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21 December 2022

पुस्तक समीक्षा: राजनीति में ज्ञान

“पुस्तक तमाम विमर्शों और नए सवालों को सामने रखकर उस पर विचार करने को प्रेरित करती है”

ज्ञान की राजनीति

मणीन्द्र नाथ ठाकुर

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प्रकाशक:सेतु प्रकाशन

मूल्यः 350 रुपये

पृष्ठ: 360

इक्कीसवीं सदी दो दशकों में ही ऐसे-ऐसे मुकाम दिखा रही है कि जिसे पिछली सदी तक तर्कसंगत और पुख्ता वैज्ञानिक सिद्घांत तथा अवधारणाएं माना जाता रहा है, इससे नई घटनाओं की व्याख्या असंभव-सी लगने लगी है। ऐसे में मणीन्द्र नाथ ठाकुर की किताब ज्ञान की राजनीति उन तमाम विमर्शों और नए सवालों को सामने रखकर उस पर विचार करने को प्रेरित करती है।

दरअसल, 2008 के आर्थिक संकट को जैसे दुनिया का शायद ही कोई अर्थशास्त्री  अनुमान लगा सका था, वैसे ही राजनीति में धर्म की वापसी का भी जवाब पुराने तर्कों के आधार पर तलाशना आसान नहीं रह गया। लेखक उस ओर पाठकों का ध्यान दिलाते हैं कि वर्तमान आर्थिक संकटों ने जाहिर किया कि आदमी के आर्थिक फैसले में अनेक बार सिर्फ तर्क और गणित के आधार पर नहीं चलते, यानी वे कुछ अतार्किक भावनाओं पर भी आधारित होते हैं। फिर तो जिस ‘व्यावहारिक अर्थशास्त्र’ को पहले गंभीरता से नहीं लिया जाता था, ऐसी नई अवधारणाएं खंगालने वाले अर्थशास्त्रियों को लगातार कई नोबल पुरस्कार मिल गए। इसी तरह आज की राजनीति में धर्म की जोरदार होती पेशबंदी पर भी लेखक विचार के सूत्र मुहैया कराते हैं। “चाहे भारतीय जनता पार्टी की सत्ता रहे या जाए, धर्म आधारित राजनीति हमारे समाज का एक सच होने जा रही है। बल्कि यह भी समझना जरूरी है कि धर्म की इस वापसी में पूंजीवाद की पूरी तरह साझेदारी है, क्योंकि धार्मिक कट्टरता जनता को आर्थिक उन्नति के लिए संघर्ष करने से रोकती है...अब पूंजीवाद के खिलाफ कोई संघर्ष करता है, तो धर्म के सही रूप के लिए भी संघर्ष करना पड़ेगा। मुक्तकामी धर्म की कल्पना करनी पड़ेगी और धर्म की यथार्थवादी व्याख्या खोजनी पड़ेगी।” इसी तरह दर्शन, समाज-शास्त्र, साहित्य पर भी नए सिरे से विचार करना पड़ेगा।

किताब में आठ अध्यायों में भारतीय दर्शन से संवाद, मनुष्य के स्वभाव की अवधारणा और समाज अध्ययन, समाज अध्ययन के स्वरूप पर भारतीय बहस, संक्रमण काल में चिंतन के लिए सृजन-संवाद, भारतीय जनतंत्र पर पुनः चिंतन, धर्म की मुक्तिकामी परंपरा की खोज और उपसंहार में नई दृष्टि के साथ सभी विमर्शों को समेटा गया है। किताब यकीनन गंभीर बहस की हकदार है और पाठकों को नए तरह से सोचने पर मजबूर करती है।

 

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TAGS: Book Review, Manindra Nath Thakur, 'Gyan Ki Rajniti', Outlook Hindi, Harimohan Mishra
OUTLOOK 21 December, 2022
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