इंटरव्यू - सपना मूलचंदानी "युवाओं को चाहिए कि वह उर्दू की क्लासिकल शायरी पढ़ें"
सोशल मीडिया के दौर में उर्दू शायरी को खासा तवज्जो मिल रही है। युवा उर्दू शायरी के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। युवाओं को शायरी से जोड़ने में अहम भूमिका युवा शायर और शायरा निभा रहे हैं। एक ऐसी ही युवा शायरा हैं सपना मूलचंदानी, जिन्होंने बहुत कम समय में अपने हुनर और अंदाज से उर्दू मुशायरे की दुनिया में अपनी पहचान बनाई है। सपना मूलचंदानी से उनके साहित्यिक सफर के बारे में आउटलुक से मनीष पाण्डेय ने बातचीत की।
आपकी शायरी का मकसद क्या है ?
हर इंसान अपनी ज़िंदगी में तमाम तरह के अनुभवों को महसूस करता है। इन अनुभवों को जाहिर करने की सलाहियत सभी को नहीं होती। मेरी शायरी का इतना ही मकसद है कि मैं जो कुछ भी महसूस करती हूं, उसे जाहिर कर सकूं। जब मेरे इजहार में दूसरे लोगों को अपनी खुशी, अपनी तकलीफ नजर आती है तो इसे मैं अपनी खुशकिस्मती समझती हूं।
शायरी के प्रति रुझान किस तरह पैदा हुआ?
कॉलेज के दौर में मुझे शायरी का शौक था। मैं शायराना अंदाज में गुफ्तगू किया करती थी। लेकिन तब तक मैंने अपने ख्याल को कागज पर उतारना शुरू नहीं किया था। जब नौकरी के सिलसिले में मेरा तबादला हुआ तो नए शहर में मुझे खालीपन महसूस होने लगा। मुझे पुराने दोस्तो, पुराने समय की याद आने लगी। यह मौका था, जब मैंने पहली बार लिखना शुरु किया। इसी दौरान शायरी के प्रति और लगाव बढ़ा।
किन शायरों का आप पर प्रभाव पड़ा?
मैं उर्दू के सभी क्लासिकल शायरों से प्रभावित रही हूं। मुझे मीर तकी मीर, मिर्जा गालिब, फैज अहमद फैज ने काफी मुतासिर किया है। अहमद फराज की शायरी मगर मेरी पसंदीदा रही है। जिस तरह आसान जबान में अहमद फराज, गहरी और दिल छूने वाली बात कह जाते हैं, वह मुझे बहुत रोमांचित करता है।
जब आपने तय किया कि आप मुशायरे में शिरकत करेंगी तो आपके परिवार, परिचितों का क्या रवैया था ?
शुरुआत में मुझे भी किसी का ज्यादा साथ नहीं मिला। मगर जब मैं पूरी शिद्दत से शायरी के प्रति समर्पित हो गई तो आहिस्ता आहिस्ता लोगों ने मेरी हौसला अफजाई की। मेरा मानना है कि ऐसा सभी के साथ होता है और इसका अफसोस नहीं करना चाहिए। यह दुनिया यूं भी उगते सूरज को ही सलाम करती है। संघर्ष के दिनों में तो लोग मजाक ही उड़ाते हैं। असली शख्सियत तो इंसान की तब उभर कर सामने आती है, जब सब आपके खिलाफ हों और आप तब भी अपने पैशन के लिए पूरे मन से प्रयास करते रहें।
जो युवा मुशायरे की दुनिया में कदम रखना चाहते हैं, उन्हें आप क्या कहना चाहेंगी ?
युवाओं से मुझे इतना ही कहना है कि वायरल होने, कूल बनने के लिए शायरी की दुनिया में कदम न रखें। जब तक आपकी बुनियाद कमजोर होगी,आपका कोई अस्तित्व नहीं होगा। और बुनियाद मजबूत करने के लिए आपको पढ़ना होगा। आप उर्दू के मशहूर शायरों को पढ़ें। तभी आपकी समझ विकसित होगी। आपका क्राफ्ट बेहतर होगा। अन्यथा होगा यह कि आप कुछ भी उल जलूल लिखते रहेंगे और समझते रहेंगे कि आप बड़े आला दर्जे की शायरी कर रहे हैं। आपको किसी भी कीमत पर गलतफहमी का शिकार नहीं होना चाहिए।
कवि सम्मेलन, मुशायरे की दुनिया में महिलाओं की स्थिति क्या है ?
महिलाओं की जो स्थिति आज समाज में है, वही स्थिति कवि सम्मेलन, मुशायरे की दुनिया में भी है। समय के साथ अदबी दुनिया में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा है। अब देश के छोटे शहरों से भी लड़कियां आ रही हैं, जो शायरी कर रही हैं और बड़े मंचों पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रही हैं। सोशल मीडिया के आने के बाद से प्रक्रिया लोकतांत्रिक हुई है। यदि आप में प्रतिभा है तो सोशल मीडिया, ओपन माइक के माध्यम से आपका हुनर जनता तक पहुंचेगा। यदि आप के कॉन्टेंट में दम होगा तो आपको बड़े मंच पर भी शायरी पढ़ने के अवसर मिलेगा। खुशी की बात है कि बीते कुछ समय में कई प्रतिभाशाली महिला कवयित्री, शायरा निकलकर सामने आई हैं।
आपने अभी तक जिन मुशायरों में शिरकत की है, उनसे जुड़े अनुभवों के बारे में क्या कहना चाहेंगी?
मेरे अनुभव बेहद सकारात्मक रहे हैं। मैंने रेख़्ता के मंच पर भी शायरी पढ़ी है और बहरीन, दुबई, सऊदी अरब का मुशायरा भी पढ़ा है। इस दौरान मुझे बहुत ही अच्छे आयोजक मिले हैं। ऐसे कई अवसर आए, जब मैं यह सोचकर दुविधा में थी कि जनता का क्या रिस्पॉन्स होगा। मगर सब कुछ इतनी अच्छी तरह से संपन्न हुआ कि हर आयोजन के बाद हौसला बढ़ता चला गया। इस पूरे सफर में मैंने यह महसूस किया कि यदि आपकी नियत अच्छी है तो अच्छे लोग खुद ही आपसे जुड़ते चले जाते हैं, आपको सहयोग करते जाते हैं।