुहल्ले में मैं पुराना बाहरी
बल्कि अटल बाहरी
कि देसी होने के लिए
देश में कोई देस नहीं|
कविता -2
मैंने खुद को अपने घर में
नज़रबंद कर लिया है -
अब कोई छुपा हुआ नहीं रह सकता
यह मैं जानता हूं फिर भी|
कानून की नज़र मुझ पर नहीं पड़ी
पर पड़ोसी तक नज़र पहुंच चुकी थी
पड़ोसी ने ऐसा कभी भी कुछ नहीं किया,
वह इतना खुला हुआ था
कि उसके व्यक्तित्व में
कोई बंद खिड़की नहीं थी
उसकी बातें खुली खिड़की से सुनाई देतीं
यहां तक कि उसकी सोच भी
खुली खिड़की से दिखाई दे जाती|
उसके एक कमरे के घर में तो
दरवाज़ा भी नहीं था
उसी के घर कुछ पक रहा था
शायद षड्यंत्र, नहीं
खाना पक रहा था
और वह रंगे हाथ पकड़ा गया !!
(साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित वरिष्ठ कवि, उपन्यासकार। खिलेगा तो देखेंगे, नौकर की कमीज, लगभग जय हिंद चर्चित कृतियां)