दो जबानें एक रास्ता
उर्दू और हिंदी के बीच संवाद को बढ़ाने की दिशा में राजकमल प्रकाशन ने एक नई पहल की घोषणा की है। प्रकाशन जल्द ही ‘राजकमल उर्दू’ के तहत उर्दू के चुनिंदा और महत्वपूर्ण साहित्य को पाठकों के लिए देवनागरी में उपलब्ध कराएगा। इस कदम से हिंदी उर्दू न जानने वाले हिंदी पाठक उर्दू की बेहतरीन रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे।
राजकमल पिछले अस्सी साल से हिंदी में श्रेष्ठ रचनाएं पाठकों को उपलब्ध कराता रहा है। राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक माहेश्वरी का मानना है कि हिंदीभाषी समाज को समग्रता से समझने के लिए हिंदी और उर्दू दोनों जबानों के साहित्य को पढ़ना जरूरी है।
उर्दू का साहित्य-संसार अनोखा और बड़ा है। इस भाषा में बहुत काम हुआ है। बावजूद इसके अब तक इस भाषा का एक छोटा-सा ही हिस्सा सामने आ सका है। यह इस भाषा की विडंबना ही रही कि समय के साथ यह फासला बढ़ता गया। अरसे से इस खाई को पाटने की जरूरत पर बात हो रही थी। इस बढ़ते फासले को कम करने की मंशा ने ही राजकमल उर्दू की नींव रखी।
तसनीफ़ हैदर
राजकमल उर्दू’ के संपादन की ज़िम्मेदारी कथाकार, शायर और पॉडकास्टर तसनीफ़ हैदर संभाल रहे हैं। तसनीफ़ हैदर एक उर्दू लेखक और कवि हैं, जो ‘अदबी दुनिया’ नाम से एक उर्दू साहित्यिक ब्लॉग और यूट्यूब चैनल चलाते हैं। उर्दू में ‘नए तमाशों का शहर’ (शायरी) और ‘नया नगर’ (उपन्यास) जैसी किताबें लिखने वाले तसनीफ़ के उपन्यास ‘नया नगर’ का हिंदी अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है। तसनीफ़ ‘और’ नाम की पत्रिका के संपादक भी हैं। यह पत्रिका समकालीन हिंदी साहित्य को उर्दू पाठकों तक पहुंचाने का काम करती है। उनका ‘अदबी दुनिया’ के नाम से एक ऑडियोबुक चैनल भी है जिसके जरिये हजार से ज्यादा उर्दू कहानियां, अहम शायरों के कई मजमूए और काबिल-ए-जिक्र उपन्यास पेश किए जा चुके हैं।
‘राजकमल उर्दू’ की घोषणा करते हुए राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक महेश्वरी ने कहा, ‘‘हिंदी और उर्दू साझी जमीन की जबानें हैं। एक-दूसरे के बिना ये नामुक्कमल हैं। हमारे अनुभव में उर्दू से हिंदी में आने के लिए ‘अनुवाद’ नहीं, सिर्फ ‘लिप्यंतरण’ की ज़रूरत होती है क्योंकि भाव, व्याकरण, मुहावरे, सब साझे होते हैं। लिपि की भिन्नता के कारण शायद दूरी अधिक बढ़ी है, जबकि साहित्य के ज़रिए इन दोनों भाषाओं के समाज के बीच आपसदारी अधिक होनी चाहिए थी।’’
उन्होंने कहा, आज जब उर्दू शायरी हिंदी भाषी युवाओं में आश्चर्यजनक रूप से लोकप्रिय हो रही है, जब दोनों भाषाओं के लेखक और पाठक साझा मंचों पर आ रहे हैं, तब यह जरूरी है कि प्रकाशन जगत भी इस संवाद को मजबूती दे। हमारा मानना है कि भाषाओं के बीच दूरियां तभी दूर हो सकेंगी जब हम उनके बीच संवाद को बढ़ाएंगे। ‘राजकमल उर्दू’ का विचार हमारे उसी प्रतिबद्ध विश्वास से निकला है कि साहित्य सीमाएं नहीं, बल्कि पुल बनाता है।
इस मौक़े पर तसनीफ़ हैदर ने कहा, ‘‘राजकमल उर्दू’ की शुरुआत इस एहसास से हो रही है कि देवनागरी पढ़ने वाले बड़े हिंदी पाठकवर्ग तक उर्दू की अहम किताबों को पहुंचाना अब जरूरत बन चुका है। तमाम कोशिशों के बावजूद हिंदी समाज उर्दू के बेहतरीन लेखन से एक अरसे से महरूम रहा है। ऐसे वक्त में, जब जबानों के नाम पर हर तरफ़ नाइत्तिफाकियां गहराती जा रही हैं, इन दो जुड़वां तहजीबों, हिन्दी और उर्दू को करीब लाने की सख्त जरूरत है, ताकि हिंदी साहित्य और समाज में उर्दू की अहमियत और उसकी तहजीबी समझ को नए सिरे से पैदा किया जा सके। हमारी कोशिश आगे चलकर उर्दू पढ़नेवालों का दायरा भी बढ़ाने की होगी, जहां वे न सिर्फ नई किताबें, बल्कि मुख्तलिफ बानों के तर्जुमे भी उर्दू में पढ़ सकें।