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09 May 2023

इंटरव्यू : संदीप शुक्ल - युवा कवियों को कविता पाठ के साथ मंच की गरिमा का ध्यान रखना होगा

 शायरी और कविता ट्रेंडिंग टॉपिक है। आईआईटी, आईआईएम में पढ़ने वाले छात्र, छात्राएं बड़े शौक से कविताएं लिख रहे हैं, कवि सम्मेलन सुन रहे हैं। सोशल मीडिया पर शायरी का बोलबाला है। आज के दौर का शायर, कवि फटेहाल नहीं घूम रहा। वह उन सभी सुविधाओं का भोग कर रहा है, जिसका वह अधिकारी है। कवि संदीप शुक्ल, हिंदुस्तान के एक ऐसे ही कवि हैं, जो प्रयागराज की भूमि से निकलकर कतर की यात्रा कर चुके हैं। बीते दिनों संदीप शुक्ल ने कतर में कवि सम्मेलन पढ़ा। संदीप शुक्ल कवि सुनील जोगी, हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा, गीतकार कुंवर बेचैन के साथ कवि सम्मेलन का मंच साझा कर चुके हैं। जिन्होंने कवि सम्मेलन और संदीप शुक्ल की यात्रा को देखा है, वह कहते हैं कि आने वाले दिनों में संदीप शुक्ल, हिंदी कवि सम्मेलन का बड़ा नाम बन सकते हैं। संदीप शुक्ल से उनके जीवन और लेखन सफर के बारे में आउटलुक हिन्दी से मनीष पाण्डेय ने बातचीत की।

 

 

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अपने शुरुआती सफ़र के बारे में बताइए, कहां जन्म हुआ, किस तरह के परिवेश में परवरिश हुई ?

 

मेरा जन्म इलाहाबाद के उच्च मध्यवर्गीय परिवार में हुआ।पिताजी डॉ.ए.डी. शुक्ल कृषि वैज्ञानिक थे और माताजी गृहणी ।घरवालों की इच्छा थी कि बच्चा इंजीनियरिंग करके सिविल सर्विसेज़ में जाए जो कि हमारे समाज के अधिकतर मध्यम वर्गीय परिवार की सोच होती ही है। मैंने माता पिता की इच्छा पूरी की और इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया। मगर प्रारब्ध कुछ ऐसा रहा कि मैं कवि सम्मेलनों की दुनिया में पहुंच गया।

 

 

 

 

उम्र के किस पड़ाव पर आकर साहित्य में रुचि जगी, किन कवियों, शायरों ने प्रभावित किया ?

 

अगर आपके विद्यालय में डॉ.सूर्यकांत झा जैसे साहित्यकार ख़ुद ही शिक्षक हों तो साहित्य में रुचि होना लाज़मी है।झा सर एन.सी.ई.आर.टी. की किताबों को केवल पढ़ाते ही नहीं थे बल्कि उनकी समीक्षा भी करते थे।जब मैंने हरिवंश राय बच्चन ,भवानी प्रसाद मिश्रा,फ़िराक़ गोरखपुरी,दुष्यंत कुमार को पढ़ा तो साहित्य में कुछ करने की लालसा उत्पन्न हुई।इसके उपरान्त विश्व साहित्य पढ़ने की इच्छा मुझे शेक्सपियर,वर्ड्ज़वर्थ और कीट्स के क़रीब ले गयी।निजी तौर पे मैं ‘दिनकर’ और ‘फ़िराक़’ से बेहद प्रभावित था। मौजूदा समय के शायरों में वसीम बरेलवी,ज़ुबैर अली ताबिश ,तहज़ीब हाफ़ी, अली जरयून, कुंवर बेचैन प्रेरणाश्रोत हैं। इस पूरी यात्रा में कवि अमन अक्षर मेरे मार्गदर्शक रहे हैं।

 

 

 

 

स्टैंड अप कॉमेडी के दौर में युवाओं को कवि सम्मेलन और मुशायरे से जोड़ पाना कितना चुनौतीपूर्ण है ?

 

आज के समय में जब साहित्य,सिनेमा के नाम पर आपको अश्लीलता देखने को मिल रही है, अधिकांश स्टैंड अप कॉमेडी, वेब सीरीज़ में फूहड़पन चरम पर है तो नए लड़के-लड़कियों को साहित्य की तरफ़ खींच पाना थोड़ा मुश्किल तो है।लेकिन अतीत में कई लोगों ने इसे कर दिखाया है तो ये साफ़ है कि नामुमकिन कुछ भी नहीं।यूं भी स्टैंड अप कामेडी अलग विधा है ,कवि सम्मेलन आर्ट फ़ॉर्म ही अलग है । मैं व्यक्तिगत रूप से बहुत कुछ सीखता भी हूँ वहाँ से । अनुभव सिंह बस्सी को अपना मेंटर मानता हूँ , बहुत कुछ सीखता हूँ उनसे। मैंने अल्प काल में ही 100 कॉलेज शो किए हैं और देखा है कि आईआईटी, आईआईएम के छात्रों में हिंदी कविता को लेकर काफ़ी दीवानगी है । आज जब आईआईटी,आईआईएम ,एनआईटी में पढ़ने वाले बच्चे मेरे काव्य पाठ को आकर सुनते हैं, वह भी उस दौर में जब अंग्रेज़ी गाने सुनना ना केवल एक मनोरंजन का साधन है बल्कि एक स्टेटस सिम्बल भी है तो, कहीं ना कहीं सब कवियों की कोशिश मुकम्मल होती दिखाई देती है।

 

 

कवि सम्मेलन और मुशायरे की दुनिया में आपकी यात्रा कैसी रही है ?

 

मैं शुरू से ही भाग्यशाली रहा हूं। मैंने पहली बार कविता, स्मृतिशेष डॉक्टर राहत इंदौरी साहब के सामने पढ़ी। धीरे धीरे सभी वरण्य कवियों का मार्गदर्शन मिलता रहा । करियर के शुरुआती दौर से आज तक मेंटॉर के रूप में अमन अक्षर जी को देखता हूँ । गीतऋषि कुँवर बेचैन ,पद्मश्री सुरेंद्र शर्मा , पद्मश्री सुनील जोगी आदि कवियों के साथ मंच साझा कर आप बहुत कुछ सीखते हैं । यह सीख मंच से इतर भी बहुत काम आती है । यह मेरी खुशकिस्मती है कि मैं इतनी कम उम्र में ही प्रयाग से कतर तक का सफर कर चुका हूं। इस उपलब्धि के लिए ईश्वर का, परिवार का आभार व्यक्त करता हूं। 

 

 

कवि सम्मेलन, मुशायरे को और अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए क्या किया जाना चाहिए?

 

मुझे ऐसा लगता है जो भी सम्भव प्रयास हैं, वो किए जा रहे हैं। कवि सम्मेलन, मुशायरे डिजिटल हो चुके हैं। कवि सम्मेलन, मुशायरे की पहुंच स्कूल, कॉलेज, आईआईटी, एआईआईएमएस तक पहुंच गई है लोग घर बैठे फोन पर कवि सम्मेलन का आनंद ले रहे हैं।बस ज़रूरत है एक नया ढाँचा तैयार करने का जिसमें नई पीढ़ी कविता के साथ साथ , मंच की मर्यादा और बड़े बुजुर्गों की सीख भी साथ रखे। बिना इसके प्रगति संभव नहीं है। 

 

 

जीवन में प्रेरणा का स्त्रोत क्या है, किस तरह ख़ुद को प्रेरित रखते हैं ?

 

जीवन में प्रेरणा का स्त्रोत बाबा श्री केदारनाथ शुक्ल जी हैं। मैं बड़ों के आशीर्वाद और छोटों के प्यार से ख़ुद को प्रेरित करता हूँ।

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OUTLOOK 09 May, 2023
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