Advertisement
28 September 2022

पुस्तक समीक्षाः हौसलों का सफर

सिविल सेवा क्षेत्र में अग्रणी संस्थान ‘दृष्टि आईएएस’ ने अपने नए उपक्रम पंख पब्लिकेशन से पहली किताब प्रकाशित की है, हौंसलों का सफर। यह किताब भारत के 13 चुनिंदा आईपीएस अधिकारियों की कहानियों पर आधारित है। ये ऐसे अधिकारी हैं, जिन्होंने अपने कार्य को सिर्फ नौकरी की औपचारिकता भर नहीं समझा, बल्कि इसे व्यापक सामाजिक बदलाव के एक माध्यम के रूप में अपनाया। यह पुस्तक उन जांबाज अधिकारियों के व्यक्तिगत तथा पेशेवर जीवन के द्वंद्व, पारिवारिक दूरी, प्रशासनिक एवं राजनीतिक दबाव, जान का संकट जैसी तमाम चुनौतियों से भरी पड़ी है। हालांकि इस पुस्तक में किसी भी अधिकारी के संपूर्ण जीवन चरित के बारे में उल्लेख नहीं किया गया है और न ही उनके नितांत निजी जीवन के संवेदनात्मक पहलुओं को ही छुआ गया है। बल्कि यह उनके पेशेवर जीवन की जरूरी घटनाओं तथा व्यक्तिगत जीवन के अनिवार्य पहलुओं का संतुलित ब्यौरा पेश करती है।

इस किताब में आजादी के दौर के अधिकारी बीएन लाहिरी द्वारा हिंदू तथा मुसलमानों में दंगा रोकने के लिए अपनाई गई सूझबूझ, केएफ रुस्तमजी द्वारा चंबल के कुख्यात डाकू गब्बर सिंह को मारने की कहानी, जूलियो फ्रांसिस रिबेरो द्वारा मुंबई के अंडरवर्ल्ड के हौसले को पस्त करने की दास्तान, केपीएस गिल द्वारा पंजाब में खालिस्तानी आतंकवाद के खात्मे की कहानी, अजित डोभाल के द्वारा पाकिस्तान में खुफिया एजेंट के तौर पर काम करने के वृत्तांत, के. विजय कुमार कुमार द्वारा दुर्दांत चंदन तस्कर वीरप्पन को मारने का रोमांचक वर्णन, भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी के किरण से क्रेन बेदी बनने तक का सफर, स्माइलिंग शॉटगन के नाम से प्रसिद्ध अरुण कुमार और वर्दीवाला गांधी आरएसप्रवीण कुमार के बारे में रोमांचक वर्णन किया गया है। इसके अलावा भी इसमें जिन अन्य अधिकारियों की कहानियां शामिल हैं- प्रकाश सिंह, हेमंत करकरे, डी. शिवानंदन तथा मीरा चड्ढा बोरवंकर। ये ऐसे अधिकारी हैं जिनकी बहादुरी के बारे में चर्चा आम हैं। ये सारी कहानियां इस  अंदाज में लिखी गई है कि एक बार पढ़ना शुरू करने के बाद बिना अंत किए उठना मुश्किल है।

इस पुस्तक की रचना मूलतः गद्य शैली में की गई है, किंतु कुछ अध्यायों मसलन, दिल्ली का दारोगा: अजित डोभाल और स्माइलिंग शॉटगन: अरुण कुमार जैसे अध्यायों का लेखन प्रवाह इतना साधा हुआ है कि यह काव्यात्मक मालूम होती है। पुस्तक में उपयुक्त और ओजपूर्ण शब्दों का चयन किया गया है। इस किताब का प्रवाह और घटनाओं का चित्रण ऐसा है कि पढ़ने के दौरान किसी फिल्म से गुजरने की अनुभूति होती है।

Advertisement

हालांकि पुस्तक लेखन के लगभग सभी मानकों पर खरी उतरती है, किंतु इसकी कुछ कमियों को भी नजरअंदा नहीं किया जा सकता। पुस्तक में कुछ अतरंगी शब्दों का इस्तेमाल भी दिखता है, जिसे समझना सामान्य पाठक के लिए मुश्किल हो सकता है। जैसे, कसाब आदि। कुछ अध्यायों में भाषा के प्रवाह के स्तर पर भी थोड़ी बहुत कमियां मिलती हैं। पुस्तक के गठन की बात करें तो कुछ अध्याय जहां शीर्षकवार रूप में लेखबद्ध हैं, तो वहीं कुछ अध्याय सपाट तरीके से लिखे गए हैं। यह एक अच्छे पुस्तक की निशानी नहीं मानी जा सकती। यदि पुस्तक को एक ही संयोजन में लिखा जाता तो वह पठन और गठन दोनों के स्तर पर ही बेहतर साबित होती। हालांकि पुस्तक लेखन के स्तर पर उत्कृष्ट है किंतु कुछ अध्यायों में एक शीर्षक तथा दूसरे शीर्षक के मध्य तारतम्यता की कमी भी नजर आती है। ऐसा बीएन लाहिरी वाले अध्याय विशेष रूप से दिखता है। एक और बात जो इस पुस्तक को थोड़ा कमजोर बनाती है, वह है कहानियों में घटित होने वाली घटनाओं में दोहराव।  

छोटी-मोटी त्रुटियों के बावजूद यह किताब लगभग सभी मानकों पर खरी उतरती है। पुस्तक न केवल कहानी के स्तर पर ही रोचक है बल्कि पुस्तक का प्रवाह भी ऐसा है कि इसे शुरू से आखिरी अध्याय तक बिना रुके पढ़ा जा सकता है। पुस्तक में न केवल अधिकारियों का चयन ही बहुत सोच-समझकर किया गया है साथ ही उन्हें बयां करने का अंदाज भी रोचक और फिल्मी है। भाषा, संयोजन, कवर, फॉन्ट तथा प्रूफ एवं संपादन इत्यादि के स्तर पर यह एक उत्कृष्ट पुस्तक है। एक और बात यह कि पुस्तक में यदि वर्तमान दौर के प्रसिद्ध आईपीएस अधिकारी नवनीत सिकेरा को भी शामिल किया जाता, तो यह और भी उपयुक्त होता। मेरी राय में इसकी महत्ता को देखते हुए आने वाले संस्करण में प्रकाशक नवनीत जैसे और भी ऐसे अधिकारियों को पुस्तक में शामिल करेंगें। यही नहीं पुस्तक में जहां कहीं भी दोहराव की स्थिति नजर आ रही है उन्हें भी अलग-अलग दौर के अधिकारियों के चयन के माध्यम से दूर किया जा सकता है। अलग-अलग दौर के अधिकारियों के चयन से न केवल कहानी में रोचकता ही बढ़ेगी बल्कि विविधता भी आएगी।

हौसलों का सफर

भारत के 13 चुनिंदा आईपीएस अफसरों के साहसिक कारनामों की दास्तान

पंख प्रकाशन, (दृष्टि प्रकाशन का एक उपक्रम)

199 रुपये

समीक्षक : निधि सिंह

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: book review, honslo ka safar, nidhi singh, pankh prakashan
OUTLOOK 28 September, 2022
Advertisement