पुस्तक समीक्षाः इंजीकरी
'इंजीकरी' प्रतिभाशाली युवा कवयित्री अनामिका अनु का पहला कविता संग्रह है। इस संग्रह के प्रकाशित होने से पूर्व ही इस संकलन में शामिल कई कविताएं पत्र-पत्रिकाओं और सोशल मीडिया के माध्यम से पाठकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर चुकी थीं। जहां तक इस संग्रह का प्रश्न है, अनामिका अनु की कविताओं पर ध्यान जाने का पहला कारण विषयों की विविधता है। दूसरा कारण, स्थानीयता का सर्जनात्मक प्रयोग। तीसरा कारण, स्पष्ट स्त्री चेतना। और चौथा कारण, विज्ञान की शब्दावली को बड़ी सहजता के साथ हिंदी कविता की मुख्य भाव-धारा में विन्यस्त कर देना। इस संग्रह के माध्यम से हिंदी कविता में पहली बार ऐसे शब्द आए हैं जिनसे सिर्फ कविता की शब्दावली का ही विस्तार नहीं हुआ है बल्कि उन शब्दों के साथ वैज्ञानिक संस्कार भी कविता का रसायन बन गए हैं।
प्रेम इस संग्रह का जीवद्रव्य है लेकिन यह परम्परागत प्रेम का प्रत्याख्यान करते हुए स्त्री-पुरुष संबंध का नया व्याकरण रचने वाला प्रेम है। इस संग्रह की प्रेम कविताओं में दैहिकता और दार्शनिकता का एक सर्जनात्मक तनाव दिखाई देता है। ये कविताएं किसी रूमानी यूटोपिया की आकांक्षा मात्र की भी कविताएं नहीं हैं। इन कविताओं में कवि -मन का बौद्धिक किंतु निश्छल सौंदर्य प्रतिबिंबित है।
जहां तक इस संग्रह में स्थानीयता की उपस्थिति का प्रश्न है तो यह देखना एक रचनात्मक सुख है कि अनामिका अनु बिहार में जन्मीं, पली- बढ़ीं और अब सुदूर दक्षिण के तिरुअनंतपुरम में रहते हुए अपनी दोनों स्थानियताओं के साथ न्याय करती हैं। उनकी कविताओं में ये दोनों स्थानियताएं अपनी वैश्विक चेतना के साथ जुड़वा बहनों की तरह आती हैं। उनकी कविता में तिरुअनंतपुरम के साथ ही लीची शहर की जीवंत स्मृतियां हैं। पाठक उन स्मृतियों की धड़कन को महसूस कर सकते हैं। जैसाकि पहले कहा गया है कि संग्रह में विषयों की सम्पन्न विविधता है। यह 'इंजीकरी' शब्द भी हमारे शब्दकोश में एक इज़ाफ़ा ही है। संग्रह की कविताओं के शीर्षक बहुत कुछ कह देते हैं- डॉक्टर नायर की फिल्टर कॉफी, मास्को में है क्या कोई बेगूसराय, न्यूटन का तीसरा नियम, वह कोच लड़की, मेरे सपने में एक मजदूर आता है, गायब हो जाएंगे टिटहरे पारस लूटने के महीने में, अंतिम चुम्बन, देह फुटपाथ है, आत्मा शरीर का नाभिक है।
इस संग्रह की कविताएं इस बात का प्रमाण हैं कि अनामिका अनु को इस बात का गहरा बोध है कि कविता को शुरू कहां से करना है और उसका अंत किस बिंदु पर होना चाहिए। कहीं कोई स्फीति नहीं। कविता में किसी निष्कर्ष पर पहुंचने की कोई हड़बड़ी नहीं। वे साहस का परिचय देते हुए कविताओं में जरूरी प्रयोग भी करती हैं। इन कविताओं की एक विशेषता यह भी है कि विज्ञान की शब्दावली और संश्लिष्ट प्राणवस्तु के बावजूद इनकी भावगत तरलता बनी रहती है। गद्य के पूर्ण वाक्यों से अनामिका अनु जिस तरह आंतरिक लयात्मकता का सृजन करती हैं, वह देखने से अधिक सीखने की चीज है। किसी कवि के पहले संग्रह से इससे अधिक किस बात की उम्मीद करें!
इंजीकरी
अनामिका अनु
वाणी प्रकाशन
पृष्ठ ः 219
मूल्य ः 450 रुपये
(समीक्षक ख्यात कवि हैं)