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16 July 2015

मृदुला गर्ग की बेगानी दास्तानें

मृदुला गर्ग इंसानी रिश्तों खासकर स्त्री-पुरुष संबंधों पर बहुत गहन अनुभूतियों और मनोवैज्ञानिकता के साथ लिखने के लिए जानी जाती हैं। हाल में ही प्रकाशित हुए उनके कथा संकलन हर हाल बेगाने में अपनी धरती से दूर रहने वाले भारतीय लोगों के आंतरिक उहापोह को उन्होंने बहुत सूक्ष्मता से व्यक्त किया है। संग्रह में कुल बारह कहानिया हैं, जो विगत चार दशक के दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।

ये कहानियां आज के संदर्भों में इसलिए अधिक प्रासंगिक जान पड़ती हैं क्योंकि हमारे सभ्य-सुशिक्षित समाज में एनआरआई शब्द के प्रति एक खास तरह का आकर्षण देखने को मिलता है। लेकिन हम शब्द को अपने वजूद से लपेटकर विदेशी धरती पर रहने वाले भारतीयों को किस-किस तरह के टीस उत्पन्न करने वाले अनुभवों से अकसर रूबरू होना पड़ता है। यही सब इन कहानियों में आया है। इन कहानियों का कैनवास बहुत विस्तृत है। सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और भावनात्मक दबावों के बीच अपने आप को बचाती इंसानी जद्दोजहद के स्वर इन कहानियों में साफतौर पर सुने जा सकते हैं।

अगर यूं होता और साठ साल की औरत कहानियां प्रेम पर आधारित हैं। लेकिन इनकी आधार भूमि प्रवासीजन ही हैं। देशों की सीमाएं और दूरियां किस तरह से मानवीय भावनाओं को भी विभाजित कर देती हैं, इसे इन कहानियों में देखा जा सकता है। बेंच पर बूढ़े और खुशकिस्मत कहानियां बहुत ही विडंबनाजनक स्थितियों को सामने लाती हैं। देश में रहकर विदेशी मानसिकता में जीना, कितना हास्यास्पद और अंत में दारुण हो सकता है। इसकी छवियां इन कहानियों में मौजूद हैं। इस संग्रह की एक बेहद मार्मिक कहानी है, छत पर दस्तक। इसमें बहुत खूबसूरत ढंग से इस भाव को कहानी में पिरोया गया है कि हमदर्दी की राह में देश, धर्म, वर्ग कभी बाधा नहीं बनती है।

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TAGS: har haal begaane, mradula garg, rajpal prakashan, हर हाल बेगाने, मृदुला गर्ग, राजपाल प्रकाशन
OUTLOOK 16 July, 2015
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