पुस्तक समीक्षाः औरंगजेब नायक या खलनायक
बेशक, औरंगज़ेब सोलवहीं सदी में पैदा हुआ और सत्रहवीं सदी में मर गया। लेकिन सैकड़ों साल बाद भी हर दिन वह एक नए विवाद के साथ पैदा होता है और दूसरे विवाद से पहले मर जाता है, फिर से जिंदा होने के लिए। भारत में कई की नजर में वह रावण तो कई की नजर में रहमतुल्ला अलह है। हर की अपनी सोच और समझ के साथ उसमें बुराइयां या अच्छाइयां ढूंढते रहते हैं। पर सच क्या है, क्या है इन आरोपों की हकीकत? उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में जदुनाथ सरकार के बाद शायद ही औरंगजेब पर बीते सौ सालों में किसी ने काम किया है। नतीजा ये हुआ कि औरंगजेब पर भ्रम का अंबार है। पत्रकार और लेखक अफसर अहमद ने औरंगजेब के किरदार पर जमी गफलत की इस धूल को दूर करने का बीड़ा उठाया है। उन्होंने इस पर औरंगज़ेब नायक या खलनायक नाम से 6 वॉल्यूम की सीरीज शुरू की है। जिसमें से तीन वॉल्यूम प्रकाशित हो चुके हैं। यह सीरीज दरअसल उस पर लगे आरोपों की ऐतिहासिक दस्तावेज की रोशनी में पड़ताल है। इसे आप दस्तावेज भी कह सकते हैं। इसके हर वॉल्यूम में कई हैरान करने वाले वाकये, आरोपों के फैक्ट चेक और औरंगजेब के हाथ से लिखे हुए फरमान शामिल हैं।
वॉल्यूम -1
औरंगजेब नायक या खलनायक (बचपन से सत्ता संघर्ष तक)
अफसर अहमद
इवोको पब्लिकेशंस
144 पृष्ठ (पेपरबैक)
250 रुपये
पहला खंड औरंगजेब के बचपन से लेकर उसके सत्ता संघर्ष शुरू होने से पहले की दास्तान बयान करता है। यह कई मायने में बेहद अहम है। इसमें औरंगजेब की शादियों, उसकी मुहब्बत, उसके बच्चों से जुड़ी कई रोचक जानकारियां हैं। दारा से उसकी नाराजगी की क्या वजह थी इसमें उसका उल्लेख भी है। इसमें औरंगजेब के अकेले हाथी का सामना करने के वाकये का भी शानदार वर्णन है। औरंगजेब से जुड़ा एक किस्सा भी है जब वह बल्ख में युद्ध के मैदान के बीच में बिना अपनी जान की परवाह किए अपने हाथी से उतर जाता है और जुहर (दोपहर की) नमाज पढ़ना शुरू कर देता है। पहला खंड औरंगजेब और दारा के किरदार को बखूबी बयान करता है। इस खंड में औरंगजेब की अपने भाइयों के साथ पनपती नफरत साफ देखी जा सकती है।
वॉल्यूम-2
औरंगजेब नायक या खलनायक (बचपन से सत्ता संघर्ष तक)
अफसर अहमद
इवोको पब्लिकेशंस
184 पृष्ठ (पेपरबैक)
300 रुपये
दूसरा खंड सत्ता हासिल करने के लिए औरंगजेब का अपने भाइयों के साथ हुए संघर्ष की बारीक जानकारी देता है। लेखक ने सत्ता संघर्ष के दौरान चली गई चालों और कूटनीतियों का बखूबी उल्लेख किया है। साथ ही दारा शुकोह का सिर काटने की धारणा का फैक्ट चेक भी किया है। लेखक ने अपनी बात रखने के लिए उस दौर की किताबों, शाही फरमानों का इस हिस्से में प्रमुखता से उल्लेख किया है। दारा के साथ कैद में क्या-क्या हुआ इसकी बेहद हैरान कर देने वाली जानकारी लेखक ने दी है। दूसरा खंड पढ़ने के बाद पाठक के सामने यह बात पूरी तरह साफ हो जाती है कि दरअसल उस दौर के हालात क्या थे और विवाद धर्म का था या फिर सत्ता का।
वॉल्यूम-3
औरंगजेब नायक या खलनायक (औरंगजेब बनाम राजपूत)
अफसर अहमद
इवोको पब्लिकेशंस
144 पृष्ठ (पेपरबैक)
350 रुपये
तीसरा खंड दरअसल औरंगजेब के राजपूतों के साथ हुए विवाद पर रोशनी डालता है। औरंगजेब पर ये आरोप लगते रहे हैं कि उसने राजपूतों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया लेकिन क्या सचमुच ऐसा था, लेखक ने इसकी पड़ताल की है। इसमें मुगलों और राजपूतों के बीच 1679 में दिल्ली में हुए संघर्ष की बेहद रोचक जानकारी है साथ में उन बादशाहों के बारे में जानकारी दी गई है, जो राजपूत रानियों से पैदा हुए। कितने राजपूत और मराठा मनसबदार दारा से युद्ध के वक्त औरंगजेब का साथ दे रहे है उनके नाम व मनसबदारी की बेहद महत्वपूर्ण जानकारी भी लेखक ने दी है। इसमें खास बात जो नजर आती है वह यह कि जो विवाद हम धर्म के साथ जोड़कर देख रहे हैं क्या सचमुच हालात वैसे ही थे, लेखक ने इस तथ्य की पड़ताल की है। दुर्गादास राठौर, अजीत सिंह के बारे में भी काफी कुछ तीसरे खंड में जानने को मिलता है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि लेखक ने अपनी ओर से औरंगजेब से जुड़ी कई जानकारियां देते वक्त तटस्थ रहने की पूरी कोशिश की है और हर वो दस्तावेज अपनी किताब में रखा है, जो पाठक को औरंगजेब पर प्रामाणिक जानकारी हासिल करने में मदद करता है। अभी इसके तीन खंड ही आए हैं, उम्मीद है कि जल्द ही बाकी खंड प्रकाशित होंगे।